India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

नये कानून नया दौर

07:01 AM Jul 12, 2024 IST
Advertisement

नए कानून और नई शुरुआत या नए कानून और नया गतिरोध? जब सरकार द्वारा पेश किए गए तीन नए आपराधिक कानूनों की बात आती है तो शायद यह प्रमुख प्रश्न है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। जिन औपनिवेशिक कानूनों को सरकार ‘पुनरुद्धार और प्रतिस्थापन’ के उद्देश्य से स्थापित कर रही है, वे नए कानून इस साल 1 जुलाई को लागू हुए। यदि सरकारी संस्करण की मानें तो ये कानून न्याय प्रदान करने के लिए पीड़ित केंद्रित दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करते हैं, साथ ही वे राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं। सरकार के विवेक के अनुसार, उन्होंने मौजूदा कानूनों को उन्नत प्रौद्योगिकी से निपटने के लिए अपर्याप्त माना। सरकार का दावा है कि ये कानून भारत में आपराधिक व्यवस्था को बदल देंगे और आधुनिक न्याय प्रणाली की शुरुआत करेंगे।

शुरुआत के लिए, तीन कानूनों के नाम कुछ ऐसे रखे गए हैं -भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारत साक्ष्य अधिनियम, जो बोलने में थोड़े भारी हैं। सरकार बेहतर कर सकती थी, अगर उन्होंने सरल भाषा का इस्तेमाल किया होता और शीर्षकों का उच्चारण करना अधिक आसान होता। लेकिन भाजपा सरकार का ध्यान क्लिष्ट हिंदी पर है और वह किसी भी कीमत पर भाषा को सरल नहीं करेगी, भले ही यह बहुसंख्यकों को अटपटी लगे। और यह बात केवल अंग्रेजी बोलने वाले अभिजात्य वर्ग पर ही लागू नहीं होती, जिससे सरकार को किसी प्रकार की घृणा है, बल्कि आम आदमी पर भी लागू होती है, जिसमें गांवों और छोटे शहरों के लोग भी शामिल हैं, जो हिंदी में पारंगत होने के बावजूद ऐसी कठिन हिंदी में माहिर नहीं हैं और उन बेचारे पुलिस कर्मियों का क्या जिन्हें वास्तव में इन कानूनों को लागू करना है? निश्चित रूप से और निस्संदेह उन्हें संहिता और अधिनियम जैसे असामान्य शब्दों का सही उच्चारण करने में कठिनाई होगी।
अब बात करते हैं कानूनों की

उनका गूढ़वाचन करें तो कुल योग इस प्रकार है- 45 दिनों के भीतर आपराधिक मामलों के फैसलों के निर्णयों का वितरण, पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किये जायेंगे। राज्य सरकारें गवाह सुरक्षा योजनाएं सुनिश्चित करेंगी; बलात्कार पीड़ितों के बयान एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज किए जाएंगे; बाल व्यापार को जघन्य अपराध के रूप में वर्गीकृत किया गया। नाबालिग से सामूहिक बलात्कार के लिए मौत की सज़ा या आजीवन कारावास हो सकता है; शादी के झूठे वादे पर महिलाओं को छोड़ने के लिए सज़ा दी जायेगी। आरोपियों और पीड़ितों को एफआईआर की प्रतियां प्राप्त करने और महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों पर नियमित अद्यतन प्राप्त करने का अधिकार, शून्य एफआईआर की शुरुआत और इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से घटनाओं की रिपोर्ट करने की सुविधा, गिरफ्तारी विवरण पुलिस स्टेशनों पर प्रदर्शित किया जाएगा और ट्रांसजेंडर लोगों को शामिल करने के लिए लिंग को फिर से परिभाषित किया जाएगा।

