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धरती की धड़कन सुुनेगा भारत

03:48 AM Aug 18, 2024 IST
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जश्न-ए-आजादी के रंग उस वक्त और भी गहरे हो गए जब भारत ने अंतरिक्ष की ऊंचाइयों में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया। चन्द्रयान-3 को चांद पर पहुंचा कर दुनिया में अपनी धाक जमाने के बाद भारत के अंतरिक्ष संस्थान इसरो ने 16 अगस्त को सुबह स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-03 की तीसरी और अंतिम विकासात्मक उड़ान से एक नए अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (ईओएस-08) सफलतापूर्वक लांच किया। इसरो भारत का एक ऐसा संस्थान है जिसकी उपलब्धियां बेशुमार हैं। अमेरिकी संस्थान नासा के वैज्ञानिक भी इसरो के प्रशंसक हैं। इसरो की यह अभूतपूर्व उपलब्धि इसलिए है क्योंकि इससे प्राकृतिक आपदाओं की समय से जानकारी मिल जाएगी। प्राकृतिक आपदाओं को टालना तो बहुत मुश्किल है लेकिन आधुनिक विज्ञान की मदद से हम नुक्सान को कम से कम कर सकते हैं और मानवीय जीवन को बचा सकते हैं। हाल ही में केरल के वायनाड में आई भयंकर प्राकृतिक आपदा से हुए जानमाल के नुक्सान से बचा जा सकता था, अगर मानव के पास वैज्ञानिकों की चेतावनियां उपलब्ध होतीं। यद्यपि कहा तो यही जा रहा है ​कि वायनाड प्रशासन ने चेतावनियों को अनसुना किया। उत्तराखंड आैर हिमाचल में भी बाढ़ और भूस्खलन से भयंकर नुक्सान हुआ।
प्रकृति के दो रूप होते हैं, दयालु और साथ ही आक्रामक। इसके मानव जाति को सबसे अधिक बार लेकिन ऐसे समय दर्शन होते हैं जब यह आक्रामक हो जाती है। जब यह आक्रामक हो जाती है तो यह भयावह तबाही लाती है। प्राकृतिक आपदा एक प्रतिकूल घटना है जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होती है। एक प्राकृतिक आपदा से सम्पत्ति को नुक्सान और जीवन की हानि हो सकती है। सुनामी, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकम्प प्राकृतिक आपदाएं हैं। कोई भी देश आपदाओं से सुरक्षित नहीं है, इसलिए भारत भी अपनी भौगोलिक स्थिति और विविध जलवायु के कारण एक अत्यधिक आपदाओं वाला देश है। केरल में बाढ़, तमिलनाडु और ओडिशा में चक्रवात, उत्तर भारत में भूकम्प जैसी कई आपदाएं हुईं। कोई समय था जब हमारे पास मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने की कोई ठोस तकनीक नहीं थी। लोग मौसम विभाग का मजाक उड़ाते थे। समय के साथ-साथ भारत सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों और देश के लोगों पर आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न संस्थाओं,फंडों की स्थापना की। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, केन्द्रीय जल आयोग जैसे संगठन स्थापित किए। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल तैयार किया।
पिछले दो दशकों में ओडिशा, केरल, गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात के अलावा लक्षद्वीप समूह के तटीय क्षेत्रों ने भयंकर तूफानों का सामना किया। राहत की बात यह है कि सुुपर साइक्लोन जैसे तूफानों से भी जनहा​िन बहुत कम हुई। हमने तूफानों से लड़ना इस​िलए सीख लिया क्योंकि मौसम विभाग तूफान की दिशा, गति और टकराव के सही स्थान की स्टीक भविष्यवाणी करने में सक्षम हो चुका है। सैटेलाइट के जरिये हर ​मिनट में मिल रही तस्वीरों और पश्चिमी तट पर पांच राडार के जरिये तूफानों पर नजर रखी जाती है और तूफानों को लगातार ट्रैक किया जाता है। अब हमें सात दिन पहले ही पता चल जाता है कि तूफान कौन से हिस्से में जाकर टकराएगा और उसका रास्ता और गति क्या होगी।
भारत के आपदा प्रबंधन मॉडल में ओडिशा की भूमिका काफी अग्रणी रही है। आपदा राज्य कहलाया जाने वाला ओडिशा अब मौसम विभाग की स्टीक जानकारी मिलते ही तेजी से कार्रवाई करता है और कुछ ही घंटों में हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा देता है। वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं को समझते हुए हमें प्राकृतिक खतरों के लिए पहले से ही तैयारी कर लेनी चाहिए। इसरो द्वारा लांच किए गए ईओएस-08 अब धरती की धड़कन को समय पर सुन सकेगा। बाढ़, भूस्खलन और भूमि की नमी की जानकारी समय रहते देगा जिससे जानमाल का नुक्सान कम किया जा सकेगा। धरती की हर धड़कन अब भारत के राडार पर होगी। यद्य​िप इस मिशन की अवधि एक वर्ष है। यह पेलोड दिन और रात के समय तस्वीरें खींच सकता है।
उपग्रह आधारित निगरानी,आपदा निगरानी, पर्यावरण निगरानी, आग लगने का पता लगाने, ज्वालामुखी गतिविधि का अवलोकन तथा औद्योगिक एवं विद्युत संयंत्र आपदा निगरानी जैसे कार्यों के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। जीएनएसएस-आर पेलोड समुद्री सतह की हवा का विश्लेषण, मृदा नमी आंकलन, हिमालयी क्षेत्र में 'क्रायोस्फेयर' अध्ययन, बाढ़ का पता लगाने और जल निकायों का पता लगाने आदि के लिए जीएनएसएस-आर आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। एसआईसी यूवी डेसिमीटर गगनयान मिशन में 'क्रू मॉड्यूल' के 'व्यूपोर्ट' पर यूवी विकिरण पर नजर रखेगा और गामा विकिरण के लिए अलार्म सेंसर का काम करेगा।
एसएसएलवी विकास परियोजना की सफलता के बाद प्राैद्याेगिकी हस्तांतरण करने के अलावा भारतीय उद्योग और न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड अब वाणिज्यिक मिशन के लिए एसएसएलवी का उत्पादन कर सकेंगे। इसरो को हर तरफ से बधाइयां मिल रही हैं। मानवीय जीवन और राष्ट्रीय सम्पदा को बचाने के ​िलए विज्ञान काफी काम कर रहा है। हमें यह समझने की भी जरूरत है कि खतरनाक हथियारों का विकास सामाजिक और आर्थिक समस्याओं की गहन मानवीय संवेदनाओं को छू पाने में सक्षम नहीं है। इस​िलए हमें जमीनी स्तर पर काम करना होगा और विज्ञान के अलर्ट पर तुरंत काम करके लोगों को बचाना होगा। हमें ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक तकनीकों का सहारा लेना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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