पैरिस ओलम्पिकः वैभव और जोश
पैरिस में सीन नदी पर ओलम्पिक का भव्य उद्घाटन हो चुका है। उद्घाटन समारोह की रंगीनियां देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा। यद्यपि उद्घाटन समारोह से पहले हाईस्पीड ट्रेन नैटवर्क पर हुए हमले में रंग में भंग जरूर डाला। खास बात यह है कि इस बार ओलम्पिक के लिए अलग से खेलगांव या आयोजन स्थल नहीं बनाए गए बल्कि आइफल टॉवर के लिए प्रसिद्ध इस शहर के बीच में प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। फ्रांस सरकार ने मौजूदा बुनियादी ढांचे में ही सुधार करके उन्हें खेल स्पर्धाओं के लायक बना दिया है। ओलम्पिक को खेलों का महाकुम्भ कहा जाता है लेकिन इस महाकुम्भ के लिए फ्रांस ने नए निर्माण पर पैसा नहीं खर्च किया। शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों के साथ-साथ अस्थाई आवास की व्यवस्था की गई है। पैरिस के शहरी नियोजन ने समझदारी से काम लेते हुए शहर को ओलम्पिक आयोजन के लिए तैयार कर दिया है। कम संसाधनों का बेहतर उपयोग करके सारा काम किया गया है। पैरिस शहर में जिस तरह से बदलाव किए गए हैं, दूसरे देश भी उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। ओलम्पिक खेल अब आर्थिक ताकत आैर वैभव दिखाने का साधन बन चुके हैं। कोई समय था खेलों को शांित का प्रतीक माना जाता था और इसे दुनिया का सद्भाव दिखाने का सशक्त जरिया करार दिया जाता था। इसमें कोई संदेह नहीं कि समय के साथ-साथ खेलों में उत्कृष्ट प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ चुकी है। हर कोई जोश जज्बे और जुनून के साथ पदकों की होड़ में आगे निकलना चाहता है।
100 साल पहले भी फ्रांस ने ओलम्पिक खेलों की मेजबानी की थी। 1924 में पैरिस में 44 देशों के 3000 से ज्यादा एथलीटों ने भाग लिया था लेकिन अब रंगीनियों का शहर पैरिस 11,000 एथलीटों का स्वागत कर रहा है। उद्घाटन के अवसर पर सीन नदी के पुल पर 3000 से अधिक डांसर्स आैर कलाकारों की मौजूदगी, उनके कास्टयूम, 6 किलोमीटर लम्बी परेड और 100 नावों पर सवार एथलीटों के मार्च को देखकर ही फ्रांस की भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है। खुशी की बात यह है कि पैरिस ओलम्पिक में भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत पहुंच गई है। दुनिया में पहली बार ओलम्पिक साल 1896 में हुए थे। उस समय एक भी महिला ने ओलम्पिक में हिस्सा नहीं िलया था, जिसके बाद वर्ष 1900 में 2.2 प्रतिशत महिलाएं ओलम्पिक का हिस्सा बनी थीं। 128 वर्ष बाद वह िदन आ ही गया जब ओलम्पिक के मैदान में जितनी संख्या में पुरुष मैदान में होंगे उतनी ही संख्या में महिलाएं भी मैदान में खड़ी होंगी। जो महिलाएं सालों से घर की चारदीवारी में बंद थी वे अब बाहर आकर आसमान छूने लगी हैं। आज वे अपने देशों के लिए गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज मैडल जीत रही हैं।
पैरिस की जमीन वो भूमि है जहां पर पहली बार महिलाओं ने ओलम्पिक की दुनिया में कदम रखा था और मुकाबले में उतरी थीं, वहीं पैरिस की यह वही जमीन है जहां से ओलम्पिक में महिलाओं का सफर 2 प्रतिशत से शुरू हुआ था, महज 22 महिलाएं टेनिस से लेकर कई मुकाबलों में सामने आई थीं । इस जमीन पर पहले भी इतिहास रचा गया था और एक बार फिर आज इतिहास रचा जाएगा, जब उसी जमीन पर जहां से 2 प्रतिशत से महिलाओं का ओलम्पिक में आने का सफर शुरू हुआ था, आज वहीं से 50 प्रतिशत महिलाएं मुकाबले में हिस्सा लेंगी। 1900 में पांच बार की विंबलडन चैंपियन ब्रिटिश टेनिस खिलाड़ी चार्लोट कूपर पहली महिला ओलम्पिक चैंपियन बनीं थी। 997 एथलीटों में से सिर्फ 22 महिलाएं मैदान में उतरी थीं, जिन्होंने टेनिस से लेकर घुड़सवारी, गोल्फ में मुकाबला किया था। जिसके बाद 1952 में महिलाओं की तादाद में इजाफा हुआ और यह 10.5 प्रतिशत पहुंच गई थी। 1964 में 13. 2 प्रतिशत, 1992 में 28.9 प्रतिशत हुई। जिसके बाद साल 2020 में महिलाओं की तादाद 40.8 प्रतिशत पहुंच गई थी और अब 2024 में 50 प्रतिशत हो गई है।
भारत से 117 एथलीटों का दल ओलम्पिक में भाग लेने पहुंचा है, जिसमें 70 पुरुष एथलीट और 47 महिला एथलीट हैं। भारत ने टोकियो ओलम्पिक में सात मैडल जीते थे। इस बार उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत सात के आंकड़े को पार करने की पूरी कोशिश करेगा। कुश्ती में हमेशा ही हमें बहुत उम्मीदें रही हैं लेकिन इस बार संदेह है कि पहलवान कुछ अच्छा कर पाएंगे? कुश्ती को छोड़कर किसी भी दूसरे खेल के खिलाड़ी अपनी तैयारी को लेकर कोई शिकायत नहीं कर सकते। एथलैटिक्स में 29, निशानेबाजी मेें 21 और हाकी में 19 खिलाड़ियों में से 40 खिलाड़ी पहली बार ओलम्पिक में भाग ले रहे हैं। निश्चित रूप से इनमें अनुभव का अभाव तो होगा ही।
भारत की पदक की उम्मीदें बस कुछ एथलीट्स पर ही टिकी हैं। इसमें सबसे पहला नाम नीरज चोपड़ा का है। नीरज भले ही अभी तक 90 मीटर की दूरी तक जैवलिन थ्रो नहीं कर पाए हैं लेकिन उन्होंने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। वहीं बैडमिंटन पीवी सिंधू, चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी कमाल कर सकते हैं। इसके अलावा शूटिंग में मनु भाकर और सौरभ चौधरी मेडल के बड़े दावेदार हैं। पहली बार ओलम्पिक में हिस्सा लेने वाली बॉक्सर निकहत जरीन और निशांत देव ने पिछले कुछ समय में अच्छा प्रदर्शन किया है, इसलिए उनसे मेडल की उम्मीद की जा सकती है।
भारतीय हाकी टीम ओलम्पिक में मुश्किल ग्रुप में है और पिछले कुछ समय से वह अच्छे फार्म में भी नहीं है। इसलिए अनुभवी खिलाड़ियों को ही जान लगाकर खेलना होगा। फिर भी रोशनियां आैर फैशन के शहर में भारत द्वारा अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद की जाती है। खेल प्रेमी खेलों के साथ-साथ फ्रांस के वैभव और भव्यता का आनंद उठा सकते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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