India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

अस्थिर, अनिश्चित दुनिया में भारत

02:33 AM Jul 18, 2024 IST
Advertisement

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा को लेकर पश्चिम के देश काफ़ी परेशान लग रहे हैं। तीसरी बार निर्वाचित होने के बाद नरेन्द्र मोदी की पहली विदेश यात्रा रूस की थी जबकि अब तक परम्परा रही है कि भारत के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री पड़ोस के किसी देश की यात्रा सबसे पहले करते हैं। यात्रा के दौरान नरेन्द्र मोदी और पुतिन के बीच गर्मजोशी को भी पश्चिम में पसंद नहीं किया गया। प्रधानमंत्री ने रूस को ‘सुख दुख का साथी’ कहा, जो बात पुतिन को पसंद आई। कड़वी टिप्पणी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की थी कि, “दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नेता का दुनिया को सबसे खूनी नेता को ग़ले लगाना निराशाजनक है”। जेलेंस्की की टिप्पणी रूस द्वारा यूक्रेन की राजधानी कीव के बच्चों के अस्पताल पर हमले के बाद आई जिसमे 41 मारे गए। हमला तब हुआ जब मोदी रूस के लिए रवाना हो चुके थे। लेकिन इससे भी सख्त टिप्पणी जो एक प्रकार से चेतावनी है, भारत स्थित अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी की थी कि अभी भारत और अमेरिका के रिश्ते ‘इतने गहरे नहीं हैं’ कि उन्हें ‘यक़ीनी मान लिया जाए’। यह बात उन्होंने अपने भाषण में कई बार दोहराई ताकि कोई ग़लतफ़हमी में न रहें कि भारत के प्रधानमंत्री की रूस यात्रा को वाशिंगटन में बिल्कुल पसंद नहीं किया गया। भारत की स्वतन्त्र विदेश नीति पर भी प्रहार करते हुए राजदूत की नसीहत थी कि “युद्ध की स्थिति में सामरिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज़ नहीं है”।
अमेरिका के राजदूत की टिप्पणी असामान्य है और कूटनीति की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन है क्योंकि उन्होंने यह भी कहा कि “हम इस रिश्ते में जैसा निवेश करेंगे हमें वैसे ही परिणाम मिलेंगे”। टाईम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रयास किया था कि मोदी इस वक्त रूस न जाऐं पर भारत ने बात नहीं मानी और अपनी विदेश नीति पर अमेरिका के वीटो को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। फ़रवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। यह उनकी बहुत बड़ी भूल थी जिसकी रूस समेत दुनिया बहुत क़ीमत चुका रही है। सितंबर 2022 में पुतिन के साथ अपनी मुलाक़ात में नरेन्द्र मोदी ने भी उन्हें नसीहत दी थी कि “यह युद्ध का युग नहीं है”। पश्चिम में पुतिन को अंतर्राष्ट्रीय खलनायक कहा जा रहा है पर भारत ने रूस के हमले की कभी आलोचना नहीं की। पश्चिम के देश जो यूक्रेन को लेकर उद्वेलित हैं, ने भी ग़ाज़ा के लोगों पर इज़रायल के बर्बर हमले को रोकने के लिए ठोस कुछ नहीं किया। अर्थात सब अपना अपना हित देखते हैं पर हमारी आलोचना हो रही है क्योंकि हम रूस के साथ अच्छे सम्बंध अपने हित में समझते हैं।
