बाइडेन-जिनपिंग मुलाकात का अर्थ
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग में 4 घंटे चली मुलाकात में यद्यपि कोई अहम समझौता तो नहीं हुआ लेकिन कई जरूरी बातों पर सहमति बनीं। एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन के मौके पर सैनफ्रांसिस्को में दोनों नेताओं में हुई बातचीत पर दुनियाभर की नजरें लगी हुई थीं। एक साल पहले जी-20 बाली शिखर सम्मेलन के बाद दोनों नेताओं की यह पहली बैठक थी। हालांकि सालभर बाइडेन और शी जिनपिंग तीखी बयानबाजी करते रहे हैं। बैठक के बाद दोनों नेताओं में बयान जारी कर बातचीत को सफल करार दिया और कहा कि बैठक का मकसद यही था कि अमेरिका और चीन संचार के चैनल खुले रखेंगे ताकि किसी तरह का भ्रम न पैदा हो। जब भी जरूरत होगी दोनों नेता एक-दूसरे का फोन उठाएंगे। ऐसा कोई मसला खड़ा हो तो बात करके दोनों आगे बढ़ेंगे। हालांकि बैठक के बाद जो बाइडेन ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वह अब भी शी जिनपिंग को एक तानाशाह के तौर पर देखते हैं। बाइडेन ने जिनपिंग से उन कंपनियों को लेकर बात की जो दवाओं के लिए जरूरी कैमिकल्स तैयार करती हैं।
अमेरिका के आसमान में चीनी जासूसी गुब्बारों और हमास इजराइल युद्ध पर भी बात की। इस बैठक के बाद बहुत सारे सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या अमेरिका और चीन करीब आ रहे हैं? क्या ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका की चीन से डील हो गई है? बाइडेन का यह कहना कि वो वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करते हैं और वह अपने स्टैंड पर कायम रहेंगे। वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करने का सीधा मतलब यह है कि अमेरिका ताइवान पर चीन की दादागिरी का मौन समर्थन करता रहेगा जो उनकी रणनीति के विपरीत है। दोनों देशों ने उन सैन्य संपर्कों को फिर शुरू करने पर सहमति जताई जिन्हें चीन ने अगस्त 2022 में तत्कालीन प्रतिनिधि सभा अध्यक्ष नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद तोड़ दिया था। दोनों देशों के रक्षामंत्री भी अब शीघ्र ही मुलाकात करेंगे। चीन घातक दवा और नशीले पदार्थों में मिलावट करने वाली दवा फेंटेनल के निर्माण और निर्यात पर रोक लगाने के लिए भी सहमत हो गया है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अमेरिका और चीन द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर एक साथ आए हैं। ऐसी बातें भी कही गईं कि दोनों देश दुनिया के लिए और इतिहास के लिए भारी जिम्मेदारियां निभाते हैं। चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे दो बड़े देशों के लिए एक-दूसरे से मुंह मोड़ना कोई विकल्प नहीं है। दुनिया कोविड महामारी से उभर चुकी है लेकिन अभी भी जबर्दस्त प्रभाव में है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है लेकिन इसकी गति सुस्त बनी हुई है।
इजराइल हमास युद्ध और ताइवान मुद्दे पर मतभेदों के चलते दोनों देशों में तनाव है लेकिन चीन अमेरिका के साथ वार्ता करने को तैयार क्यों हुआ इसके भी अपने कारण हैं। अमेरिका ने अभी भी चीन पर लगाए व्यापार और सैन्य प्रतिबंध वापिस नहीं लिए हैं।
नई दिल्ली के लिए सबसे बड़ी चिंता चीन द्वारा अमेरिकी काराेबार को लुभाने की है। बाइडेन से मुलाकात के बाद कॉर्पोरेट नेताओं से बात करते हुए शी ने कहा "चीन-अमेरिका संबंधोंं का दरवाजा अब फिर से बंद नहीं किया जा सकता है... हमें और अधिक पुल बनाने और अधिक सड़कें बनाने की जरूरत है।" यह बयान अमेरिका और वैश्विक पूंजी के लिए चीन के कई हालिया प्रस्तावों में से एक है, जिसमें इस महीने की शुरुआत में हांगकांग में ग्लोबल फाइनेंशियल लीडर्स शिखर सम्मेलन भी शामिल है। यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि कॉर्पोरेट अमेरिका परंपरागत रूप से चीन का चैंपियन रहा है। हाल ही में, हालांकि, भू-राजनीतिक तनाव, अनुचित कोविड प्रतिबंध और धीमी चीनी अर्थव्यवस्था ने उस विश्वास को काफी नुकसान पहुंचाया है। अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार 2023 में, चीन के बारे में अमेरिकी व्यापार का आशावाद 1999 के बाद से सबसे कम हो गया है। अनुमान है कि चीन से पूंजी और निवेश की संभावित उड़ान से भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हो सकता है। हालांकि, शी की पहुंच से पता चलता है कि बीजिंग व्यापार की खातिर अपनी कुछ राजनीतिक बयानबाजी को अलग रखने को तैयार है। फिर, भारत को अमेरिका के साथ अपने राजनयिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना जारी रखना चाहिए, भले ही वह अधिक आकर्षक निवेश गंतव्य बनने के लिए और अधिक प्रयास करें। भारत को अमेरिका चीन संबंधों पर पैनी नजर रखनी होगी और अपने हितों की रक्षा के लिए मजबूती से काम करना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com