मणिपुर : विश्वास बहाली जरूरी
मणिपुर की हिंसा देश के इतिहास में एक काला अध्यय है। राज्य में अराजकता की स्थिति बनी हुई है। राज्य में हिंसक घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही। यह भयानक विडंबना ही कही जाएगी कि दुनिया में विश्वगुरु कहलाये जाने वाले भारत के एक राज्य में ऐसे बर्बर कांड देखने को मिले हैं जिसने सबके दिल और दिमाग को झकझोर कर रख दिया। सवालों का शोर बढ़ता ही जा रहा है लेकिन समस्या यह है कि मणिपुर में हुई हिंसा की घटनाओं काे अन्य राज्यों में हो रही घटनाओं का हवाला देकर जायज ठहराने का कृत्य किया गया, जो किसी भी सभ्य समाज के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। इससे राज्य की एन. बीरेन सरकार को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। अब कुकी समुदाय के एक व्यक्ति को जिंदा जलाने का वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में किसी आरोपी का चेहरा तो नजर नहीं आ रहा है केवल आसपास कुछ आरोपियों के पांव जरूर दिख रहे हैं। इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फ्रंट के प्रवक्ता ने वीडियो शेयर कर इसे मई महीने का बताया।
हाल ही में 2 लापता छात्रों की हत्या का वीडियो सामने आने पर पैदा हुआ आक्रोश अभी शांत नहीं हुआ था कि इस वीडियो से आक्रोश और फैल गया। इंफाल में राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री के घर के पास ग्रेनेड ब्लास्ट हुआ और इस हमले में सीआरपीएफ का जवान घायल हुआ। 3 मई से मणिपुर में शुरू हुई हिंसा 5 माह बाद नए मोड़ पर है। मैतेई समुदाय मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और उनकी सरकार का खुलकर समर्थन कर रहा था। अब उन्हीं के खिलाफ होता जा रहा है। इसकी वजह है 17 साल की लड़की और 20 साल के युवक की हत्या का होना। मणिपुर में गिरफ्तारियों को लेकर कुकी और मैतेई समुदाय भेदभाव के आरोप लगा रहे हैं। आक्रोशित महिलाएं लगातार प्रदर्शन कर रही हैं। नागरिक, समाज और लोकतंत्र पसंद ताकतों का विरोध बढ़ता ही जा रहा है। यह बेहद दुखद स्थिति है कि अपने ही देश में लोग पराए हो जाएं और हिंसा के कारण लोगों को जान बचा कर राज्य से पलायन करना पड़े।
मणिपुर की महिला खिलाड़ियों ने देश को कितने ही गौरव और आनंद के क्षण दिए हैं। ओलंपिक खेलों जैसे मंच पर अपनी श्रेष्ठता साबित की है। इस तरह के आदर्श राज्य में हिंसा का होना कितना दुखद है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा है कि मैतेई और कुकी समुदाय से वार्ता करना उनकी प्राथमिकता है ताकि विश्वास बहाली हो सके और हर समुदाय अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सके। उनका कहना है कि वे अलग-अलग माध्यमों से औपचारिक बातचीत शुरू कर चुके हैं और शांति समिति अपना काम कर रही है। मुख्यमंत्री का कहना है कि सभी गिरफ्तारियां ठोस पुलिस सबूतों के आधार पर की जा रही हैं। उनसे यह भी सवाल किया गया कि केन्द्र सरकार नए डीजीपी, सुरक्षा सलाहकार की नियुक्तियों और केन्द्रीय मंत्रियों के बार-बार दौरे से राज्य के मामलों में हस्तक्षेप कर रही है तो इसका यह संकेत नहीं कि वह केन्द्र का विश्वास खो चुके हैं। इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर केन्द्र को उन पर विश्वास नहीं रहा तो वह अन्य विकल्प अपना सकती थी। हैरानी की बात तो यह है कि हिंसा के 5 महीने बाद मुख्यमंत्री को राज्य के समुदायों से बातचीत करने की याद आई है। यह कदम तो उन्हें हिंसक घटनाएं शुरू होते ही उठा लेना चाहिए था। जातीय हिंसा में अब तक 180 लोग मारे गये हैं। 1200 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। लगभग 15000 लोग विस्थापित हुए हैं। पांच हजार से अधिक घरों और 386 धार्मिक स्थलों को जला दिया गया है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्य में जातीय हिंसा को बढ़ावा देने में बाहरी ताकतों और नशीले पदार्थों का धंधा करने वालों ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। हिंसा के तार म्यांमार और बंगलादेश के आतंकी संगठनों से जुडेे़े हुए हैं। राज्य में 1993 के बाद इतनी बड़ी भीषण हिंसा हुई है। तब एक दिन में 100 से ज्यादा लोगों को मार दिया गया था। जरूरत इस बात की है कि राज्य सरकार मैतेई और कुकी समुदाय से बातचीत करे और दोनों में विश्वास पैदा करें। शांति बहाली के लिए राज्य के सभी दलों के नेताओं को भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सरकार का साथ देना होगा। बेघर हुए लोगों का पुनर्वास जल्दी से जल्दी करना होगा। सरकार को अपनी नीतियों और योजनाओं से यह साबित करना होगा कि वह सभी वर्गों के लिए काम कर रही है। कोई एक समुदाय उनके लिए विशेष नहीं है बल्कि सभी समुदाय उनके लिए विशेष हैं। अगर राज्य में हिंसा और अशांति बरकरार रही तो यह समूचे पूर्वोत्तर के लिए नुक्सानदेह हो सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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