नरेन्द्र मोदी ने इस वक्त रूस का दौरा क्यों किया जबकि कोई मजबूरी नहीं थी ? दोनों नेता 17 बार मिल चुकें हैं और मोदी 6 बार रूस की यात्रा कर चुकें हैं। रूस में हमारे पूर्व राजदूत पंकज सरन का लिखना है कि ‘रिश्ता सही रखना दोनों के हित में है’। हम अमेरिका से कुछ निराश भी हैं। अमेरिका के साथ सम्बंध बेहतर करने का सबसे अधिक प्रयास नरेन्द्र मोदी के समय हुआ है पर फिर भी उधर से कांटे चुभाने की कोशिश होती रहती है। बार बार कहा जा रहा है कि भारत का लोकतंत्र खतरें में है जबकि आम चुनाव बता गए हैं कि ऐसी कोई बात नहीं है। धार्मिक आज़ादी को लेकर भी हम पर कटाक्ष किए जा रहे हैं। अमेरिका ने अपने देश में उन्हें पनाह दे रखी है जो भारत के टुकड़े करवाना चाहते हैं। यह दोस्ताना कदम नहीं है। गुरपतवंत सिंह पन्नू का मामला भी ज़रूरत से अधिक उछाला गया। उसे भारत के खिलाफ धमकियां देने के लिए खुला छोड़ दिया गया है। खालिस्तानियों का समर्थन कर कैनेडा और अमेरिका की सरकारें मिल कर भारत को दबाव में रखना चाहतीं हैं। इसीलिए मास्को की यात्रा कर अमेरिका को संदेश दिया गया है कि हम अपने आंतरिक मामलों में दखल नहीं चाहते और हम अपनी सामरिक आज़ादी से समझौता नहीं करेंगे।
लेखक ज़ोरावर दौलत सिंह ने लिखा है, “भारत यह भी समझता है कि अमेरिका हमें चीन के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है। उनकी रुचि हमें सुपर पावर जिसके अपने जायज़ हित और महत्वाकांक्षा हो सकती है, बनाने में नही हैं”। हमारी सरकार भी यही समझती लगती है। अमेरिका से निराश भारत ने रूस के साथ अपने रिश्तों को फिर जीवित कर लिया है। हम किसी का मोहरा बनने के लिए तैयार नही हैं। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, “अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत रूस के साथ अपने सम्बंध बरकरार रखेगा...भारत पश्चिमी ख़ेमों में फिसलने नहीं लगा”। यह भी दिलचस्प है कि आमतौर पर भारत को रगड़ा लगाने वाले चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने टिप्पणी की है कि मोदी की यात्रा से अमेरिका की रूस को अलग-थलग करने की नीति फेल हो गई है। चीन फ़ॉरन अफ़ेयर्स यूनिवर्सिटी के प्रो. ली हेईडोंग ने लिखा है, “भारत अमेरिका की रूस के खिलाफ उकसाने की नीति में नहीं फंस रहा’। यह दिलचस्प है कि मास्को के इस शिखर सम्मेलन पर चीन का रवैया नकारात्मक नहीं है। वह समझते हैं कि भारत-रूस के घनिष्ठ सम्बंधों से अमेरिका की इस क्षेत्र में दखल पर कुछ नियंत्रण होगा।
अगर हम पुरानी हिन्द-रूस मैत्री की भावना में न भी बहे, हक़ीक़त है कि दोनों भारत और रूस को एक दूसरे की ज़रूरत है। इसीलिए इतनी गर्मजोशी देखी गई और प्रधानमंत्री मोदी ‘मेरे प्रिय मित्र’ व्लादिमीर पुतिन को मिलने गए। हम रूस पर सस्ते तेल और रक्षा सप्लाई के लिए निर्भर हैं। यूक्रेन के युद्ध से पहले 2025 का ट्रेंड टार्गेट 30 अरब डॉलर रखा गया था पर पिछले साल में ही यह 67.70 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसका बड़ा कारण तेल और तेल उत्पाद हैं। तेल में रूस का डिस्काउंट इतना है कि वह साउदी अरब की जगह भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन गया है। पिछले 25 वर्षों में हमने रक्षा सप्लाई के स्रोतों को अधिक फैला दिया है। हम अमेरिका, इज़राइल, फ्रांस और दक्षिण कोरिया से भी रक्षा सामान मंगवा रहे हैं पर रूस पर निर्भरता क़ायम है। पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ टकराव ख़त्म नहीं हुआ। ऐसे समय में हम रूस से सामान और स्पेयर की सप्लाई में कोई रुकावट नहीं चाहते। हमारे लिए चीन-फ़ैक्टर सबसे अधिक महत्व रखता है। हम रूस की अनदेखी नहीं कर सकते।
