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हरियाणा का सियासी मिजाज

03:47 AM Sep 15, 2024 IST
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हरियाणा विधानसभा चुनावों के सन्दर्भ में यह दीवार पर लिखी हुई इबारत है कि राज्य में मुकाबला केवल सत्तारूढ़ भाजपा व विपक्षी कांग्रेस पार्टी के बीच ही होने जा रहा है। इन दोनों पार्टियों के अलावा प्रदेश में जितने भी राजनैतिक दलों के चुनावी गठबन्धन हैं वे केवल वोट कटवा ही साबित होंगे और चुनाव नतीजों पर कोई गुणात्मक असर नहीं डाल पायेंगे। ऐसा इसलिए विश्वास और एतमाद के साथ कहा जा सकता है क्योंकि हरियाणा का राजनीतिक मिजाज भी यहां की ‘खड़ी कौरवी हिन्दी’ बोली के समान ही ‘खड़ा’ है। जब से हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया है तभी से यहां के ‘देशज’ मतदाताओं ने चुनावों के समय अपनी वरीयता छिपाने में विश्वास नहीं रखा है। मगर हाल ही में जेल से जमानत पर छूटे दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल की रिहाई को भी हरियाणा के चुनावों से जोड़कर देखने की कोशिश कुछ लोग कर रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि श्री केजरीवाल मूलतः हरियाणा के ही निवासी हैं।
केजरीवाल राजधानी दिल्ली की सियासत के चमकते सितारे माने जाते हैं मगर हरियाणा में उनका प्रभाव शून्य माना जाता है। इसकी असली वजह यह है कि केजरीवाल की राजनीति शहरी मिजाज की है जबकि हरियाणा की राजनीति ग्रामीण मिजाज की है। यह ऐसा कारण रहा है कि जिसकी वजह से भाजपा अपने जनसंघ के काल से ही कभी भी हरियाणा के गांवों में अपनी पैठ नहीं बना पाई और 70 के दशक तक यह शहरी पार्टी मानी जाती थी। मगर पिछले दस वर्षों से यही पार्टी राज्य की सत्ता पर काबिज है। इसका कारण बिल्कुल दूसरा है 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव भाजपा ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और चेहरे पर जीते थे। हालांकि 2019 में इसमें कमी आयी मगर इसके बावजूद इस पार्टी के 90 सदस्यीय विधानसभा में 40 सदस्य चुने गये थे और इसने दुष्यन्त चौटाला की जजपा के दस विधायकों के साथ मिलकर पुराने मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में ही सरकार बनाई थी। मगर यह भी हकीकत है कि श्री खट्टर भी ग्रामीणों के नेता न होकर शहरी वर्ग में ही स्वीकार्य थे। भाजपा की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि इसके पास क्षेत्रीय स्तर का कोई सर्वमान्य लोकप्रिय नेता नहीं है। जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस के पास गांवों की जड़ से जुड़े देशज नेताओं की भरमार है।
भाजपा के वर्तमान मुख्यमन्त्री श्री नायब सिंह अभी नये-नये राज्य नेता बने हैं जिन्हें अपनी लोकप्रियता अर्जित करनी है मगर उन्हें लोकसभा चुनावों से पहले ही मुख्यमन्त्री बनाया गया था और श्री खट्टर को हटाया गया था अतः इतने कम समय में लोकप्रियता अर्जित करना राजनीति में आसान काम नहीं है। अतः भाजपा वर्तमान विधानसभा चुनाव भी श्री मोदी की लोकप्रियता के सहारे ही लड़ेगी। उधर मुख्यमंत्री रहे भूपेन्द्र हुड्डा कांग्रेस की सत्ता वापसी के लिए पूरा दमखम मार रहे हैं, क्योंकि राजनीतिक ​विश्लेषक उन्हें भावी सीएम के रूप में देख रहे हैं। हालांकि इसका जवाब समय ही देगा। मगर लोकतन्त्र में सदैव परिस्थितियां एक समान नहीं रहती हैं क्योंकि लोकतन्त्र की खूबी भी यह होती है कि यह परिवर्तन का हामी होता है और नये विकल्पों को गढ़ता रहता है। एक जमाना था जब राज्य में स्व. बंसीलाल की तूती बोला करती थी और उनके विकास के माॅडल को देशभर में अनुकरणीय माना जाता था। इसके बाद हरियाणा ने स्व. भजनलाल का जोड़-तोड़ का माॅडल भी देखा। भजन लाल तो उस शह का नाम था जो पूरी की पूरी सरकार का राजनैतिक रंग ही रातोंरात बदल देता था। एेसा उन्होंने 1980 में केन्द्र में श्रीमती इन्दिरा गांधी की कांग्रेस की वापसी के बाद किया था जब उनकी जनता पार्टी सरकार रातोंरात बदल कर कांग्रेस की सरकार हो गई थी।
राज्य ने स्व. देवीलाल के तेज तेवरों को भी देखा है और उनकी स्पष्टवादी राजनीति का अन्दाज भी परखा है। मगर अब इन तीनों ही स्वर्गीय महारथियों की अगली पीढि़यों के कर्णधारों ने अपने राजनैतिक कार्यकलापों से राज्य की जनता का मोहभंग कर दिया है और इनकी पारिवारिक पार्टियां हाशिये पर खड़ी हो गई हैं। जिसकी वजह से हरियाणा में असली लड़ाई दो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस व भाजपा के बीच होने जा रही है। जहां तक अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सवाल है तो वह कांग्रेस की प्रमुखता वाले विपक्षी इंडिया गठबन्धन की सदस्य पार्टी है। अतः विपक्षी गठबन्धन की एकता के पक्ष के पैरोकारों का यह मानना है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने श्री केजरीवाल के जेल में रहते जिस प्रकार से कांग्रेस पार्टी के साथ राज्य में सीटों के बंटवारे पर बातचीत की वह वास्तविकता पर टिकी हुई नहीं थी और आम आदमी पार्टी के नेता अपनी हैसियत से बहुत बढ़कर सीटों की मांग कर रहे थे लेकिन अब केजरीवाल जेल से बाहर आ चुके हैं और वह गठबन्धन पर पुनर्दृष्टि डाल सकते हैं। वैसे हरियाणा के बारे में यह कहा जा रहा है कि यदि आम आदमी पार्टी राज्य की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारती है तो वह केवल शहरी मतदाताओं में से ही अपना हिस्सा काटेगी। ग्रामीण मतदाताओं तक उसकी पहुंच अभी राज्य में नहीं बनी है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी को कुरुक्षेत्र की एक सीट दी थी जिस पर वह सफल नहीं हो सकी। जबकि कांग्रेस पांच सीटों पर विजयी रही थी और पांच पर भाजपा जीती थी। फिर भी राजनीति में हार-जीत का फैसला होने तक सांसें रुकी ही रहती हैं मगर हरियाणा के बारे में ऐसा भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां का आम मतदाता खुद बोल कर अपनी वरीयता बताने से हिचक नहीं रहा है। एक जमाने में राज्य के समाजवादी नेता स्व. मनीराम बागड़ी यह बात कहा करते थे कि जब अन्य राज्यों के मतदाता सोचते हैं तो हरियाणा का मतदाता कर गुजरता है। स्व. बागड़ी हिसार से लोकसभा के सदस्य चुने जाते थे।

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