पर्यावरण, ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति जरूरी
यह सुखद, स्वस्थ समाचार है कि दो दिन पूर्व भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा है कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली व आसपास ठोस कचरे का समुचित निस्तारण नहीं होने पर केवल नाराजगी ही नहीं, अपितु चिंता भी जताई है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए. एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि हम ठोस कचरे के शोधित न होने के कारण बहुत चिंतित हैं, क्योंकि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का यह उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया क्या कहेगी, 2024 में भारत की राजधानी में प्रतिदिन 3800 टन ठोस कचरा अशोधित रह जा रहा है। 2025, 2026 और इसके बाद क्या होगा हर जगह भयानक स्थिति है। गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा जैसे क्षेत्रों में प्रतिदिन ठोस कचरा निकलने और उसे शोधित करने की क्षमता पर आंकड़ों का जिक्र करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों पर विचार करें तो यह स्वभाविक है कि इस कचरे में वृद्धि होगी, पर शहरी विकास सचिव को अधिकारियों के साथ बैठक कर समस्या का समाधान खोजने को कहा और यह भी चेतावनी दी कि अगर अधिकारी कोई ठोस प्रस्ताव खोजने में असमर्थ रहे तो अदालत कठोर आदेश जारी करने पर विचार करेगी।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय से हम देशवासियों की एक अपील है— बड़े—बड़े अधिवक्ताओं की मदद लेकर हम लोग अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते, पर जब अदालत ने स्वयं ही यह अनुभव कर लिया कि प्रदूषण मुक्त वातावरण हर नागरिक का मौलिक अधिकार है तो देश के नब्बे प्रतिशत से ज्यादा नागरिक इस अधिकार से वंचित क्यों? क्या कभी किसी ने आकर देखा कि दिल्ली से दूर भी पूरे देश में कचरे का प्रकोप है। यह कचरा सब जगह ठोस तो नहीं है, पर कूड़े के बड़े—बड़े ढेर, गंदगी, बदबू, उस पर मक्खियों के झुंड, आसपास सीवरेज का गंदा पानी यह हम लोगों की किस्मत है। जो स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ों रुपये अपने देश में खर्च किए जा रहे हैं, स्मार्ट सिटी की घोषणा एक फैशन बन गया है उसमें अपने देश के आम नागरिक कहीं स्थान नहीं पा रहे। केवल सिविल लाइन क्षेत्र, अमीरों के मोहल्ले, उन्हीं का विकास हो रहा है। वैसे प्रदूषण तो शोर का भी होता है श्रीमान। उस शोर की अभी चर्चा नहीं की जा रही जो दिन रात मोटर गाड़ियां के हार्न से पैदा हो रहा है, हमारे तो गली मोहल्लों में भी रात रात भर कुत्तों की चीख पुकार रहती है। एक नहीं अनेक आवारा कुत्ते हमारी सड़कों पर लोगों का जीवन दूभर कर रहे हैं। लोग कटते हैं, कुछ मरते हैं, कुत्तों की गंदगी गली बाजारों में फैली रहती है, पर सरकार की योजना कि इनका नलबंदी और नसबंदी करवाएंगे तब शायद दस बीस वर्ष बाद संख्या कम होगी और उस समय तक जो लोग दुनिया में रहेंगे उन्हें कुत्तों से राहत मिलेगी, यह आम जनता के साथ क्रूर सरकारी मजाक है।
सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश यह जानते होंगे कि सरकारें इन चौपायों के लिए प्यार तो प्रदर्शित करती हैं, पर जनता को इनके प्रहारों से बचाने का कोई प्रयास नहीं करती। जनता को यह कहा गया है कि नलबंदी नसबंदी के बाद भी कुत्ते लोगों के आसपास ही छोड़े जाएंगे, पर यह नहीं बताया कि क्या ये कुत्ते बाद में भोंकना और काटना बंद कर देंगे। एक बार माननीय अदालत ने यह भी कहा था कि नींद लेना भी मानवीय अधिकार है। पुलिस जब किसी अपराधी को रात रात भर सोने नहीं देती उस घटना का संज्ञान लेते हुए देश की किसी बड़ी अदालत ने यह निर्णय दिया था, पर जो हमारे घरों के आसपास, गली बाजारों में रात-रात भर कुत्ते चीखते हैं वहभी तो हमें सोने नहीं देते। हमारा अधिकार कहां गया?
इसके साथ ही भीड़ भरे मोहल्लों में श्मशानघाट बने हैं। जो बड़े बड़े राजनेता स्वयं शहरों से दूर विशाल भवनों में, वृक्षों के झुरमुट में रहते हैं वे राजनीतिक दबाव से इन श्मशानघाटों को शहरों से दूर नहीं जाने देते, पर स्वयं जहां रहते हैं वहां श्मशानघाट का धुआं पहुंचने की भी संभावना नहीं। अपने शहरों की घनी आबादियों में बने श्मशानघाटों को शहर से दूर ले जाने के लिए लंबा संघर्ष करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती, क्योंकि राजनेता अधिक हावी प्रभावी हो जाते हैं। जिस युग में मानव चंद्रमा पर जाने की तैयारी में है, हर हाथ में मोबाइल और खान पान विदेशी ढंग का हो गया है वहां पर ये सरकारें आज तक अंतिम संस्कार के लिए आधुनिक ढंग के विद्युत शवदाह गृह आधुनिक पद्धति से अंतिम संस्कार जैसे साधन जनता को नहीं दे सकी। दिन रात विदेश यात्राएं करने वाले ये नेता यूरोप अमेरिका आदि देशों से यह नहीं देखकर आए कि वहां कैसे जनता अंतिम संस्कार के प्रदूषण से भी बची हुई है। सही बात यह है कि हमें पूरी पूरी रात लाउडस्पीकरों का शोर भी सहना पड़ता है। जिस कार्यक्रम में नेताजी आएंगे वहां क्षेत्र के पुलिस अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी की सारी शक्तियां जवाब दे जाती हैं और वे लाउडस्पीकरों का शोर नियंत्रित नहीं कर पाते। शोर का प्रदूषण, नींद न मिलना, गंदगी और कूड़े और इसके साथ ही शहर की सड़कों पर चूहों का दौड़ना घरों में अन्न दूषित करना यह हमारे स्मार्ट शहरों का हाल है। अंतर इतना है कि घायल की गति घायल जाने और हमारे शासक, प्रशासक, यहां तक कि बड़े बड़े कानूनविद् भी आम घायल जनों की पीड़ा नहीं जानते। इसलिए मेरी एक विनम्र अपील जनहित में देश के नब्बे प्रतिशत से भी ज्यादा जनता के हित में देश की न्यायपालिका से है कि हमें भी प्रदूषण मुक्त वातावरण दिलवाइए। हमें नींद का अधिकार मिलना ही चाहिए।
हमें मच्छरों, मक्खियों, चूहों और कुत्तों के आतंक से बचाने का सरकारों को आदेश दीजिए। आम धार्मिक भाषा में कहते हैं हारे को हरि नाम, पर मैं यह कह रही हूं कि जिनकी कोई नहीं सुनता, उनका न्यायालय संरक्षक रक्षक बने तभी आम जन सुविधा से जी सकता है, खा सकता है, सो सकता है और शुद्ध वायु में श्वांस ले सकता है।