हरियाणा चुनावों की तारीख?
हरियाणा में चुनाव आगामी 1 अक्तूबर को होने की घोषणा चुनाव आयोग कर चुका है। पूरे राज्य में एक चरण में ही विधानसभा चुनावों की घोषणा आयोग ने जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनावों के साथ की थी। फिलहाल राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है परन्तु पार्टी ने चुनाव आयोग से गुहार लगाई कि वह चुनाव की तारीख को सात-आठ दिन आगे बढ़ा दें। ऐसे मौके स्वतन्त्र भारत में बहुत कम आय़े हैं जब किसी राजनैतिक दल ने चुनावों की तारीख के बारे में अपनी अलग से दलील दी हो। इसका कारण यह है कि चुनाव आयोग भारतीय संविधान के अनुसार एक स्वतन्त्र व स्यात्तशासी संस्था हो जो अपना कार्य सीधे संविधान से ताकत लेकर करती है। भाजपा नेताओं की दलील है कि एक अक्तूबर से पहले बहुत सारी छुट्टियां जिसका मतदाता लाभ उठा कर छुट्टियां मनाने का कार्यक्रम तय कर सकते हैं औऱ मतदान प्रतिशत इस वजह से बहुत कम रह सकता है। भाजपा के राजनैतिक विरोधी खास कर कांग्रेस पार्टी भाजपा पर फब्तियां कस रही है कि चुनावों से पहले ही भाजपा ने हथियार डाल दिये हैं और इसे हार का डर अभी से सताने लगा है।
राजनीति में प्रायः वह नहीं होता जो सामने से दिखाई पड़ता है। कुछ लोग इसे चुनाव आयोग की बुद्धिमत्ता को चुनौती देना वाला भी बता रहे हैं। जाहिर है कि चुनाव आयोग ने सब तरफ के माहौल से वाकिफ होने के बाद एक अक्तूबर को चुनाव कराने की घोषणा की होगी और 4 अक्तूबर जम्मू-कश्मीर व हरियाणा में चुनावी मतगणना कराने का मन बनाया होगा। यदि आयोग हरियाणा में मतदान की तारीख आगे बढ़ाता है तो उसे मतगणना के लिए भी किसी अन्य दिन की घोषणा करनी पड़ेगी। चुनाव आयोग प्रायः अपनी की गई घोषणाओं से पीछे नहीं हटता है क्योंकि वह पहले से ही सारे आकलन करके चुनाव की तारीख पक्की करता है। यह देखने का काम किसी राजनैतिक दल का नहीं होता कि कितनी छुट्टियां पड़ रही हैं और लोग इस दिन अपना संवैधानिक दायित्व किस प्रकार निभायेंगे। यह मतदाताओं का कर्त्तव्य होता है कि वे अपनी लोकतान्त्रिक जिम्मेदारी किस प्रकार से निभाते हैं। एक अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर में अंतिम तीसरे चरण के चुनाव हैं। जो समस्या हरियाणा के साथ है वही जम्मू-कश्मीर में भी होनी चाहिए क्योंकि छुट्टियां तो वहां भी रहेंगी। तारीख बढ़वाने की जगह भाजपा यदि इस बात पर जोर दे कि हरियाणावासी 1 अक्तूबर को अधिक से अधिक मतदान करें तो यह बेहतर विकल्प होगा। चुनाव आयोग को भी अधिकाधिक मतदान की अपील करनी चाहिए।
दरअसल भाजपा का आयोग से गुहार लगाना इस बात को इंगति करता है कि पार्टी को अपने ऊपर भरोसा उतनी शिद्दत के साथ नहीं है जितना कि एक सत्ताधारी पार्टी को होना चाहिए। छुट्टियां तो राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए भी रहेंगी मगर उसने तारीख बदलने का अनुमोदन नहीं किया है। हरियाणा के राजनैतिक समीकरण 1966 में इसके पंजाब से अलग होकर पृथक राज्य बनने के साथ ही विशिष्ट रहे हैं। यह वीर जवानों औऱ मेहनती किसानों की धरती मानी जाती है। मतदाता भाजपा की इस मांग को किस रूप में लेते हैं, यह देखने वाली बात होगी। मगर चुनाव आयोग पहले से ही यह निष्कर्ष कैसे निकाल सकता है कि 1 अक्तूबर को मतदान कम होगा। भारत विविधताओं से भरा देश है। अक्सर किसी भी चुनाव के समय यह तस्वीर उभर कर आती है महानगरों में गांवों व कस्बों के मुकाबले मतदान प्रतिशत कम रहता है। इस सच को स्वीकारने में क्या हर्ज है। क्या इसका मतलब यह निकाला जाये कि भाजपा हरियाणा के गांव-कस्बों में शहरों के मुकाबले कम लोकप्रिय है। भाजपा नेता खुद ही स्वीकार कर रहे हैं कि शहरों के निवासी उनके प्रतिबद्ध मतदाता होते हैं। अतः 1 अक्तूबर के आगे-पीछे छुट्टियां होने की वजह से लोग सैर-सपाटे को निकल जायेंगे। लोकतन्त्र में मतदाताओं को ही शक की निगाह से नहीं देखा जाता है और उनके राजनैतिक चातुर्य व बुद्धिमत्ता पर भरोसा किया जाता है।
इस बात की गारंटी है कि 1 अक्तूबर की जगह यदि हरियाणा में 7 या 8 अक्तूबर को मतदान होता है तो उसमें मतदान प्रतिशत बढ़ जायेगा। उस दिन भी जिन नागरिकों को मतदान करना है वे ही मतदान करेंगे। भाजपा के इस पैंतरे का लाभ उठाने से विपक्षी पार्टी कांग्रेस नहीं चूकेगी क्योंकि राज्य कांग्रेस के नेता अभी से कह रहे हैं कि भाजपा चुनावों से भाग रही है। यह स्थिति भाजपा के लिए साजगार नहीं मानी जा सकती। सत्तारूढ़ पार्टी होने की वजह से इसने अपनी तरफ से चुनाव आयोग को खत लिख कर ‘आ बैल मुझे मार’ जैसी स्थिति बना ली है। चुनावों से पहले ही अपने लिए एेसी स्थिति बना कर भाजपा ने खुद अपने लिए परिस्थितियां विकट बना ली हैं। राजनैतिक दलों को हरियाणा वासियों की लोकतान्त्रिक निष्ठा पर यकीन इस हद तक होना चाहिए कि लोग स्वयं अपनी वरीयता को चुनाव से पहले ही मुखरित करने लगें। राजनैतिक दलों के नेतृत्व को चुनाव से पहले आत्मविश्वास से भरा होना चाहिए। वैसे पंजाब विधानसभा के चुनावों में तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्नी ने भी अवकाश के कारण चुनाव तिथि बदलवाने का आग्रह किया था। राज्य में मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच ही होना है क्योंकि विगत लोकसभा चुनावों में सभी क्षेत्रीय दलों की हालत लोगों ने खासी पतली कर दी थी। चुनाव आयोग को भी इस बारे में अन्य राजनैतिक दलों की राय भी जाननी चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com