देश में सक्रिय है होर्डिंग माफिया...
आप नेता हैं हुजूर। आप अधिकारी हैं हुजूर। आप पूरी व्यवस्था को अपने इशारों पर नचाने में माहिर हैं हुजूर। हो सकता है कि आपको मेरी ये पंक्तियां थोड़ी नागवार गुजरें, आपको लगे कि मैं आपको थोड़ा कम करके आंक रहा हूं। तो चलिए, इसे इस तरह कहते हैं कि व्यवस्था आपकी मुट्ठी में है और आप पूरी सरकार हैं हुजूर! आपके पास इतनी फुर्सत कहां है कि आप ‘आम आदमी’ नाम के प्राणियों की फिक्र करें। मुंबई में वो जो 16 लोग अवैध होर्डिंग के नीचे दबकर अकाल मौत के शिकार हो गए, वे आपके रिश्तेदार थोड़े ही थे कि आप मातम मनाएं? हुजूर, आम आदमी तो मरने के लिए पैदा हुआ है। आप आम आदमी थोड़े ही हैं..!
लेकिन एक सवाल है हुजूर! क्या आपको नहीं लगता कि ये दुर्घटना नहीं बल्कि 16 लोगों की हत्या का मामला है? अरे हां, याद आया कि इस अवैध होर्डिंग को लगाने वाली कंपनी ईगो मीडिया के मालिक भावेश भिंडे के खिलाफ पंतनगर थाने में गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज करा दिया गया है। लेकिन सवाल है कि ‘गैर-इरादतन’ शब्द क्यों? जिस दिन 100 फुट की ऊंचाई पर 120 फुट गुणा 120 फुट का यह विशालकाय होर्डिंग अवैध तरीके से लगाया जा रहा होगा तो क्या नगर निगम या रेलवे को यह पता नहीं था कि नियमत: मुंबई के उस इलाके में 40 गुणा 40 फुट से ज्यादा बड़ा होर्डिंग लगाया ही नहीं जा सकता। सबको सब कुछ मालूम था हुजूर लेकिन जब हर ओर बंदरबांट चल रही हो तो जमीर बिक ही जाता है! यह मान लेते हैं कि आपका जमीर नहीं बिका तो भी भावेश की दबंगता के नीचे कुचल गए होंगे आप। सुना है कि उस पर 26 मामले पुलिस में दर्ज हैं और 2009 में उसने मुलुंड विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था।
हुजूर, अधिकारियों और नेताओं का यही नापाक गठजोड़ सिस्टम की जान लिए बैठा है। बात केवल मुंबई की नहीं है हुजूर। महाराष्ट्र और देश के कई दूसरे शहरों में भी ऐसे हादसे हुए हैं। मुंबई में 16 लोग मर गए और 70 से ज्यादा घायल हो गए इसलिए हंगामा मच गया। क्या जब तक लोग मरेंगे नहीं तब तक आप जागेंगे नहीं? हो सकता है कि आप कहें कि हर दो साल पर होर्डिंग का ऑडिट तो होता ही है। तो फिर मेरा सवाल है कि ऑडिट में अवैध होर्डिंग्स दिखते क्यों नहीं हैं? अब कह रहे हैं कि मुंबई में कुल 1025 होर्डिंग हैं जिनमें से 179 होर्डिंग रेलवे सीमा के अंतर्गत आते हैं। सच में क्या इतने ही होर्डिंग्स हैं? और ये महानगर पालिका और रेलवे का क्या मामला है? ये आपका बंटवारा है हुजूर। जिन घरों के दीपक बुझ गए हैं उनके लिए वो सारे अधिकारी और नेता हत्यारे हैं जिन्होंने होर्डिंग्स को खड़ा होने दिया और आंखें मूंदें रखीं।
मैं इस समय अमेरिका-मैक्सिको की यात्रा पर हूं और शानदार सड़कों के किनारे मुझे कहीं भी होर्डिंग्स नजर नहीं आ रहे हैं। मैं फुटपाथ पर राहगीरों को चलते देख रहा हूं और मुझे अपने देश के फुटपाथ याद आ रहे हैं जहां दुकानें फैली रहती हैं। यहां किसी नेता का कोई बैनर तक नजर नहीं आ रहा है। लेकिन हमारे देश में क्या हाल है? राजनीतिक पार्टियों ने तो इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान लिया है कि पुल, गोलंबर, चौराहे और डिवाइडर पर उनके होर्डिंग्स रहेंगे ही रहेंगे। यहां तक कि बिजली के पोल को नहीं छोड़ते। कभी आदमी के नाम पर तो कभी भगवान के नाम पर होर्डिंग्स लग जाएंगे। यहां तक कि ऐतिहासिक इमारतों को भी ढंक देते हैं। मैं अपने संवेदनशील मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से और दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से भी कहूंगा कि होर्डिंग्स से मुक्ति के लिए सख्त नियम क्यों नहीं बनाते? हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं, उसके अनुरूप हमारा व्यवहार भी तो होना चाहिए। मुझे याद है कि न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती जब सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस थे तब न्यायालय ने सुओमोटो यानी स्वयं आगे होकर सुनवाई की थी। विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों ने दिशा-निर्देश जारी किए, आदेश दिए। दिसंबर 2023 की ही बात है जब बंबई उच्च न्यायालय ने अवैध होर्डिंग और बैनर के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी।
बंबई उच्च न्यायालय 2017 से राज्य सरकार और विभिन्न नगर निगमों को अवैध होर्डिंग और बैनर के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश जारी कर रहा है। न्यायालय ने साफ तौर पर कहा है कि किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या व्यावसायिक संगठन को अपने निजी लाभ के लिए सड़कों और फुटपाथों पर होर्डिंग्स लगाने के लिए सार्वजनिक स्थानों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। लेकिन नगर पालिकाएं, महानगर पालिकाएं, एमएमआरडीए, मेट्रो जैसी संस्थाएं अपनी चाल से चलती रहीं क्योंकि गठजोड़ बड़ा तगड़ा है। हुजूर इस देश में पानी चुराने वाले से लेकर पुल चुराने वाले दर्जनों तरह के माफिया मौजूद हैं। व्यवस्था बदतर हो चुकी है। हुजूर, भंडारा में बच्चों की मौत को आप भूले नहीं होंगे। क्या हुआ उसका? कितनों को सजा मिली?
मैं तो न्यायालय से करबद्ध प्रार्थना करता हूं कि अब आप ही उम्मीद की किरण हैं, वर्ना ये माफिया किसी की सुनता कहां है। मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि जिस पार्टी या संस्थानों का अवैध और खतरनाक होर्डिंग लगा हो उसके नेताओं या संचालकों को जब तक नहीं घसीटेंगे तब तक ये नहीं मानेंगे। हुजूर, पानी सिर के ऊपर बह रहा है। डूबने जैसी नौबत है, कुछ करिए हुजूर. अन्यथा जनता के पास वोट का हथियार होता है हुजूर। उसे कमजोर मत मानिए..।