India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

मैं एक कलाकार...

01:27 AM Aug 16, 2024 IST
Advertisement

‘‘मैं कलाकार हूं, बॉडी लैंग्वेज समझती हूँ, एक्सप्रेशन समझती हूं... पर सर, मुझे माफ़ करिएगा मगर आपका टोन जो है इज नॉट अक्सेप्टबल” यह बात अभिनेत्री से नेता बनीं जया बच्चन ने राज्यसभा में सभापति को कही। बच्चन और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के बीच जंग की यह नई कड़ी है। धनखड़ भारत के उपराष्ट्रपति भी हैं। फिल्म अभिनेत्री ने उस ‘टोन’ पर आपत्ति जताई थी जिसमें धनखड़ ने उन्हें संबोधित किया था।
इस पर धनखड़ ने पलटवार करते हुए कहा, ''जया जी... एक अभिनेता निर्देशक के अधीन होता है... मैं स्कूल के बच्चे की तरह आपसे निर्देश नहीं चाहता। “मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं जिसने अपने बस में जितना था उससे ज़्यादा ही किया है और आप मुझे मेरे लहजे के बारे में कह रही हैं” धनखड़ ने कहा, “आप चाहे कोई भी हो, आप एक सेलिब्रिटी ही क्यों न हो...अब नहीं चलेगा,'' उन्होंने बच्चन से कहा।
“मेरा लहजा, मेरी भाषा, मेरा स्वभाव... मैं दूसरों की स्क्रिप्ट पर नहीं चलता। मेरी अपनी स्क्रिप्ट है, मैं किसी और के द्वारा संचालित नहीं हूं, साथ ही धनखड़ ने यह भी फैसला सुनाया कि विपक्षी सांसद जो कुछ भी बोलेंगे वह रिकॉर्ड में नहीं जाएगा। टीएमसी की सुष्मिता देव ने भी इस आधार पर बच्चन की वकालत की, कि वह एक सांसद के रूप में संसद में है, न कि एक सेलिब्रिटी के रूप में। धनखड़ ने पलटवार करते हुए कहा, “संसद के एक वरिष्ठ सदस्य के पास अध्यक्ष की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का कोई हक़ नहीं है।” क्रोधित धनखड़ ने यह भी कहा कि उन्हें ‘शिक्षा’ नहीं दी जा सकती और सदन में शिष्टाचार बनाए रखा जाना चाहिए। ‘बहुत हो गया’, उन्होंने कहा, जब संसद के विपक्षी सदस्यों ने नारे लगाए।
धनखड़ के रवैये से विपक्ष के सब सदस्य उत्तेजित हो गए और बच्चन के प्रति एकजुटता दिखाते हुए विपक्ष ने सदन से वाक आउट कर दिया। साहस से भरी बच्चन, जो समाजवादी पार्टी की सांसद हैं, यहीं नहीं रुकी । उन्होंने धनखड़ से माफी की मांग की। विपक्ष ने कहा कि वे धनखड़ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहे हैं। खबरों की मानें तो 87 सदस्यों ने धनखड़ के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। संविधान में राज्यसभा के बहुमत सदस्यों के प्रस्ताव और बाद में लोकसभा की सहमति से उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रावधान है।
इस बात से भली-भांति परिचित होते हुए कि प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता है, विपक्ष सिर्फ सभापति के ‘स्पष्ट और लगातार पक्षपातपूर्ण’ दृष्टिकोण को उजागर करना चाहता है। दो हफ्तों से भी कम समय में बच्चन और धनखड़ के बीच यह तीसरा आमना-सामना है। 29 जुलाई को, बच्चन ने अपने पति अमिताभ बच्चन के नाम को अपने मध्य नाम के रूप में इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई और कहा कि हर महिला की अपनी पहचान होती है।
राज्यसभा में जब सभापति ने उन्हें बोलने के लिए बुलाया और उन्हें ‘श्रीमती जया अमिताभ बच्चन’ कहकर संबोधित किया, तो अभिनेत्री ने कहा, ‘सर, सिर्फ जया बच्चन बोलते तो काफी होता है।’ जिस पर सभापति ने कहा की अभिलेखों में उनका नाम इसी तरह दर्ज है। बच्चन ने 5 अगस्त को अपने मध्य नाम में अमिताभ के इस्तेमाल पर फिर से आपत्ति जताई। धनखड़ ने उन्हें आधिकारिक रिकॉर्ड में अपना नाम बदलवाने की प्रतिक्रिया बतायी|
