यूं ही पलटीमार नहीं कहलाते हैं नीतीश
‘उसने आइने से कहा कर सकते हो तो अभी कैद कर लो यह चेहरा मेरा
आइने ने कहा मुखौटे की पहचान है मुझे,
पहले पहन तो ले अपना असली चेहरा’
नीतीश कुमार ने इस कॉलम में पूर्व वर्णित तथ्यों को हकीकत का जामा पहनाने का काम किया है, संडे आमतौर पर छुट्टी का दिन होता है, सो मुमकिन है कि नीतीश भी आज रविवार को ही कयासों के कदमताल की छुट्टी कर दें। भूमिका 25 जनवरी को आहूत हुई कैबिनेट की बैठक से बांधी गई, इस बैठक से तुरंत पहले मीडिया को एक प्रेस नोट जारी किया गया कि ‘आज की मीटिंग के बाद प्रेस ब्रीफिंग नहीं होगी।’ इस प्रेस नोट ने राजद के खेमे में खलबली मचा दी, कहते हैं कि कैबिनेट की बैठक में ही नीतीश की ओर से सुझाव आया कि ‘बिहार विधानसभा भंग करा कर लोकसभा चुनावों के साथ ही बिहार के भी चुनाव करवा लिए जाएं,’ पर राजद ने इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया और साफ कर दिया कि ‘राजद के मंत्री इस प्रस्ताव पर दस्तखत नहीं करेंगे।’
जैसा कि कभी नीतीश के बेहद करीबी रह चुके प्रशांत किशोर भी मानते हैं कि ‘नीतीश अपनी उम्र के उस पड़ाव पर आ पहुंचे हैं जहां से उनकी आगे की राजनीति का मार्ग धुंधला है।’ इसीलिए तो लालू यादव चाहते थे कि ‘नीतीश बिहार का राजपाट उनके पुत्र तेजस्वी को सौंप कर ‘इंडिया गठबंधन’ की ओर से देशभर में भाजपा के खिलाफ अलख जगाएं,’ पर नीतीश के मन में कुछ और ही चल रहा था। उस दिन कैबिनेट की मीटिंग भी बगैर किसी फैसले के मात्र 15 मिनट में खत्म हो गई, मंत्री व अधिकारीगण अभी अपना चाय-नाश्ता भी खत्म नहीं कर पाए थे कि नीतीश झटके से उठ कर कमरे से बाहर आ गए, उनकी तेजस्वी से एक शब्द की भी बातचीत नहीं हुई, बाहर आए तो नीतीश ने देखा तेजस्वी पहले ही लिफ्ट के पास पहुंच चुके हैं, सो तेजस्वी को इग्नोर कर वे तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। लालू यादव ने नीतीश को मनाने की जिम्मेदारी शिवानंद तिवारी को सौंपी, तिवारी नीतीश के पास गए भी पर बात नहीं बनी।
इधर गणतंत्र दिवस के रोज जेपी नड्डा व अमित शाह ने बिहार भाजपा के नेताओं को आनन-फानन में दिल्ली तलब कर लिया। भाजपा ने भी अपनी अंतिम रणनीति बुन ली है, नीतीश को मात्र 15 लोकसभा सीटें ऑफर की गई हैं, साथ ही भाजपा ने नीतीश से यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ‘अगर उनके नेतृत्व में भाजपा के साथ जदयू की सरकार बनती है तो भाजपा के दो उप मुख्यमंत्री उस सरकार में शामिल रहेंगे।’ राम मंदिर लहर, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न नीतीश को भाजपा के साथ जुगत भिड़ाने का इससे बेहतर मौका और क्या मिल सकता है। पर कुछ लोग अभी भी इसे नीतीश की ‘प्रेशर टेक्टिस’ बता रहे हैं यानी कि वे किधर भी जा सकते हैं।
बिहार में सकते में कांग्रेस
नीतीश की इन बदली भाव-भंगिमाओं से कांग्रेस के चेहरे पर भी हवाईयां उड़ रही हैं। कहां तो तय था कि जब 29 जनवरी को राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा बिहार पहुंचेगी तो नीतीश भी राहुल के साथ मंच शेेयर करेंगे। राहुल की यह यात्रा 4 दिनों तक बिहार के कम से कम 7 जिलों से गुजरनी है। पर कांग्रेस के बिहार प्रभारी मोहन प्रकाश जिन्हें नियुक्त कराने में नीतीश-लालू की एक महती भूमिका मानी जाती है, उन्होंने बिहार में राहुल के प्रोग्राम से किनारा कर लिया, कम से कम वे जाहिरा तौर पर नीतीश को नाराज़ नहीं करना चाहते थे।
