India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

बैंकों की वित्तीय चुनौतियां

03:17 AM Aug 17, 2024 IST
Advertisement

इसमें कोई संदेह नहीं ​िक भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है। कोविड महामारी से पहले वित्त वर्ष 2020 की तुलना में वित्त वर्ष 2024 में भारत की वास्तविक जीडीपी 20 प्रतिशत से अधिक रही है। बैंकिंग सैक्टर की बैलेंस शीट भी काफी सुधर चुकी है। इस वर्ष सकल जीएनपीए अनुपात के गिरकर 2.8 फीसदी पर आने से स्थिति में सुधार हुआ है। यद्यपि आर्थिक परिदृश्य गुलाबी है लेकिन इसके बावजूद भारत की वित्तीय चुनौतियां कम नहीं हो रहीं। हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों में धीमी गति से जमा हो रही रकम पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि बैंक अपनी ब्याज दरें तय करने को स्वतंत्र हैं। उन्हें ऐसी आकर्षक योजनाएं लेकर ग्राहकों तक पहुंचना चाहिए और ऐसा कुछ नया करना चाहिए ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा अपना धन बैंकों में जमा करा सकें। इस समय लोगों के पास बैंकों के अलावा​ निवेश के लिए कई अच्छे विकल्प मौजूद हैं। बैंकों में धन रखने के बजाय वे शेयर मार्किट और म्यूचल फंड को प्राथमिकता दे रहे हैं। जमा और उधार एक गाड़ी के दो पहिये हैं। इस समय जमा और उधार के बीच काफी असंतुलन बना हुआ है। बैंक बढ़ती ऋण की मांगों को पूरा करने के लिए शार्ट टर्म, नॉन रिटेल डिपोजिट और अन्य वित्तीय साधनों पर तेजी से ​िनर्भर हो रहे हैं। इससे बैंकों के सामने लिक्विडिटी (तरलता) का संकट पैदा हो सकता है।
हाल ही के महीनों में म्यूचल फंडों में 21 हजार करोड़ से अधिक का निवेश हुआ है। लोग अपनी बचत को निवेश करने के लिए पूंजी बाजार को अधिक पसंद कर रहे हैं। शेयर बाजार और म्यूचल फंड के अलावा लोग बीमा और पैंशन फंडों में निवेश कर रहे हैं। इस स्थिति को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की चिंताएं काफी बढ़ी हुई हैं। क्योंकि बैंकों को भविष्य में कर्ज देने में ​िदक्कत हो सकती है। यही स्थिति रही तो देश के बैंकों के लिए स्ट्रक्चरल समस्याएं पैदा हो सकती हैं। अधिकांश बैंक एफडी पर करीब 7 से 8 फीसदी ब्याज दे रहे हैं जबकि लोगों को अन्य विकल्पों से 12 प्रतिशत तक रिटर्न मिल रहा है। बैंक सेविंग अकाउंट्स पर 3 से 3.5 प्रतिशत तक ब्याज देते हैं। इससे ज्यादा रिटर्न तो लोगों को अन्य विकल्पों से मिल रहा है।
डिपॉजिट ग्रोथ बैंकों के लिए अहम है क्योंकि यह लोन की फंडिंग और लिक्वडिटी के लिए जरूरी है। हाई डिपॉजिट लेवल से बैंकों को लोन पर कंप्टीटिव इंटरेस्ट रेट ऑफर करने, अपनी परिचालन जरूरतों को सपोर्ट करने और रेगुलेटरी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है। जब डिपॉजिट ग्रोथ में कमी आती है, तो बैंकों को कई तरह के रिस्क का सामना करना पड़ता है। मसलन उन्हें लोन देने में दिक्कत होती है। साथ ही उन्हें फंडिंग के महंगे स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है और नकदी की समस्या पैदा होती है। इससे उधार लेने की लागत बढ़ सकती है, प्रॉफिटैबिलिटी कम हो जाती है और क्रेडिट रिस्क से प्रभावी ढंग से निपटने की उनकी क्षमता कम हो सकती है। अगर लंबे समय तक यही स्थिति रहती है तो इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है और ग्रोथ की संभावनाएं कमजोर पड़ सकती हैं।
घरों की वित्तीय बचत में सुधार जहां अर्थव्यवस्था के लिए अहम है, वहीं बैंक अतिरिक्त बचत जुटाने के लिए और बहुत कुछ कर सकते हैं। मार्च के अंत में अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन 3.6 फीसदी था। फंड के लिए होड़ को देखते हुए बैंकों को जमा जुटाने के लिए मार्जिन के मोर्चे पर त्याग करना होगा तथा बैलेंस शीट को स्थिर बनाए रखना होगा। निजी बैंक प्रायः बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि उनका ब्याज मार्जिन बेहतर है। बहरहाल एक बड़ा और दीर्घकालिक मुद्दा है आम सरकारी बजट घाटे का लगातार ऊंचे स्तर पर रहना। ऋण की लागत कम रखने के लिए बैंक जमा के एक हिस्से को नकदी परिसंपत्तियों खासकर सरकारी बॉन्ड में रखते हैं। धीरे-धीरे इस जरूरत को कम करने से ब्याज दरों को बचत की मांग और आपूर्ति के साथ तालमेल वाला बनाया जा सकेगा और आम बचत को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा। चूंकि इस प्रक्रिया के लिए बड़े आर्थिक समायोजन की आवश्यकता है इसलिए शायद ऐसा निकट भविष्य में नहीं हो। फिलहाल बैंकों को कम मार्जिन के हिसाब से समायोजन करना होगा और उच्च जमा दर की पेशकश करनी होगी।
आरबीआई के पाक्षिक आंकड़ों के मुताबिक 26 जुलाई तक बैंकों में जमा राशि 211.9 लाख करोड़ रुपए थी। बैंकों ने मार्च 2024 से 7.2 लाख करोड़ रुपए की राशि जोड़ी है जो एक साल पहले की अवधि के दौरान जोड़े गए जमा से 3.5 प्रतिशत अधिक है। बैंकों में जमा राशि का बढ़ना एक अच्छा संकेत है लेकिन साल दर साल क्रेडिट में 13.6 फीसदी की ग्रोथ देखी गई है, जो पिछले वर्ष की तुलना में धीमी है। बैंकों को तरलता के संकट से बचने के लिए कुछ नए उपाय करने चाहिए। रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचाने के लिए वास्तविक नीतिगत दरों को कुछ समय से नाकारात्मक कर रखा है। रिजर्व बैंक की चुनौती महंगाई को कम करना भी है। आंकड़े कुछ भी बोलें लेकिन बढ़ती महंगाई ने लोगों की बचत को कम किया है। यही कारण है कि आम परिवारों ने अच्छी रिटर्न हासिल करने के लिए अपना ट्रैंड बदल लिया है। भविष्य की चुनौ​ितयों का सामना करने के ​िलए बैंकिंग सैक्टर को नए कदम उठाने ही होंगे।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Advertisement
Next Article