हम यह भी चाहते हैं कि रूस चीन के पाले में बिल्कुल न चला जाए। हमें रूस से आश्वासन चाहिए कि वह चीन की तरफ़ नहीं झुकेगा। निश्चित तौर पर मोदी और पुतिन की वार्ता में यह मामला उठाया गया होगा। अमेरिकी दबाव के कारण रूस और चीन बहुत नज़दीक आ गए हैं। पिछले दो महीने में पुतिन और शी जिनपिंग दो बार मिल चुकें हैं और यह घोषणा की कि ‘उनके रिश्ते की कोई सीमा नही’। हम यह भी चाहतें है कि चीन के साथ हमारे टकराव में रूस सकारात्मक भूमिका निभाए। सामरिक पंडित बताते हैं कि 2020 के लद्दाख टकराव के समय रूस ने ऐसी भूमिका निभाई थी। पुतिन के साथ वार्ता में नरेन्द्र मोदी ने यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल पर हमले का ज़िक्र किया और साफ़ अपनी नापसंदगी यह कह कर व्यक्त कर दी कि, “बेगुनाह बच्चों की मौत हृदय विदारक और बहुत पीड़ादायक है”। साथ ही यह कह कर कि ‘संवाद ही समाधान का एक मात्र रास्ता है’, नरेन्द्र मोदी ने रूस और दुनिया को संदेश दे दिया कि वह यूक्रेन में रूस की कार्यवाही का अनुमोदन नहीं कर रहे। पुतिन भी जानते हैं कि वह अनिश्चित काल के लिए युदद नहीं चला सकते। इस युद्ध के कारण उनकी पुराने दुश्मन चीन पर निर्भरता बढ़ गई है जो पुतिन भी कम करना चाहेगे।दोनों पड़ोसियों के हित टकराते है इसलिए इस दोस्ती का भविष्य अनिश्चित है जबकि भारत और रूस के हितों में कोई टकराव नहीं है। पुतिन दुनिया को यह भी बताना चाहते हैं कि वह अलग थलग नहीं है इसीलिए भारत का साथ उनके लिए ज़रूरी ही नहीं, मजबूरी भी है।व्यापारिक सम्बंधों में चीन का विकल्प भी उभरता भारत ही है।
पश्चिम के देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं पर रूस को झुका नहीं सके न ही सारी नाटो ताक़त ही यूक्रेन को विजयी बना सकी है। रूस बहुत बड़ा और सैनिक तौर पर ताकतवार गौरवशाली देश है जो पश्चिम के आगे झुकने वाला नहीं। पश्चिम में हताशा साफ़ नज़र आती है जिसकी खीज भारत में अमेरिका के राजदूत ने निकाली है। पश्चिम देशों का मुक़ाबला करने के लिए रूस,चीन, उत्तरी कोरिया और ईरान इकट्ठे आ रहें हैं। हमारी पुरानी नीति गुट निरपेक्ष है। इस नीति को सारे देश का समर्थन प्राप्त है। इस बीच डानल्डट्रम्प पर हुए जानलेवा हमले ने न केवल अमेरिका की राजनीतिक पलट दी बल्कि इसका अंतर्राष्ट्रीय समीकरणों पर बड़ा प्रभाव पड़ने वाला है। अनिश्चितता बढ़ने वाली है।
इस वक्त तो ट्रम्प की लोकप्रियता चरम पर है। आप उन्हें और उनकी नीतियों को कितना भी नापसंद करते हों, यह तो मानना पड़ेगा कि उन्होंने बहुत दिलेरी से जानलेवा हमले का सामना किया है। हमले के कुछ ही क्षण बाद वह खड़े हुए और लहूलुहान चेहरे केसाथ मुट्ठी बांधकर हाथ हिलाते हुए कहा, फाइट, फाइट,फाइट।उनकी यह छवि चुनाव को प्रभावित और परिभाषित करेगी। चाहे राजनीति में कुछ निश्चित नही कहा जा सकता, पर नज़र तो यह ही आ रहा है कि उन्हें हराना कमजोर बाइडेन के लिए मुश्किल होगा। और अगर ट्रम्प जीत जातें हैं तो दुनिया बदल जाएगी। आख़िर वह दुनिया के सबसे ताकतवार आदमी होंगे। बाइडेन पुतिन से नफ़रत करते हैं जबकि ट्रम्प उन्हें मित्र समझते हैं। अमेरिका और रूस के बीच दुश्मनी कम होगी। चीन के बारे ट्रम्प की नीति और आक्रामक होगी। ट्रम्प पश्चिमी देशों के गठबंधन नाटो को बहुत पसंद नहीं करते इसलिए यूरोप में उनकी आहट से घबराहट है। अर्थात् सारे समीकरण बदलने वाले है। हमारी तटस्थ विदेश नीति जो दोनों गुटों के बीच संतुलन बना कर चलने पर आधारित है, सही रहेगी।

चंद्रमोहन

Advertisement
Next Article