‘डंकी रूट’ की चपेट में हरियाणा
पश्चिमी देशों में जाने के गैर कानूनी डंकी रूट की दिल दहला देने वाली कहानियों के बावजूद पंजाब और गुजरात तथा देश के दूसरे राज्य के युवाओं को बेहतर जिन्दगी का सपना लुभाता है। अवैध आव्रजन की पूरी एक अर्थव्यवस्था का विस्तार हो चुका है। राज्यों में सुनियोजित सिंडीकेट चल रहे हैं लेकिन न लोग समझ रहे हैं, न ही सरकारें इस सिंडीकेट पर अंकुश लगाने के लिए कोई कार्रवाई कर रही हैं। जिन युवाओं को वीजा नहीं मिलता वे लाखों रुपए खर्च कर डंकी रूट से शारीरिक व मानसिक परेशानियां झेलते हुए विदेश पहुंचने के प्रयास करते हैं। जान की कीमत पर भी वे जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं। डंकी रूट से जाने वालों की मौत की कहानियां कोई नई नहीं हैं। बस रह-रहकर कुछ नए अध्याय जुड़ जाते हैं। डंकी रूट ने पंजाब आैर गुजरात में तो पांव पसारे ही थे अब इसमें धीरे-धीरे हरियाणा के युवाओं को भी अपने जाल में फंसा लिया है। हरियाणा के करनाल, पानीपत, कुरुक्षेत्र, सिरसा, कैथल इसकी सबसे ज्यादा चपेट में हैं। हरियाणा के चुनावों में यह मुद्दा उठा तो जरूर लेकिन चुनावी शोर में यह महत्वपूर्ण मुद्दा दबकर रह गया।
लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पिछले दिनों सुबह-सवेरे ही करनाल में एक ऐसे परिवार से मिलने पहुंचे जिनके बेटे अमित कुमार का अमेरिका में एक्सीडेंट हुआ था। अमित कुमार भी डंकी रूट से अवैध रूप से अमेरिका पहुंचा था। अमित कुमार ने घर की जमीन और जरूरी चीजें गिरवी रखकर 42 लाख रुपए खर्च कर डंकी रूट से विदेश जाने का मार्ग चुना। दुर्घटना में घायल होने के बाद उसे वापिस लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अमित कुमार जैसी कई कहानियां हरियाणा के कई गांवाें से भी सामने आ चुकी हैं। करनाल जिले के धोलपुरा गांव के कई युवक डंकी रूट से विदेश जाकर बहुत नुक्सान झेल चुके हैं। गांव के रहने वाले उदय सिंह घोलिया 6 महीने तक पनामा के जंगलों से होते हुए मैक्सिको तक पैदल गए। नाव के जरिए उन्होंने अवैध रूप से मैक्सिको जाने की कोशिश की लेकिन सुरक्षा अफसरों ने उन्हें और उनके साथ 300 से ज्यादा लोगों को वापस भारत भेज दिया। अब वह हरियाणा में अपने गांव में गायों की देखभाल सहित घर के काम कर रहे हैं। ऐसी ही कहानी मुकेश कुमार की है। वह ऑस्ट्रिया के एक कैंप में 3 महीने तक रुके और फिर 3 महीने जेल में भी रहे। दिसंबर 2022 में वह वापस आ गए। हैरानी की बात है कि इस सबके बाद भी इस गांव के बहुत सारे लड़के विदेश जाना चाहते हैं। इस गांव की जनसंख्या लगभग डेढ़ हजार है और यहां के 150 युवा विदेश जा चुके हैं। इनमें से लगभग 80 प्रतिशत लोग डंकी रूट से गए हैं और इसके लिए उन्होंने स्थानीय एजेंट को 15 से 60 लाख रुपए तक दिए हैं। गांव का जब कोई युवा अमेरिका पहुंच जाता है तो गांव के लोग पटाखे फाेड़ कर उसका स्वागत करते हैं।
विदेश भेजने वाले एजेंटों का पूरा नेटवर्क बिछा हुआ है और अब तक बड़ी संख्या में युवाओं को ये देश से बाहर ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और अमेरिका भेज भी चुके हैं। बताया जा रहा है कि डंकी रूट से एक शख्स को विदेश भेजने के ये एजेंट 25 से 50 लाख रुपये तक लेते हैं। पंजाब और हरियाणा में विदेश जाने की चाह के चलते यहां के नौजवान बड़े-बड़े सपने संजोते हैं। डाॅलरों की चकाचौंध में आकर्षित होकर युवा इन एजेंटों के चंगुल में फंस जाते हैं। करनाल में रहने वाले कुछ लोगों ने बताया कि एजेंटों को पैसे देने के लिए युवाओं के परिजन अपने जमीन, घर बेच या गिरवी रख रहे हैं। बता दें विदेश खासकर अमरीका जाने के लिए पंजाब के नौजवानों ने 90 के दशक में डंकी रूट से आना-जाना शुरू किया था। उस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तो परिजनों ने भी उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका। उस समय 15 लाख में युवा सबसे पहले थाईलैंड उसके बाद यूरोप और फिर मैक्सिको से अमेरिका में एंट्री करते थे।
1996 का माल्टा नौका कांड तो अब तक लोगों को याद है, जिसमें डंकी रूट से जा रहे 170 भारतीयों की जान चली गई थी, जिनमें से अधिकतर पंजाब के युवा थे। तब देश में हा-हाकार मच गया था लेकिन यह गोरख धंधा नहीं रुका, बल्कि समय के साथ-साथ डंकी रूट से अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन तक पहुंचना महंगा ही होता चला गया। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों की सीमाओं पर आज भी प्रवासियों की बाढ़ आई हुई है जो किसी न किसी तरह वहां पहुंचना चाहते हैं। पैसा कमाने की होड़ और एनआरआई कहलाने का आकर्षण गलत नहीं है लेकिन इसके लिए अवैध और अनैतिक रूट अपनाना जान को जोखिम में डालने के समान है। क्या राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का यह दायित्व नहीं बनता कि वे युवाओं को ऐसा करने से रोकने का अभियान चलाएं। यह काम गांव की पंचायतें भी कर सकती हैं। विडम्बना यह है कि मुट्ठीभर डंकी प्रवासियों की कहानियां ग्रामीण युवाओं को भी गुमराह कर रही हैं लेकिन कोई भी समस्याओं और चुनौतियों के बारे में बात नहीं करता। हम अपने युवाओं को देश में सम्मानजनक रोजगार क्यों नहीं दे पा रहे। इस प्रश्न का हल भी हमें ढूंढना है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com