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विदेशी नमाजियों से भी झगड़ा !

04:30 AM Mar 19, 2024 IST
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भारत आदिकाल से ही धार्मिक विविधता का संपोषक राष्ट्र रहा है जिसका मूल मन्त्र ‘सत्य या ईश्वर एक है मगर उसे पाने के विभिन्न रास्ते हैं’ रहा है। इस देश की संस्कृति में हर नये विचार का स्वागत करने की भी परंपरा रही है जिसके उदाहरण बौद्ध व जैन मत हैं। यदि भारतीय उपमहाद्वीप के भू-भाग को देखें तो पायेंगे कि विभिन्न संस्कृतियों के भग्नावशेष उस विविधता के ही दर्शन कराते हैं जिसमें एक ईश्वर को पाने के विभिन्न रास्ते हैं। हमारी संस्कृति में जिस शास्त्रार्थ की परंपरा मिलती है उसका उद्देश्य भी विविधता को सम्मान से देखने की दृष्टि ही है। हम अनीश्वरवादी होते हुए भी हिन्दू कहलाये जा सकते हैं और मूर्ति पूजा के विरोध में निराकार ब्रह्म के उपासक होते हुए भी। वेदों में जिस ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की परिकल्पना की गई है उसका तात्पर्य भी यही है कि पूजा विधि के अलग-अलग स्वरूपों के बावजूद यह मनुष्यमात्र ही है जो इस समग्र धरती को अपने अस्तित्व से ऊर्जावान बनाता है। इसे मानवतावाद के दायरे में रख कर भारतीय चिन्तकों ने मनुष्य को ही सृष्टि का नियन्ता तक सिद्ध किया और साबित किया कि यह मानव ही जो विभिन्न मतों की विविध व्याख्या कर धर्म के विविध स्वरूपों का चित्रांकन करता है। अतः जब धर्म के नाम पर हम किसी प्रकार का उत्पीड़न या जुल्म करते हैं तो अपनी ही जाति ‘मनुष्य’ का विनाश करते हैं।
हिन्दू धर्म मानता है कि मनुष्यों में भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि सबका ईश्वर एक है बेशक उसके नाम अलग-अलग हो सकते हैं। इन्हीं मनुष्यों के भीतर देव व दानव गुण वाले मनुष्य होते हैं। इसकी पहचान उनके कर्मों से होती है लेकिन यदि पक्के इतिहास की बात की जाये तो दुनिया में इसाई धर्म के जन्म के साथ ही भारत के केरल राज्य में यह धर्म आया। जिसका प्रमाण यहां स्थित ईसाकालीन प्राचीन गिरजाघर है। इसी प्रकार सातवीं सदी में इस्लाम धर्म के जन्म के साथ ही इसी राज्य में एक मस्जिद भी तामीर हुई। हमने हर दौर में नये विचारों का स्वागत किया और सभी को भारत की संस्कृति में घुलने-मिलने का अवसर दिया। कोई भी व्यक्ति हिन्दू, मुसलमान या इसाई, सिख, पारसी, बौद्ध या जैन हो सकता है और अपने धर्म द्वारा सुझाये गये रास्ता का अनुकरण कर सकता है। बेशक इतिहास में कुछ गलतियां हो सकती हैं मगर इसका मतलब यह नहीं कि उन गलतियों का अब हिसाब चुकता किया जाये बल्कि कोशिश होनी चाहिए कि उन्हें सुधारा जाये जिससे भारत शान्ति व सौहार्द के साथ ही धार्मिक सहिष्णुता का राष्ट्र बना रह सके। मगर गुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर में स्थित गुजरात विश्वविद्यालय के एक छात्रावास में जिस तरह की पाशविक घटना हुई है उससे पूरी दुनिया में भारत के नाम पर बट्टा लगा है और आम भारतीय को शर्मसार होना पड़ा है।
इस विश्वविद्यालय में कुल 1100 के लगभग छात्र पढ़ते हैं जिनमें से तीन सौ विदेशी छात्र हैं। ये छात्र भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद के तत्वावधान में भारत में शिक्षा अध्ययन के लिए आये हैं। परिषद इसी प्रकार भारतीय छात्रों को विदेश पढ़ने के लिए भी भेजती है। विश्वविद्यालय के छात्रावास में जब विदेशी मुस्लिम छात्र रात्रि के समय नमाज अता कर रहे थे तो कुछ धार्मिक अतिवादियों ने उन पर हमला किया जिनमें पांच गंभीर रूप से घायल हो गये । इनमें से दो को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पहला सवाल यह है कि छात्रावास में घुसे इन उपद्रवकारियों को किसने यह हक दिया है कि वे विश्वविद्यालय क्षेत्र में अनाधिकार प्रवेश कर विदेशी मुस्लिम छात्रों पर केवल इसलिए हमला करें कि वे अपने धर्म के अनुसार अपने अल्लाह की इबादत अपने तरीके से शान्तिपूर्ण ढंग से कर रहे थे। स्वयं को हिन्दू बताने वाले एेसे लोग असामाजिक तत्वों से इतर और कुछ नहीं कहलाये जा सकते क्योंकि उनका तरीका कानून की धज्जियां उड़ाने वाला है।
एेसे उपद्रवकारियों ने क्या कभी सोचा है कि जब संयुक्त अरब अमीरात जैसे इस्लामी देश में नया हिन्दू मन्दिर बनाने की इजाजत वहां की सरकार वहां बसे भारतीयों को दे सकती है तो क्या भारत की सरकार विदेशी मुस्लिम छात्रों को छात्रावास में नमाज अता करने से रोकेगी। छात्रावास ही इन विदेशी छात्रों का घर है। क्या सितम है कि ये उपद्रवकारी विदेशी मुस्लिम छात्रों के कहते हैं कि वे मस्जिद में जाकर नमाज अता करें। भारत के हर हिन्दू घर में प्रायः एक छोटा सा मन्दिर बना होता है जहां वह परिवार सहित पूजा-पाठ करता है। क्या ये सिरफिरे लोग कल को हिन्दुओं से भी कहेंगे कि वे पूजा-पाठ केवल मन्दिर में ही जाकर करें? भारत का संविधान धर्म को किसी भी व्यक्ति या नागरिक का निजी मामला मानता है। इस्लाम धर्म इजाजत देता है कि अल्लाह की इबादत कहीं भी की जा सकती है क्योंकि पूरी कायनात उसी की बनाई हुई है। बेशक इसका ध्यान रखा जाना चाहिए कि उनके निजी धार्मिक कृत्य से समाज के अन्य लोगों को कोई कठिनाई न हो। विदेशी छात्र तो अपने रहने के स्थान छात्रावास में ही इबादत कर रहे थे जिस पर दूसरे सहपाठी छात्रों को कोई एतराज नहीं था। नमाज में सिजदा करते हुए व्यक्ति की अवस्था वही होती है जो किसी हिन्दू की कहीं भी आंख बन्द करके अपने इष्ट देव की आराधना करते हुए होती है। ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर हम विदेशों खास कर मुस्लिम देशों में काम करने वाले भारतीयों के लिए ही मुश्किलें खड़ी करते हैं।

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