राष्ट्रगान, पॉपकॉर्न और च्युइंग गम
‘‘मेरी पीढ़ी राष्ट्रगान गाते हुए बड़ी हुई है, चाहे स्कूलों में, सार्वजनिक समारोहों में और यहां तक कि फिल्म खत्म होने के बाद सिनेमा हॉल में भी। इसे एक आदर्श के रूप में देखा गया, न कि सरकार की ओर से आने वाले किसी आदेश के रूप में’’ यह बात अशांत राज्य जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की है।
मुफ्ती ने भाजपा सरकार पर स्कूलों को प्रचार स्थल बनाने और सरकार की विफलताओं से ध्यान भटकाने का भी आरोप लगाया है। यह केवल मुफ्ती का आधा सच है, उनकी पीढ़ी, कई अन्य लोगों की तरह राष्ट्रगान को सुनते और उसका सम्मान करते हुए बड़ी हुई हैं परन्तु उन्होंने सरकार की विफलताओं से ध्यान हटाने के मुद्दे पर जो बात कही है गलत है। मुफ्ती शायद जम्मू-कश्मीर राज्य में हाल ही में हुए आतंकी हमलों का जिक्र कर रही हैं। 9 जून के बाद से रियासी, कठुआ और डोडा में चार जगहों पर आतंकी हमले हुए। जम्मू क्षेत्र में हुए हमले के परिणाम स्वरूप तीर्थयात्रा कर रहे तीर्थ यात्रियों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। इनमें एक सीआरपीएफ जवान और अन्य सुरक्षाकर्मी शामिल थे। इन हमलों का भारत में हाल ही में संपन्न चुनावों और जम्मू-कश्मीर राज्य में आगामी चुनावों से कुछ लेना-देना है। इस पृष्ठभूमि में मुफ्ती के लिए सरकार पर ध्यान भटकाने का आरोप लगाना या तो ख़राब राजनीति है या फिर सांड की नज़र से चूकते हुए एक प्रहार का प्रयास है। महबूबा मुफ्ती ने वैसा ही किया है।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन 2018 से केंद्र सरकार के अधीन काम करता आ रहा है। इसलिए मुफ्ती का निर्देश पर उंगली उठाना जायज़ है लेकिन यह भी सच है कि राष्ट्रगान अतीत में विशेष रूप से संघर्षग्रस्त घाटी में विवादों में रहा है। राज्य प्रशासन द्वारा एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान का अपमान करने के लिए साइकिल चालकों को हिरासत में लेना अभी भी स्मृति में ताज़ा है। 2021 में इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने अपने पहले दीक्षांत समारोह के दौरान सभी छात्रों को राष्ट्रगान के लिए खड़े होने या अन्यथा घर पर बैठने का निर्देश देकर विवाद पैदा कर दिया था । कुछ साल पहले जब क्रिकेट मैच से पहले राष्ट्रगान बज रहा था तब अशांत राज्य के एक क्रिकेटर को च्युइंग गम चबाते देखा गया था, जिसकी व्यापक आलोचना हुई थी। वह विशेष वीडियो वायरल हो गया और कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या वह विशेष क्रिकेटर देश के लिए खेलने का हकदार है, जब वह राष्ट्रगान का सम्मान नहीं कर सका। क्रिकेटर ने अपनी ओर से यह कहकर अपने कृत्य का बचाव किया कि क्रिकेटरों को राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिए, एक ऐसा तर्क जिसकी सही सोच वाले नागरिकों ने आलोचना की।
च्युइंग गम और कश्मीर के अलावा एक मुद्दा पॉपकॉर्न का भी है: जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने का आदेश दिया और कहा कि भारतीयों को खड़े होकर इसका सम्मान करना चाहिए तो मिश्रित प्रतिक्रिया हुई। भारतीयों में राष्ट्रगान के प्रति सम्मान पैदा करने की भावना से प्रेरित होकर न्यायालय ने निर्णय दिया था कि ‘देश के नागरिकों को यह एहसास होना चाहिए कि वे एक राष्ट्र में रहते हैं और राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दिखाने के लिए बाध्य हैं जो संवैधानिक देशभक्ति और एक अंतर्निहित राष्ट्रीय गुणवत्ता का प्रतीक है।’ हालांकि स्याह पक्ष यह था कि भारतीय राष्ट्र और इसके प्रतीकवाद दोनों का मज़ाक उड़ा रहे थे।
