अब चन्द्रयान-4 की तैयारी
स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्षों में भारत ने अंतरिक्ष का सफर शानदार तरीके से तय किया। साइकिल और बैलगाड़ी से शुरू हुई हमारी अंतरिक्ष यात्रा अब मंगल और चांद तक पहुंच गई है। भारतीय वैज्ञानिक पहले रॉकेट को साइकिल पर लाद कर प्रक्षेपण पर ले गए थे। इस मिशन का दूसरा रॉकेट बहुत भारी था जिले बैलगाड़ी पर ले जाया गया था। इससे ज्यादा रोमांचकारी बात यह है कि भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था। हमारे वैज्ञािनकों के पास अपना दफ्तर भी नहीं था। वे एक चर्च के मुख्य कार्यालय में बैठकर सारी प्लानिंग करते थे। आज भारत ने मानव को अंतरिक्ष भेजने की तैयारी कर ली है लेकिन यह यात्रा इतनी आसान नहीं है। 1947 में जब देश आजाद हुआ तब स्थिति इतनी करुण थी कि हमारे पास खाने के लिये पर्याप्त अनाज भी नहीं था, अंतरिक्ष की कल्पना करना तो बहुत दूर की बात थी लेकिन हम साहस के साथ सभी चुनौतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ते रहे। अंततः साल 1962 में वह घड़ी आई जब भारत ने अंतरिक्ष का सफर करने का फैसला किया और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्कोस्पार) की स्थापना की। साल 1969 में इस इन्कोस्पार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (इसरो) का रूप धारण कर लिया। वर्तमान में इसरो दुनिया की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है।
जब भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरुआत हुई उस समय अमेरिका और रूस में उपग्रहों का परीक्षण शुरू हो चुका था। साल 1962 में भारत सरकार ने अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये भारतीय राष्ट्रीय समिति (इन्कोस्पार) का गठन कर अंतरिक्ष के रास्ते पर अपना पहला कदम रखा और साल 1963 में थंबा से पहले साउंडिंग रॉकेट के साथ भारत के औपचारिक अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत हुई। बाद में डॉक्टर विक्रम साराभाई ने उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास के लिये 5 अगस्त, 1969 को इन्कोस्पार के स्थान पर इसरो की स्थापना की। इसी कड़ी में भारत सरकार ने जून 1972 में अंतरिक्ष आयोग का गठन किया और अंतरिक्ष विभाग की स्थापना की। सितंबर 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत कर दिया गया। भारत में आधुनिक अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले साराभाई का मानना था कि अंतरिक्ष के संसाधनों से मनुष्य व समाज की वास्तविक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिये देश के सक्षम व उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, समाजविज्ञानियों और विचारकों के एक दल का गठन किया था।
अब वर्ष 2023 को हम अलविदा कहने वाले हैं लेकिन यह वर्ष भारत और हमारे वैज्ञािनकों के लिए बहुत यादगार रहा है। यह वर्ष अंतरिक्ष की दुनिया में ऐसी कई उपलब्धियां देकर गया है जिन्होंने दुनिया को भारत की ताकत का अहसास कराया है। इसरो के मून मिशन चन्द्रयान-3 के जरिये भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में नया इतिहास रचा। भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने वाला पहला देश बना। वहीं चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बना। अमेरिका, रूस और चीन भी चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाए हैं। चन्द्रयान के बाद इसरो के िलए दूसरी बड़ी सफलता आदित्य एल-1 की सफल लांचिंग रही। यह सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष में भारतीय प्रयोगशाला है। आदित्य एल-1 मिशन का उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना है।
चंद्रयान और आदित्य एल-1 के बाद इसरो अपने पहले मानव मिशन गगनयान की तैयारी कर रहा है। पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान 2025 में होने की संभावना बताई जा रही है। इससे पहले इसरो कई परीक्षण करेगा ताकि गगनयान मिशन में जब इंसानों को भेजा जाए तो उनकी सुरक्षा में कहीं भी चूक की कोई गुंजाइश न रहे और वो पूरी तरह से सुरक्षित रहें। इस कड़ी में 21 अक्तूबर को इसरो ने मिशन गगनयान की टेस्ट फ्लाइट टीवीडी1 को सफलतापूर्वक पूरा किया। गगनयान मिशन की पहली टेस्ट उड़ान में इसरो क्रू मॉड्यूल को आउटर स्पेस तक भेजा गया और इसके बाद इसे वापस जमीन पर लौटाया गया।
इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने अब नए मिशन की जानकारी दी है। इस मिशन के तहत इसरो 4 साल में चांद से नमूने लाने की तैयारी में है, इसके लिए चन्द्रयान-4 लांच करने की तैयारी की जा रही है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मॉड्यूल 2028 तक लांच किया जाएगा। यह भारत का अंतरिक्ष स्टेशन होगा जो रोबोट की मदद से प्रयोग करने में सक्षम होगा। अंतरिक्ष स्टेशन के िनर्माण के लिए एक हैवी लांच वाहन की जरूरत होगी। इसरो इसके िलए डिजाइन तैयार करने में जुटा है। इसरो एक के बाद एक अपने ही रिकार्ड तोड़ता हुआ अंतरिक्ष में नई इबारत लिखता जा रहा है। आज भारत अपने ही नहीं बड़ी संख्या में बड़े देशों के उपग्रहों का भी प्रक्षेपण कर रहा है। उपग्रहों को छोड़ना भारत के लिए अब एक तरह से पक्षियों को अासमान में उड़ाने जैसा है। इसरो के वैज्ञानिकों की प्रतिभा को हम सलाम करते हैं। जो सीमित संसाधनों से भी विकसित देशों को पीछे छोड़ रहे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com