ममता बनर्जी की दुविधा !
प. बंगाल में जूनियर डाॅक्टरों की हड़ताल ने जो रुख अख्तियार किया है उससे दुखी होकर राज्य की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने अपना पद तक छोड़ने की इच्छा व्यक्त की है। पिछले लगभग एक महीने से राज्य के सभी अस्पतालों के जूनियर डाक्टर अपनी एक साथी के साथ बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या हो जाने की घटना पर उत्तेजित हैं और न्याय किये जाने की मांग कर रहे हैं। ममता दी की सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर महिलाओं के साथ बलात्कार व हत्या की घटनाओं को रोकने के लिए एक विशेष कानून भी बनाया जिसमें बलात्कारी को फांसी की सजा दिये जाने का प्रावधान है। यह विधेयक बंगाल विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित किया परन्तु राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति की सहमति के लिए अग्रसरित कर दिया। डाॅक्टरों की हड़ताल के मुद्दे पर राज्य में जमकर राजनीति भी हो रही है और विपक्षी पार्टी भाजपा इस मामले में मुख्यमन्त्री का इस्तीफा चाहती है। समझा जाता है कि हड़ताली डाॅक्टरों के एक गुट को भी भाजपा का समर्थन प्राप्त है।
हड़ताली डाॅक्टरों का मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और इसने डाॅक्टरों को निर्देश दिया था कि वे अपनी हड़ताल समाप्त करके काम पर लौटें। इसके लिए न्यायालय ने एक अन्तिम समय भी दिया था मगर हड़ताली डाॅक्टरों ने उस पर अमल नहीं किया। इस वजह से राज्य की समस्त स्वास्थ्य सेवाएं विपरीत रूप से प्रभावित हो रही हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ममता दी ने हड़ताली डाक्टरों से वार्ता का प्रस्ताव रखा था। उनके इस प्रस्ताव को भी डाॅक्टरों ने निरस्त कर दिया। ममता दी अपनी सरकार की साख रखने के लिए डाॅक्टरों से बातचीत करके कोई बीच का रास्ता निकालना चाहती थीं और हड़ताल समाप्त कराना चाहती थीं परन्तु डाॅक्टरों के कड़े रुख की वजह से यह भी संभव नहीं हो सका। राज्य सरकार ने बीते कल के सायंकाल तक का समय डाॅक्टरों को दिया था कि उनके प्रतिनिधि बातचीत करने के लिए सरकार द्वारा नियत स्थान पर पहुंचें परन्तु उन्होंने इस वार्ता प्रस्ताव का भी बहिष्कार किया और बातचीत करने कोई नहीं पहुंचा। ममता दी ने हड़ताली डाॅक्टरों के प्रतिनिधियों का अन्तिम क्षण तक इन्तजार किया मगर वे वार्ता स्थल तक पहुंचने पर ये नारे लगाने लगे कि उन्हें न्याय नहीं बल्कि ममता बनर्जी का इस्तीफा चाहिए। ममता बनर्जी ने इसके बाद एक प्रेस काॅन्फ्रेंस को सम्बोधित किया और घोषणा की कि वह डाॅक्टरों की समस्या न सुलझा पाने के लिए राज्य के लोगों से माफी मांगती है और इस्तीफा देने को तैयार है। उन्हें पद का मोह नहीं है।
ममता दी प. बंगाल की जमीन से उठी नेता मानी जाती हैं और जनसंघर्ष के रास्ते से वह मुख्यमन्त्री की कुर्सी तक पहुंची है। अतः उनकी राजनीति समझना भी आसान काम नहीं माना जाता। ममता जानती हैं कि उनके राज्य में महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं होती हैं और कोलकाता के आर जी कर मेडिकल काॅलेज की पोस्ट ग्रेजुएट छात्रा के साथ पिछले दिनों बहुत ही जघन्य परिस्थितियों में एेसी घटना हुई जिसके बाद उसकी हत्या भी कर दी गई। अतः इस मुद्दे पर पहले कोलकाता के जूनियर डाॅक्टर उत्तेजित हुए और बाद में पूरे राज्य में उनका आन्दोलन फैल गया। डॉक्टरों की तरफ से विपक्षी पार्टी भाजपा ने भी जमकर पैरवी की। अतः ममता दी के लिए डाॅक्टरों का आन्दोलन दुधारी तलवार बन गया। एक तरफ राजनैतिक मोर्चे पर वह अकेली पड़ती गईं और दूसरी तरफ आम नागरिकों की सहानुभूति भी डाॅक्टरों के साथ होती चली गई। परन्तु इसका मतलब यह नहीं होता है कि प. बंगाल के राज्यपाल श्री सी.वी. आनंदबोस यह कहने लगे कि वह मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी का सामाजिक बहिष्कार करेंगे। उनका ऐसा कथन पूरी तरह संविधान विरोधी व राज्यपाल के पद की गरिमा के विरुद्ध है। श्री बोस यह कह रहे हैं कि वह अब ऐसे किसी भी समारोह में नहीं जायेंगे जिसमें मुख्यमन्त्री शामिल होंगी।
श्री बोस दूसरी तरफ कह रहे हैं कि ममता दी जनता की भावनाओं को समझने में असफल रही हैं अतः उन्होंने अपने दायित्व का निर्वाह नहीं किया है। श्री बोस शायद भूल रहे हैं कि ममता दी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में लगभग दो-तिहाई बहुमत मिला था। डाॅक्टरों को न्याय दिलाने के लिए ममता दी की सरकार ने वैधानिक तरीके इस्तेमाल करके जरूरी इन्तजाम करने की कोशिश भी की और लोकतान्त्रिक मान्यताओं के दायरे में डाॅक्टरों से बातचीत के दरवाजे भी खुले रखे और यहां तक रखे कि कल वह बातचीत का समय समाप्त हो जाने के बाद भी और तीन घंटे तक उनका इन्तजार करती रहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में साफ कह दिया था कि यदि मंगलवार की शाम पांच बजे तक डाॅक्टर अपने कार्य पर नहीं लौटते हैं तो न्यायालय राज्य सरकार को उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से नहीं रोक सकेगा। इसके बावजूद मुख्यमन्त्री ने किसी हड़ताली डाक्टर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की और अपने सभी प्रयास असफल हो जाने के बाद त्यागपत्र देने की इच्छा व्यक्त कर दी। इसलिए श्री बोस कौन सा पैमाना लेकर बैठे हुए हैं जिससे वह यह कह सकें कि मुख्यमन्त्री अपने दायित्व का निर्वाह करने में सफल नहीं रहीं और इसे आधार मानकर वह उनका सामाजिक बहिष्कार करेंगे। ममता दी संवैधानिक पद पर जब तक हैं तब तक राज्यपाल को उनका सम्मान नियमों के तहत करना होगा वरना वह स्वयं ही संविधान का पालन न करने के भागी होंगे। राज्यपालों को सार्वजनिक बयानबाजी से दूर रहना चाहिए और चुनी हुई सरकारों के कामों में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा राज्य में संविधान का शासन देने के लिए होती है। वे कोई चुने हुए व्यक्ति नहीं होते केवल राष्ट्रपति की प्रसन्नता पर उनका कार्यकाल निर्भर करता है।