गुरु हरिकृष्ण साहिब-सबसे छोटी उम्र के गुरु
गुरु हरिकृष्ण साहिब जी, आठवीं गुरु नानक ज्योति जिन्हें मात्र 5 वर्ष की आयु में गुरु गद्दी सौंप दी गई थी। गुरु गद्दी पर वैसे तो उनके बड़े भाई राम राय का हक बनता था पर उन्होंने बादशाह के दरबार में उसे प्रसन्न करने हेतु गुरबाणी का उच्चारण गलत ढंग से किया था। गुरबाणी में दर्ज है ‘‘मिट्टी मुसलमान की पेड़े पई कुम्हार’’ पर राम राय ने मुगल हुक्मरानों को खुश करने के लिए मुसलमान के स्थान पर ‘‘मिट्टी बेईमान की पेड़े पई कुम्हार’’ पढ़ दिया था। जिस के बाद उनके पिता गुरु हरि राय जी ने उनका मुंह तक नहीं देखा और उनसे कहा कि जिस दिशा से आये हो उसी दिशा में लौट जाओ। गुरु हरि राय जी ने गद्दी पर छोटे पुत्र हरिकृष्ण को बिठा दिया। इस बाबत राम राय ने बादशाह से शिकायत की जिसके बाद मुगल बादशाह औरंगजेब ने राम राय का पक्ष लेते हुए राजा जय सिंह को गुरु हरिकृष्ण साहिब को कैद कर उसके समक्ष पेश करने का आदेश जारी कर दिया। राजा जय सिंह ने अपना संदेशवाहक कीरतपुर भेजकर गुरु जी को दिल्ली बुलाया। पहले तो गुरु जी ने मना कर दिया पर बाद में उन्होंने अपने शिष्यों के कहने और राजा जय सिंह के बार-बार आग्रह करने पर दिल्ली आने का मन बना लिया। गुरु जी जब कीरतपुर साहिब से चले तो बड़ी गिनती में पंजाब की संगत भी अंबाला के पंजोखड़ा तक गुरु जी के साथ आई। उसी स्थान पर आज गुरुद्वारा पंजोखड़ा साहिब सुशोभित है और इस स्थान पर बने सरोवर में स्नान करने से तन और मन दोनांे के रोग दूर होते हैं। गुरु जी के पंजोखड़ा पहुंचने पर वहां के लोगों और खासकर हिन्दू विद्वान पंडित लालचंद के द्वारा गुरु जी की कार्यशैली पर सवाल उठाये गये कि इतनी छोटी उम्र में कोई गुरु की गद्दी पर कैसे विराजमान हो सकता है, अगर वाकय में ही यह गुरु हैं तो पहले गीता के श्लोक पड़ कर सुनायें।
इस पर गुरु जी ने पंडित लाल चंद को कहा कि वह गांव के किसी भी व्यक्ति को ले आएं, उसी के मुख से हम श्लोक पढ़वा देंगे। इस पर लाल चंद ने शातिर चाल चलते हुए गांव के गूंगे, बहरे छज्जू झीवर को लाकर गुरु जी के सामने खड़ा किया। गुरु जी ने जब अपनी छड़ी छज्जू झीवर के सिर पर रखी तो उसके बाद ऐसा चमत्कार हुआ जिसे देख सभी दंग रह गये। जो व्यक्ति मुख से बोल- सुन नहीं सकता था उसने पूरी गीता के श्लोक तुरन्त सुना डाले और वह भी अर्थ सहित। इसे देखते ही पंडित लाल चंद सहित सभी लोग गुरु जी के चरणों में गिर पड़े और गुरु जी को कुरुक्षेत्र तक विदाई देने पहुंचे। पंडित लाल चंद तो गुरु जी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने गुरु जी का सिख बनकर सेवा भी की। गुरु जी के दिल्ली पहंुचने पर राजा जय सिंह ने भी गुरु जी का इम्तिहान लेने के लिए महल में काम करने वाली औरतों को सुन्दर वस्त्र पहनाकर गहनों से लादकर गुरु जी के सामने खड़ा कर दिया और अपनी महारानी को दासियों के वस्त्र पहनाकर दासियों की पंक्ति में खड़ा किया और गुरु जी से सैकड़ों औरतों में से रानी को पहचानने को कहा। गुरु जी तुरन्त जाकर दासी के कपड़ों में दासी बनी बैठी रानी की गोद में जाकर बैठ गये। जिसके बाद राजा जय सिंह गुरु जी के चरणों में गिर गया और उसने गुरु जी को अपने महल में ठहराकर उनकी पूरी आव भगत की। उसी दौरान दिल्ली में चेचक की बीमारी ने महामरी का रुप धारण कर लिया और रोजाना हजारों लोग महामारी का शिकार होकर मरने लगे जिस पर गुरु जी ने महल में बने कुण्ड का जल अरदास करने के पश्चात् लोगों को पिलाया जिससे उनकी बीमारी दूर हो गई। बीमारी का मानो पूरी तरह से खात्मा हो गया पर अंत में गुरु जी स्वयं उसी बीमारी से ग्रस्त हो गये और उन्होंने अपने श्वांस छोड़ दिये।
गुरु हरिकृष्ण साहिब की चरण छोह प्राप्त धरती गुरुद्वारा बंगला साहिब
