नौ राज्यों में नये राज्यपाल
भारत में स्वतन्त्रता के बाद से ही इस बात पर बहस रही है कि राज्यपाल के पद पर राजनैतिक व्यक्ति को बैठाया जाना चाहिए या गैर राजनैतिक व्यक्ति को। इस मामले में स्थिति बहुत स्पष्ट है कि राज्यपाल संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर राज्यों में नियुक्त किये जाते हैं जिनकी जिम्मेदारी संविधान के अनुसार राज्य का शासन देखने की होती है। इस पद पर यदि गैर राजनैतिक व्यक्ति किसी नौकरशाह को बैठाया जाता है तो परोक्ष रूप से वह जनता की इच्छा द्वारा चुनी गई लोकतान्त्रिक सरकार का मुखिया बन जाता है जबकि नौकरशाह अपने पूरे जीवन जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के प्रति ही जिम्मेदार रहता है। यह मूल प्रश्न डा. मनमोहन सिंह के शासनकाल के दौरान उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के नेता व राज्य के मुख्यमन्त्री रहे स्व. मुलायम सिंह यादव ने उठाया था। इसमें बारीक पेंच यह है कि कोई नौकरशाह किस तरह जनता के सार्वभौमिक वोट के अधिकार से चुनी हुई सरकार का मुखिया बनकर संविधान का ही संरक्षक बन सकता है। किसी नौकरशाह के सामने जब जनता द्वारा चुनी गई सरकार हाथ बांध कर खड़ी होती है तो कहीं न कहीं संविधान की गरिमा के साथ समझौता होता है जबकि किसी राजनैतिक व्यक्ति के राज्यपाल होने से स्थिति पूरी तरह दूसरी होती है। वह संविधान की पेचीदगियों को समझता है और स्वयं इस प्रक्रिया से गुजर कर ऊपर आता है।
स्व. मुलायम सिंह यादव का मानना था कि राज्यपाल के पद पर केवल राजनैतिक व्यक्तियों की ही नियुक्ति की जानी चाहिए बशर्ते वे इस पद पर बैठते ही पूरी तरह ‘अराजनैतिक’ हो जाये। केन्द्र की एनडीए सरकार ने हाल ही में नौ राज्यों में नये राज्यपालों की नियुक्ति की है जिनमें केवल पुडुचेरी के उपराज्यपाल के. कैलाशनाथन को छोड़कर शेष सभी राजनैतिक व्यक्ति हैं और भाजपा से जुड़े रहे हैं। पूर्व में कांग्रेस पार्टी भी राज्यपाल पद पर पूर्व कांग्रेसी नेताओं को ही बैठाती रही है। बेशक कुछ अपवादों को गिनाया जा सकता है परन्तु कमोबेश राजनैतिक व्यक्ति ही राज्यपाल होते रहे हैं। कहने को कहा जा सकता है कि भाजपा के राज्यपाल पुराने कांग्रेसी राज्यपालों के मुकाबले ज्यादा ‘राजनैतिक’ होते हैं लेकिन औसत निकाले तो लगभग एक जैसी स्थिति ही आकर बैठती है। केन्द्र की सरकार 1994 में सर्वोच्च न्यायालय का ‘बोम्मई फैसला’ आने से पहले राज्यपालों का इस्तेमाल राज्य सरकारें बर्खास्त कराने के लिए खूब किया करती थी परन्तु बोम्मई प्रकरण के बाद इस पर लगाम लगी और वाजपेयी शासन के दौरान जब यह नियम बना दिया गया कि किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा लोकसभा व राज्यसभा दोनों सदनों से ली जाएगी तो इस पर लगभग रोक ही लग गई। फिर भी इक्का-दुक्का मामलों से इन्कार नहीं किया जा सकता।
केन्द्र ने राज्यपालों की जो नई नियुक्तियां की हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय मन्त्री श्री सन्तोष गंगवार की झारखंड में नियुक्ति है जहां भाजपा विरोधी झारखंड मुक्ति मोर्चा व कांग्रेस की मिलीजुली सरकार है। इस राज्य में आगामी अक्तूबर महीने में चुनाव होने वाले हैं। श्री गंगवार की छवि एक शालीन व उदार राजनेता की रही है। वह उत्तर प्रदेश की बरेली लोकसभा सीट से लगातार छह बार भाजपा के सांसद रहे हैं। उनके राज्यपाल बनने से बरेली के लोगों में निश्चित रूप से खुशी की लहर दौड़ना स्वाभाविक है परन्तु उन्हें इस पद पर पूर्णतः निष्पक्ष रहना होगा और राज्य की गैर भाजपा सरकार को संविधानतः चलते देखना होगा। इसी प्रकार महाराष्ट्र में भी अक्तूबर महीने में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस राज्य का राज्यपाल तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व कोयम्बटूर से दो बार सांसद रहे श्री सी.पी. राधाकृष्णन को बनाया गया है। श्री राधाकृष्णन भी धीर-गंभीर राजनीतिज्ञ माने जाते हैं अतः उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह इस चुनावी राज्य मेें राज्यपाल के कार्यालय को राजनैतिक गतिविधियों में शामिल नहीं होने देंगे और अपने संवैधानिक दायित्व का शुद्ध अन्त:करण से निर्वाह करेंगे। हम जानते हैं कि जब इस राज्य के राज्यपाल उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमन्त्री थे तो उन्होंने राज्यपाल कार्यालय को किस कदर विवादित बना दिया था।
इसी प्रकार असम के वर्तमान राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया को अब पंजाब का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। श्री कटारिया भी राजस्थान भाजपा की सरकार में वरिष्ठ मन्त्री रहे हैं। उनका पंजाब आना बताता है कि इस राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार से केन्द्र सरकार की जो लाग-डांट चल रही है उसमें नरमाई आएगी। पंजाब के वर्तमान राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित अपने कारनामों से बहुत विवादास्पद हो गये थे क्योंकि उन्होंने राज्य सरकार द्वारा पारित कई विधेयकों को अपने पास लम्बित रखा हुआ था। यह मामला जब सर्वोच्च न्यायालय में गया तो उन समेत तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि को भी न्यायालय की प्रताड़ना का भागी बनना पड़ा था। यह लोकतन्त्र के लिए अच्छा ही हुआ कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके स्थान पर केन्द्र ने श्री कटारिया को नियुक्त करके सन्देश देने का प्रयास किया है कि पंजाब की राजनैतिक लाग-डांट को अब विराम दिया जा सकेगा और श्री कटारिया सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देशों के आलोक में ही अपना कार्य करेंगे। इनके अलावा अन्य जितने भी नये राज्यपाल नियुक्त किये गये हैं वे सभी राजनैतिक व्यक्ति हैं। इसका विरोध किये जाने का कोई कारण नहीं है क्योंकि राज्यपाल का पद अराजनैतिक होने के बावजूद संविधान के संरक्षक का होता है और एक राजनैतिक व्यक्ति ही इसकी शुचिता को भली-भांति समझ सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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