हरियाणा के चुनाव सम्पन्न
हरियाणा राज्य की 90 विधानसभा सीटों पर आज मतदान पूरा हो गया। मतदाताओं के जोश को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि इस बार मतदान का प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले ज्यादा रहेगा। 2019 के चुनावों में मतदान का प्रतिशत 68 के करीब रहा था। हरियाणा के वर्तमान चुनाव कई मायनों में एेतिहासिक चुनाव कहे जा सकते हैं। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि केन्द्र में शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी के लिए हरियाणा अपने गठन के समय से ही टेढ़ी खीर रहा है क्योंकि इसका समूचा सामाजिक ताना-बाना ग्रामीण पृष्ठभूमि का रहा है। गांवों में भाजपा की वह पैठ कभी नहीं बन सकी जो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी की थी। इसके बावजूद भाजपा ने हरियाणा में लगातार दो बार अपनी सरकार गठित करने में सफलता प्राप्त की। इसका एक मात्र कारण प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता रही। 2014 में राष्ट्रीय राजनीति में जब श्री मोदी ने पदार्पण किया तो अपनी पार्टी के सभी पिछले रिकार्ड तोड़ डाले। उनकी लोकप्रियता से हरियाणा भी अछूता नहीं रहा और यहां पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। 2019 में भी मोदी का जादू चला और भाजपा को 40 सीटें मिलीं।
दरअसल नरेन्द्र मोदी पूरे उत्तर भारत में 2014 में छा गये थे और गांवों से लेकर शहरों तक के मतदाताओं ने उन्हें पलकों पर बैठा लिया था। मगर हरियाणा में भाजपा का कोई क्षेत्रीय नेतृत्व नहीं उभर सका। लोकतन्त्र में दस साल का समय बहुत होता है अतः भाजपा 2024 के चुनावों में क्षेत्रीय नेतृत्व के अभाव से जूझती दिखाई पड़ रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस में क्षेत्रीय नेतृत्व की बहुलता है। मगर नेतृत्व बहुलता की भी अपनी कठिनाइयां होती हैं जिसकी वजह से हमने चुनाव प्रचार के दौरान देखा कि किस प्रकार कांग्रेस नेत्री शैलजा को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हुआ। हालांकि ये चर्चाएं अन्त में सारहीन व तथ्यहीन ही साबित हुईं मगर इनसे यह हकीकत तो उजागर हो ही गई कि हरियाणा में कांग्रेस अपने घर के झगड़ों में भी फंस सकती है। हालांकि पूर्व मुख्यमन्त्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा बहुत कद्दावर नेता माने जाते हैं। उनकी राज्य में लोकप्रियता भी कम नहीं मानी जाती। इसके बावजूद उन्हें सार्वजनिक मंचों पर शैलजा को यथा योग्य स्थान देना पड़ा। एक प्रकार से कांग्रेस की यह खूबी भी है कि इसके नेता अपनी पार्टी आलाकमान के सामने बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाते हैं। यदि यह कहा जाये कि हरियाणा चुनावों की कमान अन्त में श्री राहुल गांधी ने संभाली तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि श्री गांधी ने चुनाव प्रचार के अन्तिम तीन दिनों में जिस प्रकार राज्य की यात्रा करते हुए चुनाव प्रचार किया उससे भाजपा हतप्रभ रह गई। राहुल गांधी के साथ उनकी बहन श्रीमती प्रिंयका गांधी ने भी जमकर इन तीन दिनों में चुनाव प्रचार किया और लोगों को समझाया कि वे अपने एक वोट के अधिकार का प्रयोग अपनी हालत सुधारने के लिए ही करें।
वास्तविकता भी यही है कि चुनावों में लोग अपनी हालत सुधारने के लिए ही मतदान में हिस्सा लेते हैं और एेसी पार्टी को चुनते हैं जिसका विश्वास लोक कल्याणकारी राज में हो। लोक कल्याण प्रजातन्त्र का मूलाधार होता है। यह गांधीवादी विचार है जबकि अन्य सभी राजनैतिक दर्शनों में लोक कल्याण को शासन पद्धति जोड़कर देखा जाता है। यही वजह है कि राहुल गांधी अपने चुनाव प्रचार में फौज में भर्ती होने वाले अग्निवीरों के मुद्दे से लेकर महंगाई व महिलाओं के मुद्दों को लोकप्रिय बनाने में सफल रहे। वैसे तो चुनावों में राजनैतिक दल किसी भी विषय को पकड़ कर बात का बत्तंगड़ बना देते हैं मगर राहुल गांधी ने अपनी प्रायः सभी सभाओं में संविधान का मुद्दा उठा कर हरियाणा के दो करोड़ से अधिक मतदाताओं को मानसिक रूप से आन्दोलित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बेशक चुनाव आम जनता के लिए राजनीति की पाठशाला भी होते हैं । लोकतन्त्र में अपेक्षा की जाती है कि सभी प्रमुख राजनैतिक पार्टियां अपनी-अपनी विचारधारा को केन्द्र में रखकर लोगों को समझायेंगी कि उनके मत के अनुसार देश या राज्य समेत लोगों का विकास किन सिद्धान्तों के मानने के चलते होगा। हरियाणा चूंकि कृषि प्रधान राज्य है और यहां की 70 प्रतिशत से भी अधिक जनता खेती-किसानी के काम में लगी हुई है अतः किसानों की फसल के वाजिब दाम मिलने का मुद्दा इस राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा हो सकता है। कांग्रेस ने इसी मुद्दे के चारों तरफ राजनीतिक विमर्श गढ़ा है जिसमें संविधान का मुद्दा भी आ जाता है। यदि किसानों को अपनी फसल के दामों के बारे में संवैधानिक गारंटी मिलती है तो इससे समूचे देश की अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस सन्दर्भ में हमें सर छोटू राम व चौधरी चरण सिंह की याद कर लेनी चाहिए और उनके फलसफे से धूल झाड़ कर उसका अध्यन करना चाहिए। आज हुए मतदान में जिस तरह लोगों ने मुखर होकर भाग लिया है उसी से अन्दाजा लग सकता है कि हवा का रुख किधर है। लोकतन्त्र की यह खूबी भी होती है कि वह निरन्तर परिवर्तन चाहता रहता है। समाजवादी चिन्तक डाॅ. राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि प्रजातन्त्र में इतनी ताकत होती है कि जमे हुए पानी की पोखरों में भी हिलोरे उठा देता है। यह ताकत लोगों की ही ताकत होती है। हरियाणा में जिस प्रकार बेरोजगारी भी प्रमुख मुद्दा बनी उसका मन्तव्य यही है कि आम आदमी देश के विकास में अपना हिस्सा चाहता है। यह जातिगत जनगणना से जुड़ा मसला है। यह सब देखते हुए हम चुनाव परिणामों की तह तक भी जा सकते हैं मगर उस तरह नहीं जिस तरह एक्जिट पोल कराने वाले जाते हैं।