प्रियंका और वायनाड का अर्थ
कांग्रेस द्वारा वायनाड से प्रियंका वाड्रा को संसद में भेजने का फैसला कर लिया है। यूपी की रायबरेली लोकसभा सीट को अपने पास रखने के राहुल गांधी के फैसले के बाद केरल की यह लोकसभा सीट खाली की गई थी। मोदी द्वारा 'परिवारवाद' तथा राहुल की तीखी आलोचना को देखते हुए कांग्रेस ने प्रियंका की उम्मीदवारी तय करके स्पष्ट रूप से मोदी और अन्य लोगों पर निशाना साधा है, जो नियमित रूप से वंशवाद की राजनीति की निंदा करते हैं। ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने गांधी परिवार को यह विश्वास दिला दिया है कि मतदाता एक बार फिर उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। निःसंदेह, यह परिणाम का घोर गलत अर्थ होगा।
यदि कांग्रेस ने अपनी सीटों की संख्या 52 से लगभग दोगुनी कर 99 सीटें कर ली हैं, तो इसका कारण यह नहीं है कि उसे मतदाताओं की व्यापक स्वीकृति प्राप्त हुई है। ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ, क्योंकि वह अपने सहयोगियों के कंधों पर सवार थी। यूपी में जहां उसे समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के कारण जीत हासिल हुई, वहीं महाराष्ट्र में ठाकरे सेना और शरद पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन के कारण वह जीती। इसी तरह तमिलनाडु में उसने द्रमुक के सहारे जीत हासिल की। जहां भी उसका भाजपा से सीधा मुकाबला था, वहां उसका प्रदर्शन खराब रहा। कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात से लेकर दिल्ली तक उसका प्रदर्शन खराब रहा। तो सवाल उठता है कि राहुल गांधी इस तरह की विजयी भावना क्यों दिखा रहे हैं और परिणाम को राजनीति में एक बड़ा बदलाव बता रहे हैं? राहुल इसे अपनी जीत बता रहे हैं।
चुनाव पूर्व बने गठबंधन (एनडीए) के प्रमुख के रूप में मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन गए हैं। हालांकि भाजपा के लिए यह उचित ही होगा अगर राहुल यह भ्रम पालते हैं कि कांग्रेस पार्टी मतदाताओं की गुड लिस्ट में आ गई है। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि यूपी में अपनी जड़ें जमाने की कांग्रेस पार्टी की किसी भी कोशिश को समाजवादी पार्टी तुरंत नाकाम कर देगी। अखिलेश यादव नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस उनके लिए खतरा बने और विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें मांगे। यहां यह याद रखने वाली बात है कि इंदिरा गांधी ने भी एक निश्चित समय में अपने परिवार के केवल एक सदस्य को सार्वजनिक सेवा के लिए पेश किया था। और जब छोटे बेटे की दुखद हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, तब सिर्फ उन्होंने दूसरे बेटे को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी की भूमिका निभाने के लिए कहा था। पर सोनिया गांधी ने अपने दोनों बच्चों को जनसेवा के लिए कांग्रेस पार्टी को दे दिया है। यदि निकट भविष्य में गांधी परिवार में भाई-बहनों के बीच वरिष्ठता का प्रश्न उठता है, तो सोनिया गांधी को सर्वोच्च पद स्थापित करना होगा।
वास्तव में, यह बेहतर होगा यदि सोनिया भाई-बहनों के बीच संबंधों के क्रम को स्पष्ट रूप से स्थापित करें। उधर रॉबर्ट वाड्रा ने भी सही समय पर राजनीति में उतरने की इच्छा जताई है और यह सही समय भी अभी है। दरअसल लंबे समय तक गांधी परिवार के संरक्षक रहे किशोरी लाल को उनके लिए अमेठी सीट खाली करने में भी अत्यंत खुशी महसूस होगी। सपा और कांग्रेस के रिश्तों में खटास आने से पहले ही उपचुनाव में प्रियंका की जीत पक्की है, जैसा कि यूपी में कांग्रेस के बढ़ने की कोशिश के बाद होना ही चाहिए। यदि अखिलेश यादव ऐसा कर सकते हैं तो फिर राहुल गांधी क्यों नहीं? क्योंकि इस चुनाव में अखिलेश ने शिवपाल के बेटे आदित्य को भी यूपी के बदायूं से सांसद चुनवा दिया।
वहीं इस बार मेनका गांधी हार गईं जबकि वरुण को टिकट नहीं मिला। वर्तमान स्थिति में चार दशकों से अधिक समय से चली आ रही गांधी परिवार की कड़वाहट को समाप्त किया जा सकता है और इंदिरा गांधी के दोनों पोत्रों के तत्काल परिवारों को एक साथ आने में मदद भी मिलेगी। इसके अलावा वरुण गांधी बीजेपी सांसद रहते हुए भी मोदी के कटु आलोचक रहे हैं, यही वजह है कि उन्हें टिकट नहीं दिया गया। यदि मेनका और वरुण दोनों कांग्रेस से सांसद बन जाएं तो परिस्थितियां और हो सकती हैं। वंशवाद को लेकर सपा व कांग्रेस एक बार िफर घिर सकते हैं। जब आप लोकतंत्र में वंशवादी शासन को स्वीकार करते हैं, तो परिवार के कुछ सदस्यों को पारिवारिक व्यवसाय से बाहर क्यों रखा जाए, जो 140 करोड़ भारतीयों के देश पर शासन कर रहा है। इसलिए भारतीयों की भलाई के लिए अधिक से अधिक गांधीवादियों को राजनीति में लाया जाए।