काउंटिंग ही देगी ‘लहर’ का जवाब
लोकसभा चुनाव सात चरणों में चलने वाला एक लंबा चुनाव अभियान है, जिसका अंतिम चरण एक जून को समाप्त होगा। मतदाता के लिए इतने लंबे चुनावी कार्यक्रम से खुद को थका हुआ महसूस करना स्वाभाविक है। लेकिन चुनाव आयोग देशभर में फैले 95वें करोड़ से अधिक मतदाताओं के लिए चुनाव की कवायद को सफल बनाने के कारण सात चरण के मतदान को उचित ठहराता है। दुनिया में सबसे बड़े मतदान प्रक्रिया में शामिल अर्ध-सैन्य बलों को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाना और दुर्गम क्षेत्रों में उनके लिए खाने पीने के सामान की व्यवस्था करना काफी जटिल प्रक्रिया है, इसलिए किसी को भी इस लंबी चुनाव प्रक्रिया का विरोध नहीं करना चाहिए। यदि सात चरणों में मतदान प्रक्रिया हिंसा व भय-मुक्त और निष्पक्ष व पारदर्शी तरीके के साथ संपन्न हो जाती है तो इसके लिए चुनाव आयोग धन्यवाद का पात्र होगा। लेकिन इस बार के चुनाव में कोई लहर नजर नहीं आ रही है। साथ ही राजनेताओं से लेकर मीडिया व समाचार पत्रों ने भी इस चुनाव में कोई लहर न होने की बात को जोर-शोर से उठाया है। लेकिन चुनाव में किसी लहर के न होने में भी कोई बुराई नहीं है, क्योंकि कई बार जब चुनाव में किसी की लहर चलती है तो उसमें कम योग्य उम्मीदवार भी जीत जाते हैं। लेकिन मोदी और भाजपा विरोधी लोगों ने इसका अर्थ यह निकाल लिया है कि भाजपा के पक्ष में कोई लहर नहीं है और वह संकट से गुजर रही है।
अगर मोदी लहर नहीं है तो विपक्ष के पक्ष में भी कोई हवा नहीं नजर आ रही है और निश्चित रूप से अगर राहुल गांधी या किसी अन्य विपक्षी नेता के पक्ष में कोई हवा होती तो भाजपा का चिंतित होना स्वभाविक होता। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि मोदी के आलोचकों को भी विपक्ष के पक्ष में कोई हवा नजर नहीं आ रही है, इसलिए उन्हें 4 जून को वोटों की गिनती होने पर विपक्षी बहुमत का सपना भी नहीं देखना चाहिए। घोर मोदी विरोधियों का मानना है कि लोग मोदी से नाराज हंै, पर यह भी नहीं कहा जा सकता कि लोग मोदी से नाराज है, क्योंकि नौकरियों की कमी, उपभोक्ता महंगाई, लगातार पेपर लीक, विवादास्पद अग्निवीर योजना आदि जैसी असंख्य समस्याओं के होने के विपक्षी दावों के बावजूद प्रधानमंत्री अब तक के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। दूसरे शब्दों में, अब की बार "400 पार" से अधिक के भाजपा के प्रचार ने उसके अपने समर्थकों को डरा दिया, जो दिल से यह भी जानते थे कि लहर के अभाव में यह एक अप्राप्य लक्ष्य था। 2014 में, मोदी कांग्रेस विरोधी, भ्रष्टाचार विरोधी लहर के सहारे सत्ता में आए थे। 2019 में पुलवामा में पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के बाद बीजेपी अपने दम पर 303 सीटें जीतने में सफल रही। मोदी की निरंतर लोकप्रियता और इस तथ्य की व्यापक रूप से स्वीकृति के कारण 2024 में यह एक आरामदायक बहुमत जीतने के लिए तैयार है कि कोई भी विपक्षी नेता प्रधानमंत्री बनने में सक्षम नहीं है।
अब आइए इस चुनाव की एक और ग़लतफ़हमी को दूर कर लें। आलोचकों ने अब तक पांच चरणों में मतदान के प्रतिशत में मामूली गिरावट का अर्थ यह लगाया है कि भाजपा मुश्किल में पड़ सकती है। 'हवा' की कमी के साथ अपेक्षाकृत कम मतदान को भाजपा विरोधी माना जा रहा है। हालांकि, सच्चाई बिल्कुल विपरीत है। क्योंकि सीपीआई (एम) और भाजपा को छोड़कर अन्य सभी दल परिवार के स्वामित्व वाले उद्यम हैं। दोनों कैडर-आधारित पार्टियां सबसे कठिन परिस्थितियों में वोट देने के लिए अपने कैडरों पर भरोसा कर सकती हैं। बारिश हो या धूप, कैडर न सिर्फ अपना वोट डालते हैं बल्कि दूसरों को भी मतदान के लिए मतदान केंद्र पर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। दूसरे शब्दों में, कम मतदान से भाजपा को किसी भी अन्य पार्टी की तुलना में अधिक मदद मिलती है। 2024 में, अपने समर्थकों पर भरोसा करने के अलावा, भाजपा स्वतंत्र मतदाताओं पर भरोसा कर सकती है जो ऐसा महसूस करते हैं मोदी का कोई विकल्प नहीं है। जैसे हरियाणा में जहां उसने सभी दस सीटें जीत ली थीं, लेकिन जातीय गणित ऐसा है कि वह अभी भी कम से कम छह से सात सीटें जीत सकती है। दूसरे शब्दों में, सत्तारूढ़ भाजपा को लगातार तीसरे कार्यकाल की संभावना दिख रहा है। केवल कोई चमत्कार ही उसे 543 के सदन में 272 सीटों के साधारण बहुमत से वंचित कर सकता है। अपने सहयोगियों के लिए कम से कम बीस सीटों के साथ, 300 से अधिक सांसदों वाला एनडीए मेंं नई सरकार के 100 दिन के लिए मोदी को पहले से ही तैयार किए जा रहे एजेंडे को लागू करने की अनुमति देगा।