बर्फ से ढके अंटार्कटिका में भारत का डाकघर
‘‘डाकिया डाक लाया, डाकिया डाक लाया, खुशी का पैगाम कहीं दर्दे नाम लाया।’’ यह बात तो अब बहुत पुरानी हो गई है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। अब पत्रों का लम्बा इंतजार नहीं करना पड़ता, बल्कि मोबाइल पर पलभर में ही दुनिया के किसी कोने में बैठे हों बात हो जाती है। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के इस दौर में भले ही अब लोग पोस्ट ऑफ़िस का इतना यूज़ नहीं करते हैं लेकिन पोस्ट ऑफ़िस की हमारे जीवन और यादों में एक ख़ास जगह है और रहेगी। भले लोगों ने चिट्ठियां लिखना बंद कर दिया है लेकिन कई सरकारी और गैर सरकारी काम अभी इंडिया पोस्ट के माध्यम से ही किया जाता है। यहीं नहीं अब इंडिया पोस्ट ने बैंकिंग का काम भी शुरू कर दिया है। देश के लगभग हर इलाके में डाक सेवा देखने को मिल जाती है।
इसी कड़ी में इंडिया पोस्ट ने अपने ऐतिहासिक प्रयास के तहत दक्षिणी ध्रुव के पास बर्फीले महाद्वीप अंटार्कटिका में अपना तीसरा पोस्ट ऑफिस खोला है। दरअसल भारत इस बर्फीले, निर्जन इलाके अंटार्कटिका में स्थापित भारत के रिसर्च मिशन में महीनों तक 50-100 वैज्ञानिक काम करते हैं। अंटार्कटिका में भारत के रिसर्च स्टेशन का नाम ‘भारती स्टेशन’ है। इसकी शुरूआत वेब लिंक के जरिए महाराष्ट्र सर्कल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल के. के. शर्मा ने की। भारत ने अंटार्कटिका में दक्षिण गंगोत्री स्टेशन में अपना पहला पोस्ट ऑफिस खोला था। जबकि दूसरा पोस्ट ऑफिस मैत्री स्टेशन में 1990 में खुला था और अब 5 अप्रैल को तीसरा पोस्ट ऑफिस अंटार्कटिका में खोला गया है।
मनुष्य हमेशा पृथ्वी और अंतरिक्ष के बारे में जिज्ञासु रहा है। इसी जिज्ञासा के चलते मनुष्य चांद तक पहुंच चुका है और पूरा वर्ष बर्फ से ढके अंटार्कटिका में लगातार अनुसंधान कर रहा है।
भारत ने अंटार्कटिका में तीन स्थायी अनुसंधान बेस स्टेशनों का निर्माण किया है। इनके नाम हैं दक्षिण गंगोत्री (1983), मैत्री (1988) और भारती (2012)। वर्तमान में मैत्री और भारती पूरी तरह से चालू हैं। जबकि दक्षिण गंगोत्री की हालत बेहद खराब है, यह अब महज सप्लाई स्टेशन बनकर रह गया है। गोवा में स्थित राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। एनसीपीओआर संपूर्ण भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम का प्रबंधन करता है।
दक्षिण गंगोत्री (1983): यह भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के एक भाग के रूप में अंटार्कटिका में पहला भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान बेस स्टेशन था। भारत में मैत्री के आसपास एक मीठे पानी की झील भी बनाई गई है जिसे प्रियदर्शिनी झील के नाम से जाना जाता है। भारती (2012): यह भारत का सबसे नया अनुसंधान केंद्र है। इसका निर्माण 2012 में कठोर मौसम में शोधकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया गया था।
भारती भारत की पहली प्रतिबद्ध अनुसंधान सुविधा है। भारती मैत्री से लगभग 3000 किमी पूर्व में स्थित है। अब वहां भारतीय अनुसंधान बेस मैत्री द्वितीय के लिए जगह की पहचान कर ली गई है और इसकी स्थापना की प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए प्रारंभिक स्थलाकृतिक सर्वेक्षण चल रहा है।
अब सवाल यह है कि ऐसे क्षेत्र में डाक घर की स्थापना का महत्व क्या है? सुनसान और वीरान अंटार्कटिका में भारत के 50 से 100 साइंटिस्ट तक काम करते हैं। भले ही आज फेसबुक-व्हाट्सएप का जमाना है। लोग सैकेंडों में अपने चाहने वालों से कनेक्ट हो जाते हैं। चैट कर लेते हैं लेकिन अंटार्कटिका से जुड़े भारत के लोगों में अब भी खत का क्रेज है। लोग खत को मैमोरी बनाने और अंटार्कटिका का पोस्टल स्टाम्प पाने के लिए काफी उत्साहित रहते हैं।
ऐसा समय जब लोग खत लिखना छोड़ चुके हैं, ऐसे समय में लोगों को अंटार्कटिका के स्टाम्प वाले लेटर मिल रहे हैं। हर साल एक बार सारे लेटर्स को इकट्ठा किया जाता है और फिर उन्हें गोवा में हेड क्वार्टर भेजा जाता है। यहां से खतों को साइंटिस्ट्स के परिवारों को भेजा जाता है। यद्यपि इस डाकघर का प्रतीकात्मक महत्व है लेकिन बर्फ से ढके क्षेत्र में डाकघर की स्थापना करके डाक विभाग ने इतिहास रच दिया है। डाक टिकट इकट्ठी करने वाले युवाओं से अपील है कि वह अंटार्कटिका में पत्र जरूर लिखते रहें। वहां कार्यरत वैज्ञानिकों के परिवार भी ऐसा ही कर रहे हैं।