For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

उपचुनावों का सियासी संदेश

05:09 AM Jul 15, 2024 IST
उपचुनावों का सियासी संदेश

पिछले महीने हुए लोकसभा चुनावों के बाद इस माह सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को जिस तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा है उससे यह आभास होता है कि जनता में अभी भी राष्ट्रीय चुनावों का खुमार चढ़ा हुआ है। जिन 13 सीटों पर चुनाव हुए थे उनमें से दस स्थान विपक्षी इंडिया गठबन्धन के घटक दल चुनाव जीते हैं और भाजपा को केवल दो सीटें ही प्राप्त हुई हैं। एक सीट पर बिहार में निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाले परिणाम उत्तराखंड राज्य से आये हैं जहां की दोनों सीटों मंगलौर मंडी व बद्रीनाथ पर कांग्रेस ने विजय पताका फहराई है। इन चुनावों में एक तथ्य और स्पष्ट हुआ है कि उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी बहुजन समाज पार्टी का दबदबा अभी लगभग समाप्त प्रायः है और यह विपक्ष के वोट काटने के लिए ही अपने प्रत्याशी खड़े करती है।
सुश्री मायावती की पार्टी का रुतबा अब वोट कटवा पार्टी का बनकर रह गया है। हालांकि उत्तराखंड की मंगलौर सीट कांग्रेस ने बहुजन समाज पार्टी से ही छीनी है परन्तु यहां मुख्य मुकाबले में भाजपा के प्रत्याशी करतार सिंह भडाना रहे जिन्हें कांग्रेस के नेता काजी मोहम्मद निजामुद्दीन ने कड़े मुकाबले में केवल 422 वोटों से हराया। बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी यहां तीसरे नम्बर पर रहा। इसी प्रकार राज्य की बद्रीनाथ धाम की सीट पर भी कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला 51 प्रतिशत से अधिक मत लेकर विजयी हुए जबकि यह सीट पिछली बार भी कांग्रेस के पास ही थी मगर इसके विधायक राजेन्द्र सिंह भंडारी के कांग्रेस से भाजपा में जाने के बाद खाली हो गई थी। भंडारी इस बार भाजपा के टिकट से खड़े हुए थे मगर बुरी तरह हार गये। लगता है इस बार जनता ने दल बदलुओं को करारा सबक सिखाया है। उत्तराखंड में भाजपा की ही पुष्कर धामी सरकार है मगर उसकी नाक के नीचे से बद्रीनाथ सीट हार जाने के बड़े अर्थ निकाले जा रहे हैं और माना जा रहा है कि आम मतदाता भाजपा की धर्म पर आधारित राजनीति को नकार रही है।
लोकसभा चुनावों में फैजाबाद सीट पर भी इंडिया गठबन्धन की समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अवधेश पासी ने भाजपा के लल्लू सिंह को धूल चटाई थी। उपचुनावों में दल-बदलुओं को भी करारी शिकस्त जनता ने दी है। हिमाचल प्रदेश की जिन तीन सीटों देहरा, हमीरपुर व नालागढ़ में उपचुनाव हुए उनमें से दो पर कांग्रेस के प्रत्याशी विजयी हुए। ये तीनों सीटें निर्दलीय विधायकों की सदस्यता समाप्त हो जाने की वजह से खाली हुई थीं। मगर ये तीनों बाद में भाजपा में शामिल हो गये थे। इनमें से दो को पराजय का मुंह देखना पड़ा, जबकि हमीरपुर सीट पर ही भाजपा उम्मीदवार जीत पाया।
बिहार की अकेली रुपौली सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह जीते। पिछली बार यह सीट सत्ताधारी जद (यू) के पास थी। इस सीट पर लालू प्रसाद की राजद पार्टी की प्रत्याशी बीमा भारती की भी करारी शिकस्त हुई है। मगर पश्चिम बंगाल में तो सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने सभी चार सीटों पर जीत दर्ज करके झाड़ू लगा दी है और भाजपा से सीटें छीन ली हैं। माना जा रहा था कि उपचुनाव में भाजपा अपनी सीटें बरकरार रखने में सफल रहेगी मगर उसे असफलता हाथ लगी। जिन चार सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें से तीन पर पिछली बार भाजपा जीती थी। मध्य प्रदेश में भाजपा को अवश्य शानदार जीत मिली है मगर जो प्रत्याशी जीता है वह पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुआ था। यह अमरवाड़ा सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के चुनाव क्षेत्र छिन्दवाड़ा में पड़ती है। हालांकि लोकसभा चुनावों में इस बार छिन्दवाड़ा सीट से श्री कमलनाथ के सुपुत्र नकुलनाथ भी पराजित हो गये मगर इसके बावजूद यह क्षेत्र कमलनाथ का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है। अमरवाड़ा से भाजपा के कमलेश प्रताप शाह तीन हजार से कुछ अधिक वोटों से जीते हैं। मगर लोकसभा चुनावों से पहले ही वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गये थे जिसकी वजह से दल-बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता चली गई थी। मगर उपचुनाव में बतौर भाजपा प्रत्याशी उनकी जीत हो गई।
पंजाब में जालंधर सीट से आम आदमी पार्टी का प्रत्याशी विजयी रहा। पिछली बार भी यह सीट आम आदमी पार्टी के पास ही थी। इसी प्रकार तमिलनाडु की अकेली विक्रावंडी सीट सत्ताधारी द्रमुक के प्रत्याशी ने 63 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त कर जीती। उपचुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि देश के हर भाग में अभी हवा पलट रही है जिसमें भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद इन चुनाव परिणामों का सन्देश मिश्रित ही कहा जायेगा क्योंकि हिमाचल प्रदेश में भाजपा बेशक एक सीट ही वहां कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद जीत गई और मध्य प्रदेश में अपनी सरकार होने का उसे लाभ मिला मगर उत्तराखंड में वह यह कमाल नहीं कर सकी और दोनों सीटें अपनी सरकार होने के बावजूद हार गई। इसका असर उत्तर प्रदेश की दस सीटों पर होने वाले उपचुनावों पर कितना पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। कुछ विश्लेषक इन उपचुनाव परिणामों को इस रूप में देख रहे हैं कि यह भारत मेें नई राजनीति की शुरूआत है और लोग अपने जीवन के मुद्दों पर राजनैतिक दलों को बात करते हुए देखना चाहते हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Advertisement
×