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मंडल-कमंडल दोनों को साधता कमल

02:00 AM Dec 17, 2023 IST
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‘दीयों व हवाओं की दोस्ती भला कब किसके काम आई है
सिरफिरी आंधियों से गले लग कर आज लौ भी खूब रोई है
गिले-शिकवे दोनों को थे मगर
फितरतों के समंदर में दोनों ने साथ डुबकी लगाई है’
इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने भगवा पेशानियों पर गुमान की वो चंद रेखाएं खींच दी हैं जिससे मिलकर 2024 का चुनावी चेहरा आकार पाने लगा है, भाजपा रणनीतिकारों ने अपने पराक्रम से ‘मंडल’ व ‘कमंडल’ दोनों ही राजनीति को एक साथ साधने की बाजीगरी दिखाई है। तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्रियों के ऐलान में जहां जातीय संतुलन को साधने की बाजीगरी हुई है, वहीं आने वाले नए वर्ष को भक्ति रस में सराबोर करने की पुरजोर तैयारी है।
इस 22 जनवरी को अयोध्या में पीएम के करकमलों से ऐतिहासिक राम मंदिर का उद्घाटन होना है, वहीं इसके अगले ही महीने यानी फरवरी में पीएम आबूधाबी में बन रहे भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन करेंगे। संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी आबूधाबी से लगे इस भव्य मंदिर के निर्माण में ही 700 करोड़ रुपयों का खर्च आया है। इस मंदिर का निर्माण ‘बोचासनवासी अक्षर पुरुषोतम स्वामिनारायण संस्था’ के द्वारा किया गया है। 10 फरवरी से यहां ‘फेस्टिवल ऑफ हारमनी’ की शुरूआत होगी और फिर 14 फरवरी को पीएम मोदी द्वारा इस मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा। इसके अलावा अयोध्या के राम मंदिर का प्रसाद घर-घर वितरित करने की भी बड़ी योजना है, भाजपा विरोधी दलों के समक्ष भक्ति की शक्ति का नज़ारा प्रस्तुत करने का इरादा रखती है।
मोहन की मुरलिया बाजे रे !
मध्य प्रदश की कमान एक यादव नेता को सौंप कर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। इस उपक्रम से पार्टी ने बिहार व यूपी के यादवों को भी एक साफ संदेश दिया है। मोहन यादव के शपथ ग्रहण समारोह वाले स्थल को पीएम मोदी की योजनाओं वाले पोस्टरों से पाट दिया गया था, पर इन पोस्टरों में से ​िशवराज की ‘लाडली बहना योजना’ नदारद थी। एक तरह से शिवराज सिंह चौहान की पूरी उपस्थिति को ही दरकिनार कर दिया गया था। इस शपथ ग्रहण समारोह को एक योजनाबद्ध तरीके से यूपी व बिहार के यादव बाहुल्य इलाकों में बड़े-बड़े स्क्रीन लगा कर इसे लाइव दिखाया गया। यानी भाजपा शूरवीरों ने रणनीति बना कर लालू व अखिलेश के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी को​िशश की, पर सवाल यही सबसे बड़ा है कि क्या बिहार व यूपी के यादव मध्य प्रदेश के यादव नेता के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार हैं? वहीं दबे-छुपे तौर पर यह भी सुनने को मिल रहा है कि 2024 के आम चुनाव के बाद मोहन यादव ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अपनी गद्दी खाली कर देंगे। सियासत हर शै रंग बदलती है और निष्ठाएं भी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि मोहन की मुरलिया क्या नई धुन छेड़ती है।
क्या सुरजेवाला व शैलजा के पर कुतरे जाएंगे?
कांग्रेस में मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की हार की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई नेता सामने नहीं आ रहा है? प्रभारी के तौर पर दिल्ली से भेजे गए वे नेतागण भी बगलें झांक रहे हैं जिनकी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती थी, क्योंकि टिकट बंटवारे में इन दिल्ली के सुल्तानों ने अपनी मनमानी दिखाई, टिकट बंटवारे की अनियमिताओं को लेकर खूब शोर भी उठे, पर ये आवाजें दिल्ली तक नहीं पहुंच सकी। छत्तीसगढ़ में टिकट बंटवारे में सैलजा की तथा मध्य प्रदेश में रणदीप सुरजेवाला की सबसे ज्यादा चली। कांग्रेस टिकट चाहने वाले अभ्यर्थियों ने इन दोनों ही नेताओं पर कई गंभीर आरोप भी लगाए, पर इनकी आवाज नक्कारखाने में तूती ही साबित हुई। दिल्ली के इन दोनों बड़े नेताओं ने यह कह कर अपना दामन बचाने की कोशिश की है कि इन दोनों प्रदेशों में भले ही कांग्रेस की सीटें कम आई हों, पर पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ गया है।