दिल्ली के कनाट प्लेस में स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब जहां आज लाखों की गिनती में श्रद्धालुगण नतमस्तक होते हैं, गुरुद्वारा साहिब में बने सरोवर में स्नान करने के पश्चात् अमृत जल लेकर अपने दुखों का नाश करते हैं। यह स्थान आठवें गुरु नानक गुरु हरिकृष्ण साहिब के चरण छोह प्राप्त है। यहां राजा जय सिंह का घर था अर्थात उसका बंगला जो उसने गुरु साहिब को ठहरने के लिए दिया और इस स्थान पर बैठकर गुरु जी संगत के दुख दूर किये और तभी से यह स्थान गुरुद्वारा बंगला साहिब के नाम से जाना जाने लगा। देखते ही देखते इसकी भव्य इमारत बन गई जिसकी कार सेवा बाबा हरबंस सिंह जी के द्वारा की गई। जिस स्थान पर आज सरोवर बना हुआ है वह स्थान देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने योग साध धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को दे दिया। उस समय के कद्दावर सिख नेता जत्थेदार संतोख सिंह, बख्शी जगदेव सिंह, आदि के साथ मिलकर संगत ने सरकार को चेतावनी दी थी कि गुरुद्वारा साहिब के साथ योग आश्रम कतई नहीं बन सकता। सिख समाज के आक्रोष के आगे सरकार को झुकना पड़ा और धीरेन्द्र ब्रह्यचारी को गुरुद्वारा के सामने जगह देकर वह स्थान गुरुद्वारा साहिब के हवाले किया गया।
गुरुद्वारा बंगला साहिब जिसका प्रबन्ध दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी देखती है। यहां पर गुरुद्वारा परिसर में एक विशाल डिस्पैंसरी, एमआरआई, सीटी स्कैन सैन्टर जैसी सुविधाएं कमेटी द्वारा संगत को दी जाती है जिसमें मात्र 50 रुपये में एमआरआई और सीटी स्कैन किया जाता है जिसके बाहर हजारों रुपये देने पड़ते हैं। लाल किले के बाद विदेशी टूरिस्ट की सबसे अधिक चाहत इसी स्थान को देखने की होती है। कमेटी द्वारा संगत के लिए लंगर की व्यस्था भी हर समय उपलब्ध रहती है और सबसे बड़ी खासियत की इस स्थान पर बनने वाला लंगर पूर्णतः आटोमैटिक मशीनों के द्वारा हाईजैनिक तरीके से तैयार होता है। गुरु हरिकृष्ण डिस्पैंसरी के चेयरमैन भुपिन्दर सिंह भुल्लर से जानकारी मिली है कि अब तक 50 हजार से अधिक लोग 50 रुपये में एमआरआई का लाभ प्राप्त कर चुके हैं। बहुत जल्द कैंसर की भयानक बीमारी के लिए भी अत्याधुनिक सहूलतों से लैस मशीनें डिस्पैंसरी में कमेटी लगाने जा रही है जिसके बाद बहुत कम पैसों में जरुरतमंदों का इलाज संभव हो पाएगा।
पंजाबी सभ्याचार को बढ़ावा देती ‘‘सुनक्खी पंजाबन’’
पंजाबी विरसा, सभ्याचार और मातृ भाषा को बढ़ावा देने हेतु 6 वर्ष पूर्व डा. अवनीत कौर के द्वारा पंजाबी महिलाओं के लिए सुनक्खी पंजाबन (सुन्दर पंजाबन) की शुरुआत की गई और अब तो हर वर्ष सैकड़ों महिलाएं इसमें भाग लेकर सुनक्खी पंजाबन का खिताब जीतने के लिए बढ़चढ़ कर भाग लेती दिखाई देती हैं। इनका मकसद यही था कि पंजाबी विरसा, सभ्याचार को बढ़ावा दिया जाये क्योंकि कहीं ना कहीं पंजाबी समुदाय इससे दूर होते जा रहा है। विदेशों में भले ही लोग पंजाबी सभ्याचार को अपनाने लगे हैं मगर अपने देश में लोग खासकर महिलाएं पश्चिमी कल्चर को ज्यादा त्वजों देने लगी हैं। पहनावा दिन प्रतिदिन वैसा ही होता चला जा रहा है। आज के पंजाबी गानों फिल्मों में अश्लीलता, लचरपन ज्यादा दिखता है, पंजाबियों को शराब का आदी बताया जाता है। इसी के चलते अवनीत कौर भाटिया के द्वारा प्रयास किया गया कि पंजाबी महिलाओं को एक ऐसा प्लेटफार्म दिया जाए जिसमें वह पंजाबी पहनावे में आकर, पंजाब के सभ्याचार और पंजाबी विरासत को ध्यान में रखते हुए अपनी कला का प्रदर्शन करें।
आयोजकों द्वारा प्रतियोगियों से मातृ भाषा पंजाबी में हीे प्रश्न पूछ जाते हैं और उनका जवाब भी पंजाबी में ही देना अनिवार्य होता है। पंजाब का गिद्दा, बोलियां, सभ्याचारक गीतों पर महिलाएं परफारमेंस देती हैं। गौरवमई इतिहास की बातें की जाती हैं और हर वर्ष 3 महिलाआंे को सुनक्खी पंजाबन के खिताब से नवाजा जाता है। एक बात तो तय है कि जो भी महिला स्वयं पंजाबी कल्चर से जुड़ गई उसका पूरा परिवार फिर पंजाबीयत से दूर नहीं जा सकता।