यह भारतीयों की वह नस्ल है जिसमें मुफ्ती भी शामिल हैं जो राष्ट्रगान का सम्मान करने के किसी भी कदम पर नाराज़गी जताती हैं। यदि उस समय सिनेमा देखने वाले अदालत के आदेश से फिल्म का आनंद लेने में बाधा डालने को लेकर चिंतित थे तो आज के राजनेता सरकारी आदेश की आलोचना कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से उन क्षेत्रों में देशभक्ति की भावना पैदा करना है, जहां आतंकवाद ने बेरहमी से अपना सिर उठाया है। ‘जब मैं राष्ट्रगान सुनने के लिए खड़ा होता हूं तो मैं अपनी खाने की ट्रे और पॉपकॉर्न कहां रखूं’ न्यायालय के आदेश के बाद कई सिनेमा दर्शकों ने यही जानना चाहा था। ख़ुशी की बात है कि एक बड़ा वर्ग है जो महसूस करता है कि राष्ट्रगान गाना गर्व की बात है और राष्ट्रीयता की भावना को फिर से जागृत करता है, जिसे स्कूल के लम्बे समय से भुला दिया गया है, कुछ लोगों का तर्क है कि इसे नियमित रूप से गाने या सुनने से भाव और भावनाएं दोनों जीवंत हो जाएंगी।
क्या आपको तिरंगा दिवस का दिन याद है, तिरंगे और उसके राष्ट्रीय महत्व को प्रदर्शित करने के लिए भाजपा सरकार द्वारा शुरू किया गया अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर घर तिरंगा, पहल का उद्देश्य लोगों को भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए प्रोत्साहित करना था। प्रेरणा से भरी हुई उत्साहित भीड़ तिरंगे का प्रदर्शन करते हुए सड़कों पर दिखाई दे रही थी। उस समय पूरे देश में झंडे का बुखार चढ़ा हुआ था और वह भी काफी हद तक। इस कदम की देशभर में गूंज हुई। इसके परिणामस्वरूप प्रत्येक भारतीय की अंतर्निहित देशभक्ति का पुनरुत्थान हुआ है। एक भावना जो दशकों से निष्क्रिय पड़ी थी। मोदी की पहल की बदौलत हर भारतीय जो लायक था झंडे के लिए आगे बढ़ रहा था। महबूबा मुफ्ती ने तब भी सरकार के खिलाफ अपनी बातें कही थीं, उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने प्रदर्शन चित्र के रूप में जम्मू-कश्मीर के पूर्ववर्ती राज्य ध्वज को लगाया। ऐसा करते समय उन्होंने भाजपा सरकार पर कश्मीरियों से उनका झंडा छीनने का आरोप लगाया। स्पष्ट संदर्भ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का था। केंद्र द्वारा 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को अलग झंडा देने वाले कानून को अन्य विशेष दर्जा वाले कानूनों के साथ रद्द कर दिया गया था।
प्रधानमंत्री मोदी की खामियां या शासन की विफलताएं जो भी हों, कोई भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकता है कि वो अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने भारत के लोगों को यह विश्वास दिलाया है िक वो भारत के हैं और भारत उनका है। इसे देशभक्ति कहें, राष्ट्रवाद कहें या तिरंगे को पकड़ने और लहराने का रोमांच, भाजपा एक ऐसा उत्साह पैदा करने में सफल रही है जो शायद ही कभी महसूस किया गया हो। इसने भारतीयों को झंडे के साथ उठने-बैठने, अपनेपन की भावना और जुड़ाव महसूस कराया है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ। यह मानना पड़ेगा की जब प्रदर्शन की बात आती है, चाहे वह राष्ट्रवाद हो या कोई अन्य इसे भाजपा से बेहतर कोई नहीं कर सकता।