सरकार के औचित्य पर अगर विश्वास करें तो, नए कानून सज़ा के बारे में कम और न्याय लाने के बारे में अधिक हैं। शून्य एफआईआर और पुलिस स्टेशन जाने से छुटकारा पाने जैसे प्रावधानों के कारण इसे विश्वसनीयता मिली है। जिन लोगों को प्रत्यक्ष अनुभव है, वे इस बात से सहमत होंगे कि पुलिस स्टेशन जाना न केवल यातनापूर्ण है, बल्कि कई स्थितियों में तो अपराध से भी बदतर है।इसके अलावा, पहले एफआईआर दर्ज करना बहुत थकाऊ और कठिन था और शिकायत को एफआईआर में बदलने के लिए अक्सर पुलिस अधिकारी की दया पर निर्भर रहना पड़ता था। हालांकि बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि क्या ये बदलाव वास्तव में पीड़ितों की मदद करेंगे या महज़ कागज़ों पर ही रह जाएंगे। उत्तरार्द्ध की स्थिति में, यह पूरी कवायद निरर्थक और उद्देश्यहीन होगी, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो सही दिशा में कदम उठाने के लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए, अर्थात् सजा से न्याय पर ध्यान केंद्रित करना और साथ ही लालफीताशाही और कठिन प्रक्रियाओं को कम करना।

ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस की शक्तियों को भले ही कम न किया गया हो पर बेहतर तरीके से उपयोग में ज़रूर लाया गया है। लेकिन विरोध करने वालों का मानना है कि नए अधिनियमों में ऐसे प्रावधान हैं जिनका पुलिस द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, गंभीर अपराधों में पुलिस हिरासत को 15 से 90 दिनों तक बढ़ाने से पुलिस अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकती है यहां तक कि यातना भी दे सकती है।

इसके अलावा, संगठित अपराध और छोटे संगठित अपराध जैसे नए अपराध भी हैं जो नए कानूनों के दायरे में आते हैं। छोटे संगठित अपराधों में चोरी और जुआ शामिल है। और नई परिभाषा के तहत संगठित अपराध में मानव और मादक पदार्थों की तस्करी और साइबर अपराध शामिल हैं। सामूहिक हत्या एक अलग अपराध है और नस्ल, जाति, जन्म स्थान, भाषा आदि के आधार पर पांच या अधिक लोगों के समूह द्वारा की गई हत्या में कई मामलों में आजीवन कारावास या मृत्युदंड भी हो सकता है। नए कानून एक अच्छी तरह से वर्णित त्वरित सुनवाई की भी मांग करते हैं, जिसे अगर अक्षरश: लागू किया जाए तो तारीख पे तारीख की मौजूदा स्थिति के सामने एक बड़ी राहत मिल सकती है।
एक अन्य सुधारात्मक धारा गिरफ्तार व्यक्ति के किसी भी चुने हुए व्यक्ति को तुरंत सूचित करने के अधिकार के बारे में है। पुलिस के लिए गिरफ्तारी विवरण को पुलिस स्टेशनों पर प्रदर्शित करना भी आवश्यक है। यदि इसे उचित तरीके से लागू किया जाता है, तो यह हिरासत और गिरफ्तारी के बीच एक अस्पष्ट क्षेत्र को खत्म कर देगा, या आरोपी को पुलिस अधिकारी की दया पर निर्भर होना, जो अक्सर सभी बाहरी संचार से इनकार करता है जो आरोपी को पहली बार में कानूनी सहायता प्राप्त करने में बाधा डालता है या सीमित करता है।

निःसंदेह, क्यों और कैसे जैसे प्रश्नों को लेकर बहुत तरह की भ्रांतियां हैं। खामियां ढूंढने के लिए आलोचक काम कर रहे हैं, विपक्ष इसे जल्दबाजी में किया गया कार्यान्वयन मान रही है और सरकार की आलोचना कर रही है। इस आधार पर स्थगन की मांग करने वाले कई अभ्यावेदन हैं कि कई खंडों में विसंगतियां हैं, कानूनी बिरादरी की अपनी चिंताएं हैं कि कुछ प्रावधान असंवैधानिक हैं । प्रत्येक कहानी के हमेशा दो पहलू होते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आप कौन सा पृष्ठ पलटना चुनते हैं। नए कानून ऐसी ही एक कहानी है, उन्हें एक सुधार के रूप में देखें तो सुरंग के अंत में रोशनी दिखेगी और अगर गलतियां निकालोगे एक मृत अंत तक पहुंच जाओगे।

WRITER - कुमकुम चड्ढा

Advertisement
Next Article