नेपाल का पलटूराम
Palturam of Nepal: राजनीति में हमने एक से बढ़कर एक पलटूराम देखे हैं। हाल ही में हुए आम चुनावों से पहले दल बदलने का खेल अब की बार ज्यादा देखा गया है। सियासतदानों का कलाबाजी खाना कोई नई बात नहीं है। इस मामले में पड़ोसी देश नेपाल भी कहीं कम दिखाई नहीं देता। नेपाल में 2008 में 239 साल पुरानी राजशाही व्यवस्था खत्म कर लोकतंत्र आया था। इससे पहले नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र था और नेपाल के राजा की पूजा देवी-देवताओं की तरह की जाती थी लेकिन बंदूक से निकली क्रांति के बाद जो आधा-अधूरा लोकतंत्र आया उससे आज तक नेपाल में राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हो सकी है। नेपाल का लोकतंत्र अभी 16 साल का हुआ है लेकिन एक के बाद एक 10 सरकारें बदल चुकी हैं। नेपाल में एक बार िफर सियासी संकट खड़ा हो चुका है क्योंकि नेपाल की सिसायत में पलटूराम कहे जाने वाले केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की सरकार से समर्थन वापिस ले लिया है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने नई सरकार बनाने के िलए शेर बहादुर देऊबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया है।
इससे प्रचंड सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। प्रचंड ने इस्तीफा देने से इंकार कर राजनीतिक स्थिति को जटिल बना दिया है। प्रचंड का कहना है कि वह इस्तीफा देने की बजाय संसद में विश्वास मत का सामना करेंगे। प्रचंड ने अपने डेढ़ साल के कार्यकाल के दौरान संसद में तीन बार विश्वास मत हासिल किया। नेपाल के प्रतिनिधि सदन में सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस के पास 89 सीटें हैं जबकि सीपीएन-यूएमएल के पास 78 सीटें हैं। दोनों दलों की संयुक्त संख्या 167 है जो 275 सदस्यीय सदन में बहुमत के लिए 138 सीटों के आंकड़े के लिए पर्याप्त है। शेर बहादुर देऊबा और केपी शर्मा ओली के गठबंधन को लेकर सत्ता के गलियारों में राय बॅटी हुई है। नेपाल की जनता पलटूराम ओली पर कोई भरोसा नहीं करती। दोनों राजनीतिक दल एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हुआ करते थे। प्रचंड ने भी नेपाली कांग्रेस से नाता तोड़कर ओली के साथ सांठगांठ कर 20 मार्च को विश्वास मत हासिल कर अपनी सरकार बचाई थी। दरअसल प्रधानमंत्री प्रचंड नेपाली कांग्रेस से एक महीने से राष्ट्रीय एकजुुटता की सरकार बनाने के लिए काम कर रहे थे। इसलिए अविश्वास का माहौल बना। नेपाली कांग्रेस ने प्रचंड का प्रस्ताव ठुकराया तो ओली ने अपना दांव खेल दिया। नेपाल की राजनीति में प्रचंड, शेर बहादुर देऊबा और केपी शर्मा ओली की तिकड़ी ही हावी रही है। वहीं पलट-पलट कर सरकारें बनाते और गिराते रहे हैं।
दरअसल, नेपाल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली है। इस तरह संघीय सरकार पर प्रांतीय दलों और सरकारों का दबदबा लगातार बना रहता है। जब से वहां नेपाली पंचायत की जगह बहुदलीय व्यवस्था लागू हुई है तब से गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ है और अब कहा जाता है कि राजनीतिक अस्थिरता वहां का स्थायी भाव बन चुका है। क्षेत्रीय दल बेशक संघीय स्तर पर छोटे नजर आते हैं, मगर प्रांतीय स्तर पर उनकी स्थिति मजबूत होने की वजह से वे आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में दबदबा बनाने में कामयाब रहते हैं।
कौन नहीं जानता कि केपी शर्मा ओली चीन समर्थक माने जाते हैं और वह चीन के इशारे पर ही भारत का विरोध करते रहे हैं जबकि नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देऊबा का रवैया भारत समर्थक रहा। प्रचंड भारत के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं और देश में अति राष्ट्रवाद जैसी विचारधारा को फैला रहे हैं। नेपाल के नेता सत्ता का लाभ उठाने में भी किसी से कम नहीं है। इसी कारण नेपाल में भ्रष्ट्राचार बढ़ रहा है और राजनीतिक अस्थिरता के चलते देश की अर्थव्यवस्था खोखली होती जा रही है। हजारों नेपाली युवा काम की तलाश में विदेशों में जा रहे हैं। वे मध्य पूर्व, दक्षिण कोरिया और मलेशिया की ओर पलायन कर रहे हैं। हजारों नेपाली भारत में काम कर रहे हैं। वर्ष 2022-23 में लगभग 7.7 लाख लोगों को विदेश जाने की अनुमति दी गई थी। कौन नहीं जानता कि 2015 में ओली के बयानों से ही भारत में काफी कट्टरवाद पैदा हो गया था। उनके कार्यकाल के दौरान ही नेपाली संविधान का मसौदा तैयार हुआ था जिसके कारण विरोध-प्रदर्शन हुए थे और सीमा पर नाकेबंदी हुई थी। नेपाल की अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है। नेपाल की भोगौलिक स्थिति ऐसी है जहां चीन अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है और भारत चाहता है कि नेपाल के साथ उसके संबंध मधुर रहे। भारत ने हमेशा छोटे भाई की तरह नेपाल की हमेशा मदद की है। महामारी हो या भूकंप की त्रासदी भारत ने नेपाल की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भारत के साथ खुली सीमा रखने में भी नेपाल फायदे में है जिससे लोग सीमा के आरपार जाकर खरीद-फरोख्त करते हैं लेकिन चीन समर्थक लॉबी काला पानी, लिपु लेख और लिम्पिया धुरा क्षेत्रों को नेपाल का बताकर विवाद पैदा करते रहे हैं और विवादों में ओली की भूमिका सबसे ज्यादा रही है। नेपाल के पलटूराम बार-बार संकट खड़ा करते रहे हैं। नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए चिंता का विषय है और भारत को नए घटनाक्रम पर सतर्क नजर रखनी होगी।