इस सारे मामले में दिलचस्प बात यह थी कि जया बच्चन को अप्रत्याशित रूप से समर्थन मिला। यह कोई और नहीं बल्कि श्रीमती सोनिया गांधी थीं जो एकजुटता के साथ उनके साथ खड़ी थीं। जब बच्चन ने मीडिया से धनखड़ द्वारा संसद सदस्यों के साथ किए गए व्यवहार और सदन में उनके संचालन के तरीके के बारे में बात की तो श्रीमती गांधी को सहमति में अपना सिर हिलाते हुए देखा गया। श्रीमती गांधी भी उन लोगों में शामिल थीं जिन्होंने बच्चन और अन्य लोगों के साथ सदन से वाक आउट किया।
दूसरी ओर राहुल गांधी के पक्ष में बोलते हुए बच्चन ने कहा कि, विपक्ष के नेता के बोलने के लिए खड़े होने पर जब अध्यक्ष ने माइक बंद कर दिया तो वह ‘परेशान’ हो गईं। ‘आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?’ आपको विपक्ष के नेता को बोलने की अनुमति देनी होगी। यहां आपको बता दे की, राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं। यह कोई रहस्य नहीं है कि बच्चन और गांधी परिवार के बीच अतीत में बहुत घनिष्ठ संबंध थे।
दरअसल, राजीव गांधी ने ही अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से चुनाव लड़ने के लिए चुना था। बाद में हालात ख़राब हो गयी और दोनों परिवारों में मतभेद हो गए। इसलिए हालिया मेलजोल किस ओर ले जाएगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन फिलहाल वे कम से कम प्रत्यक्ष तौर पर एक साथ खड़े नजर आ रहे हैं। अगर बात राजनीति की है तो सोनिया गांधी और जया बच्चन दोनों ने अच्छा काम किया है|
हालांकि, जूरी इस बात पर सहमत नहीं है कि क्या यह हंगामा बिना किसी बात को लेकर किया गया था। तकनीकी रूप से, अध्यक्ष का जया बच्चन को ‘जया अमिताभ बच्चन’ कहकर पुकारना सही था क्योंकि रिकॉर्ड में उनका नाम ऐसे ही दर्ज है। इसलिए, उस पर कोई भी आपत्ति अनावश्यक और अनुचित थी और जहां तक सवाल है अमिताभ के नाम और ‘महिला की पहचान’ का, तो इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि जया बच्चन ने खुद रिकॉर्ड और चुनावी हलफनामे में अपने नाम के साथ अपने पति का नाम जोड़ने का फैसला किया था। और जैसा कि अध्यक्ष ने बताया कि जया बच्चन को अपना नाम बदलने और अपने पति का नाम हटाने से कोई नहीं रोक रहा है लेकिन अध्यक्ष को दोष देना और उस नाम से बुलाए जाने पर आपत्ति उठाना, बात का बतंगड़ बनाने जैसा था।
यह बात बता दें की सांसदों के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है कि यदि वे चाहें तो बस एक फॉर्म भरकर अपना नाम बदल सकते हैं। सभी सांसदों की तरह बच्चन के पास भी यह विकल्प उपलब्ध था लेकिन उन्होंने इसका लाभ नहीं उठाया। इसके बजाय, उन्होंने और पूरे विपक्ष ने सभापति पर उंगली उठाई और कार्यवाही बाधित की।
यह स्पष्ट है कि बच्चन और उनके समर्थक राजनी​ित कर रहे थे, क्योंकि वह सदन को चलने नहीं देना चाहते चाहे उनके तथ्य कितने भी कमज़ोर हो। इस मापदण्ड से बच्चन ने विपक्ष धर्म का पालन किया है। हालांकि हर कोई इस बात से सहमत होगा कि विपक्ष का काम विरोध करना है, लेकिन हमें रचनात्मक और विघटनकारी विपक्ष के बीच अंतर करना सीखना होगा।
इसकी बात करें तो नीतिगत मामलों पर वैध आपत्तियां अच्छी हैं। कठोर कानूनों में बदलाव की मांग करना भी एक अच्छा व्यवधान है और सच कहें तो पांच बार के वरिष्ठ सदस्य बच्चन ने अक्सर मुद्दों पर योगदान दिया है। वह तीखी हो सकती हैं लेकिन उन्होंने अक्सर वैध बातें कही हैं। इसलिए अपने पति का नाम अपने नाम के साथ जोड़े जाने पर उनकी आपत्ति एक गैर-मुद्दे को मुद्दा बनाने की हताशापूर्ण कोशिश है। विपक्ष की लड़ाई लड़ने में बच्चन खरी उतरी हैं परन्तु, उन्हें और अन्य लोगों को खुद से पूछने की जरूरत है कि क्या यह अच्छी राजनीति है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक रचनात्मक और जिम्मेदार विपक्ष को किस तरह की भूमिका निभानी चाहिए। अगर बच्चन टकराव को देखा जाए तो विपक्ष निश्चित रूप से कमजोर स्थिति में है।

Advertisement
Next Article