सजा हुआ है किडनी का बाजार
वैसे तो हम हर रोज अमानवीय खबरें पढ़ते और सुनते रहते हैं। अखबारों के पन्ने ऐसी खबरों से भरे रहते हैं। कभी-कभी मन व्यथित हो जाता है। पुरानी मंडियां खत्म हो चुकी हैं जहां इंसान बिकते थे। एक इंसान किसी दूसरे इंसान का गुलाम हो जाता था। जिस्मफरोश महिलाओं की बोली लगती थी। बच्चों की बिक्री होती थी। आज की दुनिया में जब हर चीज बिकाऊ हो चुकी है तो मानव अंगों की बिक्री को हम कैसे रोक पाते। देश के भूखे, बेरोजगार और गरीब लोग अपनी जरूरत पूरी करने के लिए किडनियां (गुर्दे) बेचते हैं। खरीददारों के संगठित गिरोह बने हुए हैं। ये इन किडनियों को डाक्टरों को बेच दलाली के रूप में अच्छी-खासी रकम हासिल करते हैं।
किडनी का व्यापार कोई नया नहीं है, देशभर के बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक यह व्यापार चल रहा है। कानून सब कुछ देखते हुए भी अंधा बना हुआ है। मानव अंगों की बिक्री का इतिहास तो बहुत पुराना है। कभी पाकिस्तान और फिलीपींस में मानव अंगों का कारोबार होता था, बाद में यह भारत में फैल गया। चेन्नई, बेंगलुरु, दिल्ली, मुम्बई और पंजाब के कई शहर इंसानी अंगों की काली तिजारत के लिए बदनाम हैं। सन् 1994 में मानव अंगों की खरीद-बेच के लिए जो कानून बना था उसमें यह विक्रय गैर कानूनी है। केवल फर्स्ट रिलेटिव ही मरीज को किडनी दान कर सकते हैं।
साल 1994 के इस कानून में बाद में कुछ संशोधन भी किया गया। इसमें करीबी रिश्तेदार की परिभाषा को बदल कर पोते-पोती, दादा-दादी को भी शामिल किया गया। जिनकी मौत हो चुकी है उनके अंग लेने के लिए अंग पुनर्प्राप्ति केंद्रों का प्रावधान हुआ। आईसीयू में भर्ती संभावित दाताओं के परिजनों से अंगदान की सहमति लेकर पुनर्प्राप्ति केंद्र को सूचित किए जाने के साथ ही कमजोर और गरीबों की रक्षा के लिए अंगों के व्यापार के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान भी किया गया। ब्रेन डेथ सर्टिफिकेशन बोर्ड के गठन को सरल बनाया गया। राष्ट्रीय मानव अंग, भंडारण नेटवर्क और प्रत्यारोपण के लिए राष्ट्रीय रजिस्ट्री की स्थापना की गई। संशोधन अधिनियम में नाबालिगों और विदेशी नागरिकों के मामले में ज्यादा सावधानी बरतने पर भी ध्यान दिया गया। डीएनए टैस्ट से उसका संबंध स्थापित होता है। फिर किडनी दान की अनुमति मिलती है। इस खरीद-बिक्री में फर्जीवाड़ा भी खूब चलता है। खून के नमूने बदल कर किडनी बेचने वाले मरीज को फर्स्ट रिलेटिव सिद्ध कर दिया जाता है। रिपोर्टें बदली जाती हैं, मरीज और डोनर के फर्जी दस्तावेज मंजूरी कमेटी के पास जाते हैं। किडनी बेचने वालों को तो 5 लाख रुपए तक मिलते हैं लेकिन मरीज को किडनी 25 लाख में बेची जाती है।
गुरुग्राम का किडनी स्कैंडल तो सबको याद ही होगा, तब डॉक्टर किडनी नाम से कुख्यात डा. अमित कुमार और उनके साथियों ने दस वर्ष में लगभग 600 किडनियां ट्रांसप्लांट की थीं और डा. किडनी गिरोह के तार दिल्ली से चेन्नई तक फैले हुए थे।
हाल ही में राजधानी दिल्ली में किडनी की खरीद-फरोख्त करने वाले गिरोह के कई सदस्यों की गिरफ्तारी भी हुई जिनमें एक महिला डाक्टर भी थी। महिला डाक्टर तीन लाख रुपए तक लेकर नोएडा के एक प्रसिद्ध अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट कर देती थी। आजकल तो फेसबुक, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर किडनी बेचने वाले उपलब्ध हैं। कोई बैंक का कर्ज उतारने के लिए किडनी बेचने को तैयार है तो कोई अपने गरीबी मिटाने के लिए या फिर अपनी किसी रिश्तेदार का इलाज कराने के लिए। किडनी ट्रांसप्लांट वो जरूरी चीज़ है जिसके जरिए किडनी के मरीजों की जान बचाई जाती है लेकिन इसी किडनी ट्रांसप्लांट को कुछ लोग किडनी रैकेट में बदल देते हैं। कुछ माह पहले गुरुग्राम में एक नामी होटल से एक बांग्लादेशी शख्स को पकड़ा गया जो एक किडनी डोनर था और उसे पैसों का लालच देकर मेडिकल वीजा पर भारत बुलाया गया था। उससे हुई पूछताछ में एक बड़े हॉस्पिटल का नाम सामने आया। बांग्लादेशी नागरिक शमीम ने पुलिस की पूछताछ में कई बड़े खुलासे किए, शमीम ने बताया कि उसने फेसबुक पर किडनी डोनेट करने का विज्ञापन देखा था जिसके बाद उसने भारत में मुर्तजा अंसारी नाम के शख्स से संपर्क किया था। इसके बाद उसके कई मेडिकल टेस्ट कराए गए और मेडिकल टेस्ट हो जाने के बाद उसे मेडिकल वीजा पर भारत बुलाया। फिलहाल इस पूरे मामले की जांच की जा रही है।
मानव अंगों की कमी दुनिया भर में एक समस्या बनी हुई है। बात अगर भारत की करें तो ऐसा नहीं है कि प्रत्यारोपण के लिए पर्याप्त अंग नहीं हैं। लगभग हर व्यक्ति जो स्वाभाविक रूप से या किसी दुर्घटना में मर जाता है वो एक संभावित अंगदाता होता है लेकिन फिर भी हमारे देश में असंख्य मरीजों को डोनर नहीं मिल पा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में इसकी जितनी मांग है उतनी उपलब्धता नहीं है। राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन की रिपोर्ट बताती है कि देश में हर साल लगभग 1.8 लाख लोग किडनी खराब होने की समस्या से पीड़ित होते हैं। जबकी किडनी ट्रांसप्लांट लगभग 12000 के आसपास होता है। भारत में हर साल लगभग 2 लाख मरीज़ किडनी, लिवर के फेल होने से मर रहे हैं, जिनमें से लगभग 10-15 फीसदी को समय पर लिवर या किडनी ट्रांसप्लांट करके बचाया जा सकता है।