बांग्लादेश के हिन्दुओं का कर्ज अदा करो
पड़ोसी देश बांग्लादेश में उम्मीद के मुताबिक, मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को विजय हासिल हुई है। इस तरह वह अपने देश की लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने जा रही हैं। पिछले रविवार यानी 7 जनवरी को हुए आम चुनाव में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने संसद की 300 में से 204 सीटें जीत लीं। इस बार 299 सीटों पर वोटिंग हुई थी। शेख हसीना 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री थीं। इसके बाद 2009 में फिर प्रधानमंत्री बनीं। तब से अब तक सत्ता पर काबिज हैं।
बांग्लादेश में 10 प्रतिशत आबादी वाले हिंदुओं के वोट एकमुश्त अवामी लीग को गए और शेख हसीना की कुल 107 सीटों पर जीत पक्की हो गई। इसमें कई सीटें तो ऐसी हैं, जहां हिंदू वोटर 20-40 प्रतिशत तक हैं। अब शेख हसीना को सुनिश्चित करना होगा कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले थम जाएं और वे देश में सम्मान के साथ रहें। पहले देखने में आया है कि देश में अवामी पार्टी की नेता शेख हसीना के आम चुनावों में विजय के बाद हिन्दुओं पर हमले होने लगे थे। राजशाही, जेसोर, दीनाजपुर वगैरह में हिन्दुओं पर हमले हुए। उनकी संपत्ति को हानि पहुंचाई गई। शेख हसीना को अपने देश के हिन्दुओं को जिहादी कसाईओं का आसान ग्रास बनने से बचाना होगा। अफसोस कि वहां पर हिन्दू बुरी तरह से पीड़ित हैं, मन्दिरों व हिन्दू घरों को तोड़ा व जलाया जाता है।
भारत सरकार इस बात को सुनिश्चित करे कि बांग्लादेश की धरती पर हो रहे जिहादियों के नंगे नाच को रोका जाए और जो लोग वहां से पलायन को मजबूर हैं उन्हें सीमा पर ही सीमा सुरक्षा बल के शिविरों के द्वारा सुरक्षा व सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए। बांग्लादेश में हिन्दुओं पर जुल्मों-सितम रुकते ही नहीं हैं। जब 1947 में भारत का बंटवारा हुआ था, उस समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हिन्दू वहां की आबादी के 30 से 35 फीसदी के बीच थे। पर अब वहां हिन्दू देश की कुल आबादी का मात्र 8 फीसदी ही रह गए हैं। बांग्लादेश में शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता हो जब किसी हिन्दू महिला के साथ कट्टरवादी बदतमीजी न करते हों।
क्या बांग्लादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न की खबरें उन भारतीय सेकुलर नेताओं तक नहीं पहुंचती हैं जो हमास के किसी आतंकी को मारने पर इजराइल को पानी पी-पीकर कोसते हैं? भारत में कुछ लोग अक्सर यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान और भारत के राजनेता अपने स्वार्थ के लिए दोनों देशों के बीच खटास पैदा करते हैं, जबकि दोनों देशों के लोग अमन चाहते हैं, एक-दूसरे से मुहब्बत करते हैं। ऐसे लोग अपने पाकिस्तानी मित्रों से यह क्यों नहीं पूछते कि पाकिस्तान में हिन्दू 1 प्रतिशत से भी कम क्यों रह गए हैं? यदि पाकिस्तानी मुस्लिम अपने यहां के हिन्दुओं से मुहब्बत करते तो वे लुट-पिट कर भारत नहीं आते? पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी कम होने की सबसे बड़ी वजह है मतान्तरण। हिन्दुओं को जबर्दस्ती इस्लाम कबूलवाया जाता है। इस पर भारतीय सेकुलर कभी कुछ क्यों नहीं बोलते हैं? पाकिस्तान व बंगलादेश में हिन्दुओं के साथ घटने वाली नृशंस घटनाएं क्या उनकी संवेदनाएं झकझोर पाएंगी? तस्लीमा नसरीन ने भी अपने उपन्यास लज्जा में कुछ इसी तरह की जानकारी दी थी जिसका वहां के मुस्लिम कट्टरपंथियों ने भारी विरोध किया था। उस विरोध के कारण तस्लीमा नसरीन को पहले बांग्लादेश और फिर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य को छोड़ना पड़ा था।
कुछ समय पहले खबरें आ रही थीं कि बांग्लादेश के नोआखाली में हिन्दू आबादी कठमुल्लों के निशाने पर थी। यह वही नोआखाली था जहां पर 1946 में महात्मा गांधी ने जाकर हिन्दुओं के कत्लेआम को रोका था। नोआखाली देश की आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना और पाकिस्तान के दो फाड़ होने के बाद बांग्लादेश का अंग बना। यह सुदूर पूर्वी बंगाल में है। वहां पर धार्मिक उन्मादियों की भीड़ ने इस्कॉन मंदिर में भी तोड़फोड़ की थी। हमलावरों ने मंदिर में मौजूद भक्तों के साथ भी मारपीट की थी। अगर हम इतिहास के पन्नों को खंगाले तो पता चलेगा कि गांधी जी को कांग्रेस के नेता डॉ. विधान चंद्र राय ने 18 अक्तूबर 1946 को बताया था कि नोआखाली के हालात लगातार बिड़गते जा रहे हैं। हिंदुओं का नरसंहार हो रहा है और हिंदू महिलाओं के साथ धतकरम किया जा रहा है। मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के बाद कोलकाता में भड़की हिंसा और कत्लेआम का असर नोआखाली में भी हुआ था। गांधी जी ने स्थिति की गंभीरता को समझा और उन्होंने 19 अक्तूबर, 1946 को नोआखली जाने का फैसला किया।
गांधी जी 6 नवंबर 1946 को नोआखली के लिए रवाना हुए और अगले दिन वहां पहुंच गए। उनके साथ उनके निजी सचिव प्यारे लाल नैयर, डॉ. राम मनोहर लोहिया, उनकी अनन्य सहयोगी आभा और मनु वगैरह भी थे। बापू 9 नवंबर को नंगे पैर नोआखली के दौरे पर निकले। उन्होंने अगले सात हफ्तों में 116 मील की दूरी तय की और 47 गांवों का दौरा किया। गांधी जी ने चार महीने मुस्लिम लीग की सरकार की तमाम अड़चनों के बाद भी गांव- गांव पैदल घूम कर पीड़ित हिंदुओं के आंसू पोंछने और हौसला दिलाने का काम किया।
पाकिस्तान बनने के बाद तमाम उथल-पुथल और कानूनी जंग के बावजूद गांधी आश्रम आज भी वहां है लेकिन वहां कठमुल्ले मौका मिलते ही हिन्दुओं को मारने लगते हैं। खैर, फिर से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने देश के हिन्दुओं के कर्ज को उतारना होगा जो उनके पक्ष में वोट डालते हैं। शेख हसीना को लेकर भारत सरकार का रवैया सकारात्मक रहा है, वह भी भारत को चाहती हैं। उन्हें पता है कि बांग्लादेश की आजादी में भारत का किस तरह का योगदान रहा था। उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शेख हसीना दोनों देशों के संबंधों को और मजबूती देंगे।