बलूचिस्तान में नरसंहार
बलूचिस्तान में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी द्वारा पाकिस्तानी सेना और नागरिकाे को निशाना बनाकर किए जा रहे नरसंहार से साफ है कि वहां पूरी तरह से अराजकता का माहौल है। यह हमले दिखाते हैं कि पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों से अलग एक स्वतंत्र बलूचिस्तान के लिए लड़ रहे विद्रोही संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने आसान और मुश्किल दोनों तरह के लक्ष्य को भेदने की महत्वपूर्ण क्षमता हासिल कर ली है। पाकिस्तान लगातार बलूच राष्ट्रवादी उग्रवादियों की हिंसक हरकतों के लिए देश के दुश्मनों को दोषी ठहराता रहा है। 2017 से पाकिस्तानी अधिकारियों ने पकड़े गए पूर्व भारतीय नौसेना अिधकारी कुलभूषण यादव द्वारा दिए गए कथित बयानों का इस्तेमाल किया जो अभी भी पाकिस्तान की जेल में हैं। जिस तरह से बीएलए ने पाकिस्तानी सेना के जवानों, एक बस से 23 पंजाबी नागरिकों को बाहर निकालकर हत्याएं की हैं उससे पाकिस्तानी सेना पर दबाव काफी बढ़ गया है। पाकिस्तान पहले ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से गम्भीर समस्या का सामना कर रहा है।
पाकिस्तान सेना का बलूचिस्तान में दमन और मानवाधिकार उल्लंघन का लम्बा रिकार्ड रहा है। पाकिस्तानी सेना ने वहां हजारों लोगों को गिरफ्तार कर गायब किया है। 2001 से लेकर 2017 के बीच पांच हजार से अधिक बलूच लोग लापता हुए हैं जिनका कोई अता-पता नहीं है। पाकिस्तानी सेना की क्रूरता के मुकाबले बलूच समूहों ने भी हिंसा का रास्ता अपना लिया है। बलूच विद्रोहियों ने जिस तरह से पहचान पत्र देखकर 23 पंजाबी बस यात्रियों की हत्या की उससे सवाल उठता है कि आखिर बलूच पंजाबियों के खून के प्यासे क्यों हैं। आजादी के बाद से ही बलूचिस्तान प्रांत के लोग लगातार बुनियादी सुविधाओं के अभाव में रहे हैं। इस प्रांत को पाकिस्तान ने लगातार अनदेखा किया है जिस कारण यहां के लोगों में पाकिस्तान के लोगों के लिए जहर घुल गया है। साथ ही पंजाबियों से भरी हुई पाकिस्तान सेना ने लगातार बलूचिस्तान के लोगों का शोषण किया है और लूटपाट की है। सबसे कम आबादी वाले गरीब बलूचिस्तान की जनता मानती है कि उनके संसाधनों से पंजाब और पंजाबियों का ही पेट भरता है इसीलिए वे पंजाबियों से नफरत करते हैं।
बता दें कि इससे पहले भी अप्रैल में बलूचिस्तान के नोशकी शहर के पास एक बस से 9 यात्रियों को उतारा गया था और आईडी कार्ड की जांच करने के बाद उन्हें गोली मार दी गई थी। पिछले साल भी बलूचिस्तान में कम से कम 170 आतंकवादी हमले हुए जिसमें 151 नागरिक और 114 सुरक्षाकर्मी मारे गए। बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है जो इसके भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है। यह प्राकृतिक संसाधनों-तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से समृद्ध है जिससे पता चलता है कि चीन ने इस प्रांत में विशेष रुचि क्यों दिखाई है। यह पाकिस्तान के राजस्व के प्राथमिक स्रोतों में से एक है लेकिन ये अभी तक का सबसे कम विकसित क्षेत्र बना हुआ है। लंबे समय से बलूच के लोग पाकिस्तान से अलग होने की मांग कर रहे हैं। बलूचिस्तानी एक अलग देश की मांग कर रहे हैं। इस प्रांत के लोगों का कहना है कि पाकिस्तान ने हमेशा उससे भेदभाव किया। बलूच लोगों की एक अलग संस्कृति है जो उन्हें पाकिस्तान के बाकी हिस्सों से अलग करती है और उन्हें ईरान के सिस्तान प्रांत में सीमा पार रहने वाले लोगों के करीब करती है।
भारत पर ब्रिटिश शासन के दौरान यह क्षेत्र ईरान और आधुनिक पाकिस्तान के बीच विभाजित हो गया। बलूचिस्तान की आधुनिक कहानी 1876 में कलात रियासत प्रांत का हिस्सा और ब्रिटिश भारत सरकार के बीच एक संधि से शुरू होती है। इराने कलात को आंतरिक स्वायत्तता प्रदान की उसी तरह जिस पर अंग्रेजों ने भूटान और सिक्किम के साथ हस्ताक्षर किए थे। जब 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी मिली तो बलूचिस्तान में चार रियासतें शामिल थी कलात, खारत, लारा बेला और मकरान। पिछले दो दशकों में पाकिस्तान द्वारा चीन को ग्वादर में एक नया बंदरगाह और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा विकसित करने के लिए आमंत्रित किया है। उससे भी बलूचिस्तान के लोगों में आक्रोश पैदा हुआ है। चीनी नागरिक बलूचिस्तान में आकर बैठ गए हैं और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने चीनी नागरिकों और इंजीनियरों को भी निशाना बनाया है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तानी सेना और चीन को चेतावनी दे डाली है कि वह बलूचिस्तान छोड़कर चले जाएं नहीं तो उनकी खैर नहीं।
हालात कुछ इस तरह के हैं कि क्या बलूचिस्तान पाकिस्तान का नया बंगलादेश बनेगा या पाकिस्तान के हुकमरान पहले की तरह विद्रोह को कुचलने में कामयाब होंगे। पाकिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र में तहरीक-ए-तालिबान पहले ही इलाके पर कब्जा कर चुका है। खुद पाकिस्तानी मानते हैं कि जिन्नालैंड गृहयुद्ध की कगार पर खड़ा है। बगावत, आतंकवाद और दुश्मनों से पाकिस्तान पूरी तरह से घिर चुका है। बलूचिस्तान की तरह िसंध में भी आजादी के नारे गूंज रहे हैं। पाकिस्तान की फौज इन आवाजों को कितना खामोश कर पाएगी यह भी संदेह है। मजहबी जंजीरों में जकड़े पाकिस्तान के अलग-अलग सूबों में बगावत की आग तेज हो चुकी है। पाकिस्तान के टुकड़ों-टुकड़ों में बंटने की रूपरेखा क्या तय हो चुकी है? इसका अंदाजा आने वाले दिनों में लगेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com