ममता दी और इंडिया गठबन्धन
प. बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता दीदी की राजनीति निश्चित तौर पर जमीनी राजनीति रही है जिसके बूते पर उन्होंने अपने राज्य से 2011 में वामपंथियों के 34 साल पुराने शासन का अन्त किया था। उनमें जमीन सूंघ कर राजनीति की नब्ज पकड़ने की कला इसी वजह से है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की जिस तेज अन्दाज में निन्दा की है और कहा है कि पार्टी आगामी चुनावों में यदि 40 सीटें भी जीत जाये तो बड़ी बात होगी, बताता है कि श्री राहुल गांधी की न्याय यात्रा ने उन्हें एेसी भविष्यवाणी करने के लिए मजबूर किया है। कारण साफ है कि जिस तरह से बंगाल पहुंचने पर राहुल गांधी का वहां की जनता ने स्वागत किया और उन्हें ताजा राजनैतिक दौर में विपक्ष की मुख्य आवाज समझा उससे ममता दी को अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की जमीन दरकती नजर आ रही है। अतः उनका यह कहना कि राज्य में अकेले तृणमूल कांग्रेस ही भाजपा से मुकाबला करेगी, साफ संकेत दे रहा है कि वह इंडिया गठबन्धन से बाहर निकलने की भूमिका बना रही हैं परन्तु कांग्रेस के रणनीतिकार बिहार में नीतीश बाबू के पाला बदल कर सत्ताधारी एनडीए में शामिल होने से बहुत चौकन्ने हो गये हैं और अपनी तरफ से ममता दी को कोई ऐसा अवसर देना नहीं चाहते हैं जिससे वह इंडिया गठबन्धन को छोड़ने का कोई बहाना तलाश सकें। इसे देखते हुए बंगाल में आगामी लोकसभा चुनाव में त्रिकोणात्मक संघर्ष होना पक्का माना जा रहा है। यह लड़ाई तृणमूल कांग्रेस , ‘कांग्रेस- वामपंथी’ गठजोड़ व भाजपा के बीच होगी।
ममता दी की सबसे बड़ी दिक्कत राज्य के 28 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाताओं को लेकर है जिनका स्पष्ट झुकाव कांग्रेस की तरफ लग रहा है लेकिन इंडिया गठबन्धन की अगुआ पार्टी कांग्रेस की दिक्कत यह है कि वह देश के विभिन्न मजबूत क्षेत्रीय दलों का गठबन्धन है। अतः क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में सीटों का बड़ा हिस्सा अपने पास रखना चाहते हैं और कांग्रेस को अपनी ‘दुम’ दिखाना चाहते हैं जबकि कांग्रेस गठबन्धन की एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है। दक्षिण भारत में कांग्रेस के साथ यह समस्या नहीं है परन्तु समस्या उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी कम नहीं है जहां राज्य की प्रमुख विपक्षी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने कांग्रेस को 80 में से केवल 11 सीटें देकर सीट बंटवारे को अन्तिम मान लिया। इस राज्य में भी मुस्लिम मतदाता 16 प्रतिशत के आसपास हैं और उनका झुकाव भी कांग्रेस की तरफ माना जा रहा है। इन क्षेत्रीय दलों के साथ दिक्कत यह है कि इनका प्रभाव अपने राज्य से बाहर नाम मात्र को ही है इसलिए उनकी राजनीति केवल भाजपा को हराने की है जिसके लिए कांग्रेस का उनके साथ होना इसलिए जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर ये सभी दल भाजपा का मुकाबला करते एक साथ नजर आयें लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि चुनावों में असली मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के राष्ट्रीय विमर्शों के बीच ही होगा और सभी क्षेत्रीय दलों को इनमें से किसी एक का चुनाव करना पड़ेगा क्योंकि भाजपा व कांग्रेस के बीच असली लड़ाई उनके अपने-अपने भारत की परिकल्पना (आइडिया आफ इंडिया) के बीच होगी जिसे राहुल गांधी विचारों का महासंग्राम बता रहे हैं। इस चुनावी युद्ध में विचारों के स्तर पर समानता रखने वाले दल ही एनडीए और इंडिया के खेमों में नजर आयेंगे। सुविधावादी क्षेत्रीय दल इस लड़ाई में तटस्थ भी नजर आ सकते हैं जैसे कि ओडिशा में बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस व उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी। क्या इस तरफ ममता दी भी बढें़गी, देखना केवल यह होगा लेकिन हम जानते हैं कि ममता दी अभी भी इंडिया गठबन्धन की सदस्य हैं और उन्होंने ही इस खेमे की तरफ से प्रधानमन्त्री पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम उछाला था। इसके बाद ही बिहार में जनता दल (यू) के अध्यक्ष व मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने पाला बदला और वह भाजपा के साथ हो लिये।
बिहार से भी राहुल गांधी की यात्रा को जबर्दस्त जन समर्थन मिलने की खबरें आईं। दरअसल कांग्रेस चाहे लाख बार कहे कि राहुल की यह यात्रा चुनावी नहीं है परन्तु इसका असली उद्देश्य चुनाव प्रचार ही है क्योंकि मार्च में जब यह यात्रा समाप्त होगी तो चुनावों की घोषणा हो चुकी होगी और राहुल गांधी को उन राज्यों में जाने की खास जरूरत नहीं रहेगी जहां से उनकी यात्रा होकर गुजरेगी। इस यात्रा का जो रास्ता तय किया गया है वह भाजपा के प्रभाव वाले इलाकों से ही किया गया है। मसलन यात्रा 11 दिन उत्तर प्रदेश में घूमेगी और आठ दिन झारखंड में लेकिन ममता दी को सिर्फ प. बंगाल से मतलब है। इसीलिए उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अपनी यात्रा दूसरे राज्यों में करें प. बंगाल में तो वह भाजपा का मुकाबला करने में पूर्णतः सक्षम हैं। उनके ऐसे तेवर बता रहे हैं कि वह भी नीतीश बाबू की तरह इंडिया गठबन्धन से पल्ला छुड़ा सकती हैं और राज्य के मुस्लिम मतदाताओं को सन्देश दे सकती हैं कि केवल वह ही भाजपा को परास्त कर सकती हैं क्योंकि कांग्रेस की तो राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से केवल दो ही हैं जबकि उनकी 22 व भाजपा की 18 हैं। राजनीति में चक्कर के बीच चक्कर होते हैं। ममता दी का प्रयास इन्हीं चक्करों के ऊपर अपना बड़ा चक्कर बनाना लगता है।