मैक्रों का उल्टा पड़ा दांव
इस वर्ष दुनियाभर के करीब 70 देशों में चुनाव होने हैं। इन चुनावों में विश्व की करीब आधी आबादी हिस्सा लेगी। अमेरिका से लेकर इंडोनेशिया तक में चुनावों की गहमागहमी तेज है। भारत में हाल ही में चुनाव हुए हैं। जिसमें मोदी सरकार ने तीसरी बार सत्ता में वापसी की है। अन्य देशों के चुनाव में कहीं सरकारें वापसी करेंगी तो कहीं मौजूदा सरकारों की वापसी होगी। चुनावों के क्रम में फ्रांस में हुए संसदीय चुनावों के पहले दौर के नतीजे आ चुके हैं। नतीजों में धुर दक्षिण पंथी नेता नेशनल रैली की ली मरीन पेन ने बाजी मार ली है। नेशनल रैली ने पहले राऊंड में स्पष्ट जीत हासिल की है। जबकि मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी तीसरे पायदान पर रही है। हालांकि यह चुनाव परिणाम निर्णायक नहीं हैं, क्योंकि 7 जुलाई को होने वाले दूसरे दौर के मतदान के बाद ही राजनीतिक तस्वीर साफ होगी। फ्रांस के चुनावों में आजतक धुर दक्षिण पंथी पार्टियों ने कभी पहले दौर का चुनाव नहीं जीता था इसलिए पहले दौर के परिणाम अपने आप में ऐतिहासिक हैं। दूसरे दौर की वोटिंग में सीटों के आंकलन के मुताबिक भले ही ली मरीन पेन की पार्टी काे सफलता मिल जाए लेकिन वो भी बहुमत से दूर रह सकती है। पहले दौर के चुनाव परिणामों में वामपंथी संगठन दूसरे नम्बर पर रहा है।
यूरोपीय संसद चुनाव में इमैनुएल मैक्रों की पार्टी बुरी तरह से हार गई थी। जिसके बाद उन्होंने संसद को भंग करते हुए चुनावों का ऐलान कर दिया था। चुनावों की घोषणा से मैक्रों की अपनी पार्टी रेनेंसा पार्टी के नेता और उनके विरोधी भी हैरान हो गए थे। मैक्रों ने एक बड़ा जुआ खेला था लेकिन उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा है और अब फ्रांस में राजनीतिक स्थिित ही बदलने की सम्भावनाएं दिखाई देने लगी हैं। हालांकि मैक्रों दूसरे दौर के मतदान से पहले नेशनल रैली को पूर्ण बहुमत से रोकने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं और लोगों से अपील कर रहे हैं कि नेशनल पार्टी को अब एक भी वोट मत दें। देखना होगा कि फ्रांस की जनता कैसा जनादेश दे सकती है। नेशनल असैम्बली में बहुमत के लिए 289 सीटें जीतना जरूरी हैं, जबकि कुल सीटें 577 हैं। बगैर पूर्ण बहुमत के फ्रांस में त्रिशंकु संसद बनने की स्थिति मैं नेशनल रैली पार्टी भी अपनी अप्रवास नीतियों, टैक्स कटौती और नई कानून व्यवस्था से जुड़े प्रावधान लागू नहीं कर पाएगी। अब सवाल यह है कि फ्रांस के लोगों ने मैक्रों को क्यों नकार दिया।
कई फ्रांसीसी मतदाता मुद्रास्फीति और अन्य आर्थिक चिंताओं के साथ-साथ मैक्रों के नेतृत्व से निराश हैं, जिन्हें अहंकारी और उनके जीवन से दूर माना जाता है। नेशनल रैली पार्टी ने उस असंतोष का फायदा उठाया है, खास तौर पर टिकटॉक जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से। पेरिस में मतदाताओं के दिमाग में आव्रजन और जीवन की बढ़ती लागत जैसे मुद्दे थे क्योंकि देश में दक्षिणपंथी और वामपंथी गुटों के बीच विभाजन बढ़ता जा रहा था, जिसमें राजनीतिक केंद्र में एक बेहद अलोकप्रिय और कमजोर राष्ट्रपति था। अभियान में बढ़ती नफरत भरी भाषा ने बाधा डाली। मैक्रों की रेनेसां पार्टी और उनके गठबंधन को महज 70 से 100 के बीच सीटें मिलने की संभावना है। नेशनल असेंबली के चुनाव में यदि मैक्रों की रेनेसां पार्टी हार भी जाती है तो मैक्रों पद पर बने रहेंगे। मैक्रों ने पहले ही कह दिया है कि चाहे कोई भी जीत जाए वे राष्ट्रपति पद से इस्तीफा नहीं देंगे। दरअसल, यूरोपीय संघ के चुनाव में हार के बाद अगर मैक्रों की पार्टी संसद में भी हार जाती है तो उन पर राष्ट्रपति पद छोड़ने का दबाव बन सकता है।
इसलिए मैक्रों ने पहले ही साफ कर दिया है कि वे अपना पद नहीं छोड़ेंगे। अगर संसदीय चुनाव में मरीन ली पेन की नेशनल रैली पार्टी बहुमत हासिल कर लेती है तो मैक्रों संसद में बेहद कमजोर पड़ जाएंगे और वे अपनी मर्जी से कोई भी बिल पास नहीं करा पाएंगे। फ्रांस में राष्ट्रपति और नेशनल असेंबली के चुनाव अलग-अलग होते हैं। ऐसे में अगर किसी पार्टी के पास संसद में बहुमत नहीं है तो भी राष्ट्रपति चुनाव में उस पार्टी का लीडर जीत हासिल कर सकता है। 2022 के चुनाव में इमैनुएल मैक्रों के साथ भी यही हुआ था। वे राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गए थे लेकिन नेशनल असेंबली में उनके गठबंधन को बहुमत नहीं मिला था। नेशनल रैली पार्टी के अध्यक्ष जार्डन बार्डेला महज 28 साल के हैं और उन्होंने मैक्रों को जमकर चुनौती दी है। बहुमत न मिलने की स्थिति में हो सकता है कि फ्रांस में फिर से सह-अस्तित्व वाली सरकार बन जाए। ऐसा पहले भी हो चुका है कि जब घरेलू नीति प्रधानमंत्री के हाथ होती थी और विदेश एवं रक्षा नीति के फैसले राष्ट्रपति लेते थे। हो सकता है कि इमैनुएल मैक्रों जार्डन बार्डेला को प्रधानमंत्री पद की पेशकश कर सकते हैं। चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है और फ्रांस के समाज में बुरी तरह बंटवारा हुआ है। बढ़ती आतंकी घटनाओं और अवैध प्रवासियों के स्थानीय लोगों को निशाना बनाए जाने से भी लोगों में काफी आक्रोश था। देखना होगा कि अंतिम जनादेश क्या कहता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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