मोदी की रूस यात्रा का महत्व
1955 में जब रूसी (तब यह सोवियत संघ कहलाता था) नेता स्व. ख्रुश्चेव दूसरे नेता बुल्गानिन के साथ भारत की आठ दिनों की यात्रा पर आये थे तो उन्होंने जम्मू-कश्मीर पर पूछे गये एक सवाल में ही साफ कह दिया था कि कश्मीर समस्या भारत व पाकिस्तान के बीच का मामला है मगर इसका हल हो चुका है और यह राज्य भारत का हिस्सा है। भारत-रूस के बीच वर्तमान में जिस प्रकार के सम्बन्ध हैं उनकी तुलना किसी अन्य देश के साथ सम्बन्धों से नहीं की जा सकती। इसका मूल कारण यह है कि रूस बुरे वक्त में भारत का साथ देने वाला सच्चा मित्र है। रूस ने भारत के आजाद होने के बाद से ही अपनी प्रगाढ़ दोस्ती का परिचय दिया है। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में रूस ने हमेशा भारत का साथ दिया। 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय रूस ने तब तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ हर मोर्चे पर सहयोग किया था और जब अमेरिका ने पाकिस्तान की पीठ थपथपाने के लिए अपना सातवां जंगी एटमी जहाजी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में उतार दिया। इसके जवाब में रूस ने कहा था कि जरा सी भी हरकत जहाजी बेड़े से की गई तो रूस उसका मुकाबला करेगा। इसका नतीजा यह निकला कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो हिस्सों में बांट दिया और 16 नवम्बर को एक एेसे नये देश बांग्लादेश का उदय विश्व के मानचित्र पर हुआ जिसे पहले पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था।
रूस के साथ भारत के परमाणु कार्यक्रम से लेकर रक्षा सामग्री व मानवीय विकास तक के क्षेत्रों में अटूट सहयोग चला आ रहा है। प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की रूस की दो दिवसीय यात्रा नये अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में हो रही है। श्री मोदी फिलहाल रूस में ही हैं जहां से वह आस्ट्रिया यात्रा पर भी जायेंगे। श्री मोदी की यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि पिछले दो साल से रूस व यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है। यूक्रेन से भी भारत के अच्छे सम्बन्ध हैं और दूसरी तरफ चीन से रूस के बहुत मधुर सम्बन्ध हैं इसे देखते हुए श्री मोदी को आपसी कूटनीतिक सम्बन्धों को इस प्रकार ऊर्जावान बनाये रखना होगा कि चीन का जिक्र किये बिना ही भारत के रूस के साथ सम्बन्ध और पक्के व मजबूत हों। इस मामले में बहुत स्पष्ट है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन सोवियत संघ के साथ खड़ा हुआ है जबकि भारत का मत है कि किसी भी विवाद का हल केवल वार्तालाप से ही होना चाहिए।
इस सम्बन्ध में अगर हम गंभीरता से विचार करें तो पायेंगे कि चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण के बाद रूस से मिलने वाली आधुनिकतम युद्धक सामग्री की टैक्नोलॉजी हर हालत में भारत व रूस के साथ ही बनी रहे। रक्षा क्षेत्र में रूस भारत का आज भी सबसे बड़ा सहयोगी देश है। यह बात दीगर है कि रूस ने अपने हथियार बनाने के लिए भारत में संयुक्त उत्पादन परियोजनाएं भी चला रखी हैं और रूस अपने हथियारों को बनाने का भारत में लाइसेंस भी देता रहा है। रक्षा सामग्री के क्षेत्र में रूस के सन्दर्भ में भारत कोई खरीदार मुल्क नहीं रहा बल्कि साझीदार बन चुका है। दोनों देशों के बीच के सम्बन्धों की दास्तां पत्थर पर लिखी हुई इबारत है। यह भी तथ्य है कि यूक्रेन से युद्ध छिड़ जाने के बाद पश्चिमी यूरोपीय देशों ने अमेरिका के साथ मिल रूस पर भारी आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये जिससे रूस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अकेलापन महसूस करे। मगर भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीद कर न केवल रूस का साथ दिया बल्कि यह भी एेलान कर दिया कि पश्चिमी देशों द्वारा जिस प्रकार रूस के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है भारत उसके पक्ष में नहीं है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि तीसरी बार प्रधानमन्त्री पद की शपथ लेने के बाद श्री मोदी की यह पहली विदेश यात्रा है, हालांकि वह इटली भी गये थे मगर वह यात्रा जी-7 देशों की बैठक में बतौर पर्यवेक्षक के थी। मगर मोदी अपनी रूस यात्रा एेसे समय में कर रहे हैं जब नाटो देशों की बैठक वाशिंगटन में हो रही है।
नाटो का गठन पश्चिमी देशों ने सोवियत संघ के खिलाफ ही किया था। इसका सन्देश भी यही जा रहा है कि भारत रूस के साथ अपने सम्बन्धों को प्रथम वरीयता में रखता है। भारत रूस से एस-400 मिजाइलों की खरीदारी कर रहा है जो जमीन से आसमान पर वार करने वाली प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है और बेजोड़ समझी जाती है। लड़ाकू विमानों जैसे मिग-29 व कोमोव हैलीकाप्टर भी रूस के ही हैं साथ ही टी-90 टैंक, एसयू 30, ए.के. 203 राइफलें भी भारत में ही संयुक्त उत्पादन क्षेत्र में बना रहा है। राइफलें भी भारतीय सेनाओं के लिए आपसी सहयोग में भारत में ही बना रहा है। इतने गहरे रक्षा सम्बन्धों के चलते रूस की सदाशयता हमारी विदेश नीति के भी केन्द्र में रहती आयी है। श्री मोदी को इन्हीं सम्बन्धों को और प्रगाढ़ बनाते हुए बदलती दुनिया में अपने सम्बन्ध पश्चिमी यूरोप व अमेरिका के साथ भी साधे रखने होंगे। विशेष तौर पर अमेरिका के साथ अपने सम्बन्धों को रूस के साथ सम्बन्धों से निरपेक्ष रखना होगा।
भारत इस मोर्चे पर रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बहुत ही करीने से साध रहा है। इसका प्रमाण यह है कि राष्ट्रसंघ में रूस के खिलाफ रखे गये प्रस्तावों में कई मौकों पर रूस का साथ दिया। भारत की विदेश नीति की बुनियाद प्रेम व शान्ति व सह अस्तित्व के सिद्धान्तों पर ही रखी गई है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते जहां पूरा पश्चिमी जगत नाटो के माध्यम से यूक्रेन को अपने कन्धे पर बैठाये घूम रहा है और उसकी फौजी मदद खुलकर कर रहा है औऱ रूस के खिलाफ विश्व में माहौल बना रहा है वहीं भारत शुरू से ही कह रहा है कि बातचीत के जरिये ही युद्ध की विभीषिका को टाला जाये। चूंकि यूक्रेन के पास भी परमाणु हथियार व संयन्त्र दोनों हैं, इसलिए भारत की राय ही अन्त में कारगर हो सकती है।