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लाला जगत नारायण जी को शत्-शत् नमन...

08:01 AM May 31, 2024 IST
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पंजाब केसरी के संस्थापक अमर शहीद लाला जगत नारायण जी (दादा ससुर) जी का आज जन्म दिवस है। उनका जन्म 1899 को वजीराबाद, गुजरांवाला जिले (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। सही मायने में वो एक शेर थे जिन्होंने आजादी के लिए जेलें काटी और देश की एकता-अखंडता के लिए शहीद हो गए। लाला जगत नारायण जी कट्टर आर्य समाजी, निर्भीक, निडर सम्पादक पंजाब विधानसभा के सदस्य और संसद सदस्य रहे। वो परिवार के एक सशक्त मुखिया थे। तीन पीढ़ियां उनके साथ रहती थीं। सबसे बड़ी जो उनकी खासियत थी जो वह लोगों को उपदेश देते थे, शिक्षा देते थे, उसपर खुद भी अमल करते थे। उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था। वो दहेज के विरुद्ध थे, तो उन्होंने अपने बेटे और पौत्र (अश्विनी जी) की शादी जालंधर आर्य समाज मंदिर में एक रुपए से की जो हमने भी उनका अभी तक अनुशरण किया। वो खादी पहनते थे। खादी की उनकी बिस्तर की चादर और खेस (ऊपर ओढ़ने वाला) भी खादी का होता था। उनके पास हमेशा चार जोड़ी कपड़े होते थे वो सच में सिम्पल लिविंग एंड हाई थिंकिंग में विश्वास रखते थे। उनको जितना अपने पौत्र अश्विनी कुमार से लगाव ​था उतना ही मुझसे था।

लाला जी जबतक जीवित रहे, वह समाज में पनप रही बुराइयों के खिलाफ लिखते रहे, लड़ते रहे। उन्होंने अपने अखबार को कभी भी बिजनेस की तरह नहीं देखा, बल्कि इसे हमेशा अपना मिशन माना। वह अपनी कलम द्वारा हर बुराई के विरुद्ध लड़ते थे, चाहे दहेज प्रथा, आतंकवाद या और कोई भी बुराई हो। अपने जीवन के अंतिम दिनों में जब उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शांति देवी का देहांत हो गया, तो वह भरे-पूरे परिवार में रहते हुए भी अपने आपको अकेला महसूस करते थे। उन्होंने अपने इस अकेलेपन से समाज के सभी बुजुर्गों के अकेलेपन को समझा। उन्होंने अंतिम समय में 'जीवन की संध्या' शीर्षक से बहुत से लेख लिखे। 'जीवन की संध्या' में उन्होंने बुजुर्गों की अवस्था को समझकर, उनकी समस्याओं व बच्चों को उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, के बारे में चिंतन-लेखन किया। लाला जी की अंतिम इच्छा या यूं कह लें उनका सपना था कि देश में बुजुर्गों के लिए कुछ होना चाहिए। जो वह कहते थे, करके दिखाते थे, परंतु उनकी देश के लिए आकस्मिक शहादत ने उन्हें यह करने का अवसर नहीं दिया। आज वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब उनके अधूरे सपने को पूरा करने का प्रयास है। उनकी अंतिम इच्छा को मूर्तरूप देने का प्रयास है। आज बहुत से लोग हमसे मिलने आते हैं और लाला जी और रमेश जी के कार्यों को याद करके उनकी मिसाल देते हैं, तो हमारा सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है। लाला जी के साथ मैंने जिंदगी के तीन साल बिताए, परंतु उन तीन सालों ने मेरे मन-मस्तिष्क पर तीन हजार सालों के बराबर अमिट छाप छोड़ी है, जो कभी भुलाई नहीं जा सकती। मैं लाला जी की एकमात्र पौत्रवधू हूं, जिसको उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ। शादी के समय में पढ़ रही थी। घर में बहुत लोग थे, सब उनकी बहुत सेवा करते थे, परंतु क्योंकि मैं उनकी पौत्रवधू थी, यह उनका मेरे प्रति लाड़-प्यार था कि वह सुबह की पहली चाय और शाम पांच बजे की चाय-पकोड़े मेरे हाथ से लेना पसंद करते थे। सचमुच लाला जी एक संस्कारवान घर के मुखिया, एक आजादी के सिपाही, एक देशभक्त थे, जिन्होंने सच्चाई पर चलते हुए देश की एकता के लिए अपनी जान दे दी। आओ ! हम सब मिलकर उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करें।

उन्हीं को सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में हमने बुजुर्गों की व्यापक जरूरतों को समझते हुए वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब का गठन किया।आज हमारे घर उनके जन्मदिवस के अवसर पर हवन होगा जिसमें सभी उनके पौत्र, पड़पौत्र हिस्सा लेंगे। सच में आज के दिन हम सब उनको बहुत याद करते हैं या यूं कह लो कि मेरे तीनों बेटे आदित्य, अर्जुन, आकाश प्रतिदिन अपने दादा-परदादा को अश्विनी जी के जाने के बाद बहुत याद करते हैं क्योंकि अगर पिता चला जाये तो ​िसर पर दादा-परदादा का हाथ हो तो वो कमी कम महसूस होती है। परंतु कोई भी कठिनाई आये तो वह लाला जी के जीवन संघर्ष को पढ़ते हैं। मुझसे सुनते हैं, मैं उनको अक्सर कहती हूं कि तुम तीनों किसके बेटे, किसके पौत्र और किसके पड़पौत्र हों तुम्हारी रगों में बहादुरी और संघर्ष का खून है। हिम्मत से आगे बढ़ों और उससे नई ऊर्जा लेते रहो।

writer -: Kiran Chopra

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