भारत-मालदीव और चीन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लक्षदीप यात्रा को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां करने पर अपने तीन मंत्रियों को निलम्बित करने के बाद मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू चीन जाकर उससे गुहार लगाने में लगे हैं कि हमारे यहां पर्यटक भेजो। भारत और मालदीव के बीच विवाद को लेकर चीन ने भी भारत से खुले दिमाग और बड़े दिल वाला दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया है। चीनी राज्य मीडिया का कहना है कि चीन मालदीव और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंधों का सम्मान करता है। नई दिल्ली के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए मालदीव के महत्व को वह पूरी तरह से जानता है। भारत और मालदीव संबंध कैसे होने चाहिएं, इसके लिए चीन की किसी सलाह की जरूरत नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि मालदीव के मंत्रियों की भारत के विरोध में टिप्पणियां चीन को खुश करने के लिए की गईं या फिर राष्ट्रपति मोइज्जू का अपने मंत्रियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। जैसे ही भारत का आक्रोश सामने आया मालदीव ने 12 घंटे में ही घुटने टेक दिए। 5 लाख की आबादी वाले मालदीव को यह अहसास हो गया कि मंत्रियों के बयानों से मालदीव को बहुत आर्थिक नुक्सान होगा और भारत से संबंध भी खराब होंगे तो तीनों मंत्रियों पर एक्शन लिया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध टिप्पणियों को लेकर भारत का आक्रोश अभी शांत नहीं हुआ है और प्राइवेट पर्यटन कम्पनियों ने अपने सभी टूर पैकेज रद्द कर दिए हैं। मालदीव विवाद के बीच इजराइल ने भारत को अपना समर्थन देते हुए घोषणा की है कि वह लक्ष्दीप में डिसैलिनेशन (अलवणीकरण) प्रोग्राम शुरू करने जा रहा है। इस कार्यक्रम से भारतीय द्वीप समूह में पर्यटन को और बढ़ावा मिलेगा। दरअसल मालदीव में नई सरकार आने के बाद मालदीव और भारत के संबंधों में अनिश्चितता देखी गई। चीन समर्थक राष्ट्रपति मोइज्जू ने इंडिया आऊट का नारा देकर चुनावों में जीत हासिल की है जबकि इससे पहले राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सॉलिह की नीति इंडिया फर्स्ट की थी। मालदीव के राष्ट्रपति को यह याद होना चाहिए कि भारत ने हमेशा मालदीव की मदद ही की है। जब भी मालदीव पर संकट आया तो भारत ने आगे बढ़कर उसकी सहायता की है। चाहे वह सुनामी हो या कोरोना महामारी। वर्ष 1988 में जब मालदीव में सैन्य विद्रोह हुआ था तो भारतीय सेना ने ही सरकार बचाई थी। 2016 में उरी हमले के बाद जब पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन हुआ था तो भारत ने इस सम्मेलन के बहिष्कार की अपील की थी तब मालदीव ऐसा इकलौता देश था जिसने भारत का साथ दिया था। दिसम्बर 2014 में जब माले में जल संकट खड़ा हुआ तब भारत ने आईएनएस सुकन्या और आईएनएस दीपक को पेयजल के साथ रवाना किया था। भारतीय वायुसेना ने भी विमानों के जरिये मालदीव में पानी पहुंचाया था। इस सम्पूर्ण ऑपरेशन को ऑपरेशन नीर के नाम से जाना जाता है। चीन की गोद में बैठकर अगर मालदीव भारत से संबंधों को खराब करता है तो वह बर्बाद हो सकता है। मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है। उसके कुल रोजगार में पर्यटन का योगदान 70 फीसदी तक है।
भारत से भारी संख्या में टूरिस्ट मालदीव जाते हैं। साल 2018 में भारत से इतने ज्यादा सैलानी मालदीव पहुंचे थे कि भारत मालदीव में टूरिस्ट्स आगमन का 5वां सबसे बड़ा सोर्स था। जानकार के मुताबिक 14,84,274 पर्यटकों में से लगभग 6.1 प्रतिशत (90,474 से अधिक) टूरिस्ट भारत से थे। हालांकि 2019 में भारत से मालदीव जाने वाले सैलानियों की संख्या 2018 की तुलना में बढ़कर लगकर दोगुनी हो गई भी 2019 में 1,66,030 सैलानी मालदीव गए थे। लिहाजा मालदीव जाने वाले सैलानियों में भारत दूसरे नंबर पर था।
महामारी से प्रभावित 2020 में भारत मालदीव के लिए सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा। जिसमें लगभग 63,000 भारतीयों ने मालदीव का टूर किया था। जबकि 2021 में भारत से 2.91 लाख और 2022 में 2.41 लाख से अधिक भारतीय पर्यटकों मालदीव पहुंचे। भारत मालदीव के बाजार में 14.4 फीसदी हिस्सेदारी के साथ टॉप पर था. बात 2023 की करें तो पिछले साल (13 दिसंबर, 2023 तक) भारत से 193,693 पर्यटक मालदीव पहुंचे। भारत 11.1 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के साथ मालदीव के लिए दूसरा प्रमुख स्रोत बाजार रहा।
रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में दोनों देशों में सहयोग रहा है। भारत ने मालदीव की रक्षा को मजबूत करने के लिए रक्षा प्रशिक्षण उपकरण आैर दो हैलीकाप्टर भी दिए हैं। इसके अलावा वह भारत से चावल, मसाले, फल, सब्जियां और दवाइयां तथा सीमेंट लेता है। अगर भारत ने उसे ठुकराया तो उसे खाने-पीने के लाले पड़ जाएंगे। मालदीव की समस्या यह है कि पूर्ववर्ती यामीन सरकार के दौरान जब मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के कारण भारत और पश्चिमी देशों ने मालदीव को कर्ज देने से इनकार कर दिया। आखिरकार चीन ने उसकी मदद की। यामीन की सरकार ने चीन से भारी भरकम कर्ज लिया। 2018 के आखिर तक मालदीव के कुल बाहरी कर्ज में 70 फीसदी से ज्यादा अकेले चीन का था। 2018 में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने बताया कि मालदीव पर चीन का कर्ज़ तीन अरब 10 करोड़ डॉलर का है। इसमें सरकार से सरकार को दिया कर्ज़, सरकारी कंपनियों और मालदीव की सरकार की इजाज़त से मिला प्राइवेट सेक्टर का कर्ज़ भी शामिल है। यानि मालदीव की हालत भी श्रीलंका जैसी हो सकती है जो चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस गया है।
राष्ट्रपति मोइज्जू की चीन समर्थक नीतियों से वह देश के भीतर ही आलोचना का शिकार हो रहे हैं और मालदीव के लोग भी महसूस करते हैं कि चीन के कर्ज की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। कहीं ऐसा न हो कि चीन के चलते भविष्य में आइलैंड चीन के हाथों में ही न चला जाए। यह अब मालदीव को तय करना है कि उसे भारत से कैसे संबंध रखने हैं।