मोहन प्रकाश की गैर मौजूदगी में बिहार में राहुल की यात्रा को सजाने-संवारने का जिम्मा कांग्रेस ने बिहार के सह प्रभारी व पार्टी के राष्ट्रीय सचिव वीरेन्द्र सिंह राठौर को सौंप दिया। वहीं कांग्रेस के बिहार में सीएलपी लीडर शकील अहमद खान का बयान भी नीतीश के पक्ष में आ गया है। बिहार के हर मसले पर उछल-कूद मचाने वाले कांग्रेसी नेता अजय कपूर का भी कोई पता-ठिकाना नहीं मिल रहा। ऐसे में राहुल की न्याय यात्रा का बिहार में क्या हश्र होगा इसे सहज समझा जा सकता है। वैसे भी राहुल अपनी न्याय यात्रा से 2 दिनों का ब्रेक लेकर अचानक से दिल्ली पहुंच गए हैं, इससे मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है।
सपा का फोकस यूपी पर
समाजवादी पार्टी आश्वस्त है कि ‘वे और आरएलडी मिलकर लोकसभा की कम से कम 18-20 सीटें जीतने का माद्दा रखते हैं।’ एक तरह से सीटों की शिनाख्त भी पूरी हो चुकी है, उम्मीदवार के नाम भी कमोबेश तय हैं। जैसे आजमगढ़ से शिवपाल यादव को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी है, तो कन्नौज से अखिलेश यादव स्वयं चुनाव लड़ेंगे, मैनपुरी से डिंपल यादव, बदायूूं से धर्मेंद्र यादव, फिरोजाबाद से प्रोफेसर रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय, नगीना से चंद्रशेखर आजाद, लखनऊ से रविदास मल्होत्रा, गाजीपुर से अफजाल अंसारी और यूपी के पूर्व मंत्री मनोज पांडे का नाम भी चुनाव लड़ने के लिए लगभग तय हो चुका है।
आंध्र में भाई को बहन की चुनौती
जब से कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश की कमान जगन मोहन रेड्डी की बहन शर्मिला को सौंपी है, वहां की सियासी बयार बदलने लगी है, शर्मिला के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही राज की मृतप्रायः कांग्रेस में एक नई जान आ गई है और जगन मोहन की पेशानियों पर बल पड़ गए हैं। जगन ने एक साथ दो मोर्चे खोल दिए हैं, कांग्रेस के साथ तेदेपा भी उनके ऊपर हमलावर हो गई है, जब से जगन ने तेलुगुदेशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू को जेल भेजा है, तेदेपा कैडर सड़कों पर उतर आया है, जगन की पार्टी के सांसद भी उनका साथ छोड़ अन्य पार्टियों का रुख कर रहे हैं।
शर्मिला अभी अपनी यात्रा पर है और वह अपने भाई पर सीधा हमला साध रही है, कह रही है कि ‘जब से प्रदेश में जगन की सरकार बनी है वहां विकास का पहिया थम गया है। जगन प्रदेश की अभी तक नई राजधानी भी नहीं बना पाएं हैं।’ आंध्र में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में जगन की वाईएसआर कांग्रेस ने 175 में से 151 सीटें व लोकसभा की 25 में से 22 सीटें जीत ली थीं।
...और अंत में
राजस्थान का विधानसभा चुनाव भाजपा के हाथों गंवाने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने वहां लोकसभा चुनाव के लिए सचिन पायलट को ‘फ्री-हेंड’ दे दिया है। सचिन से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले अशोक गहलोत से कहा गया है कि ‘वे दिल्ली में स्टेशन रह कर देशभर में कांग्रेस के पक्ष में अलख जगाएं।’ अशोक गहलोत को इस बार जोधपुर से चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है, सचिन पायलट अजमेर से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। वहीं खबर है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के गुलबर्ग से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।
- त्रिदीब रमण