पार्टी के हलकों में इस बात पर भी चर्चा गर्म है कि जब छत्तीसगढ़ में भाजपा चाणक्य अमित शाह कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए राज्य के पूर्व सीएम अजित जोगी के पुत्र अमित जोगी की पार्टी में खाद-पानी डालने का काम कर रहे थे तो इसकी काट के तौर पर सैलजा ने वहां क्या किया? पुलिस के कुछ बड़े अधिकारियों की मदद से भाजपा बस्तर संभाग में आदिवासी मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर रही थी तो कांग्रेस प्रभारी के पास इसकी क्या काट थी? इन प्रभारियों को सजा के बदले अब कांग्रेस हाईकमान पुरस्कृत करने जा रहा है, सैलजा व सुरजेवाला दोनों का गृह क्षेत्र हरियाणा है। सो, हरियाणा के आने वाले विधानसभा चुनाव में इन दोनों नेताओं को महती जिम्मेदारी देने पर विचार हो रहा है, भूपिंदर हुड्डा इस आइडिया से नाखुश बताए जाते हैं।
अति उत्साह में धनखड़
यह संसद पर आतंकी हमले की 22वीं बरसी थी, सनद रहे कि 13 दिसंबर 2001 को आतंकवादियों द्वारा संसद भवन पर हमला हुआ था, जिसमें हमारे कई सुरक्षा जवान शहीद हो गए थे। इस 22वीं हमले की बरसी को कवर करने के लिए मीडिया वालों को सुबह 10 से 12 बजे तक पास दिया गया था। सबसे पहले पहुंचने वालों में सोनिया गांधी व राजीव शुक्ला जैसे नेतागण थे, अमित शाह, प्रह्लाद जोशी भी समय पर पहंुच चुके थे। ये भी एक तरफ खड़े थे, फिर प्रधानमंत्री का आगमन होता है इसके बाद उप राष्ट्रपति का आगमन होता है, मान्य परंपराओं के मुताबिक सबसे पहले सलामी बिगुल बजता है और तब उद्घोषणा होती है, तब नेतागण एक-एक कर शहीदों को ‘रीथ’ यानी फूल माला अर्पित करते हैं। उपराष्ट्रपति धनखड़ के वहां पहुंचते ही नेताओं की एक लाइन लग गई, अभी बिगुल बजता इसमें पहले ही हड़बड़ी में उपराष्ट्रपति ने शहीदों को रीथ अर्पित कर दी। स्वयं पीएम, शाह व सोनिया इस दृश्य को देखते रहे। पीएम आए तो वे राजीव शुक्ला से भी घुल-मिल कर बात करते दिखे व सोनिया गांधी से भी। फिर पीएम ने उपराष्ट्रपति को भी अकेले में ले जाकर उनसे कुछ महत्वपूर्ण बातें कीं।
कांग्रेस में बड़ा फेरबदल
कांग्रेस में एक बड़े फेरबदल की आहट है। सुना जा रहा है कि राहुल गांधी राज्यों के बड़े क्षत्रपों को दिल्ली लाना चाहते हैं और उनकी जगह अपेक्षाकृत युवा नेताओं को वहां की बागडोर सौंपना चाहते हैं। माना जाता है कि इस कड़ी में अशोक गहलोत व भूपेश बघेल जैसे स्थापित नेताओं को दिल्ली लाया जा सकता है और इन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। आने वाले कुछ समय में अशोक गहलोत को पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिल सकती है। कमलनाथ फिलवक्त दिल्ली आने को तैयार नहीं हैं, पर राहुल मध्य प्रदेश में भी पार्टी की कमान अपेक्षाकृत किसी युवा नेता को सौंपना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह खड़गे की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं।
...और अंत में
जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला को कांग्रेस नेतृत्व पुरस्कृत करना चाहता है क्योंकि इस बार तेलांगना में कांग्रेस को विजयी बनाने में शर्मिला ने काफी मेहनत की थी। सूत्र बताते हैं कि आने वाले जनवरी माह में शर्मिला अपनी राजनैतिक पार्टी यानी ‘वाई एसआर तेलांगना पार्टी’ का कांग्रेस में विलय कर सकती है। कांग्रेस ने शर्मिला के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि वह खम्मम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी करें। उन्हें कांग्रेस संगठन में भी महासचिव या फिर महिला कांग्रेस में कोई बड़ा पद मिल सकता है। उन्हें कर्नाटक से राज्यसभा में भी भेजा जा सकता है।

– त्रिदीब रमण

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