कांवड़ यात्रा के मार्ग पर नेम प्लेट की सियासत
"जात न पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ी रहने दो म्यान।"
कुछ ऐसा ही कह कर विपक्षी दलों ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को घेर लिया, जबकि दुकानों पर नाम की तख्ती लगाने का तो आदेश कोर्ट द्वारा बहुत पहले ही दे दिया गया था। हां, योगी आदित्यनाथ ने ताबड़तोड़ इसे लागू करके अपने विरोधियों को अपने विरुद्ध प्लेट में परोस दिया। एक तो योगी पहले ही यूपी भाजपा की भीतर घात से जूझ रहे हैं, ऊपर से यह समस्या आन पड़ी। विपक्ष जो ख़ुद ही हिंदू-मुस्लिम कर भाजपा के ऊपर इसे थोप देता है, उस मकड़ जाल से योगी और केंद्रीय सरकार बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
कांवड़ यात्रा आज से नहीं, हजारों वर्ष से चली आ रही है और इस प्रकार की धार्मिक गतिविधियों का सभी धर्मों में सम्मान होता है, चाहे वह हज यात्रा हो, चारों धाम यात्रा हो या श्री अमरनाथ जी यात्रा हो, सभी का अपना-अपना महत्व है और अपनी-अपनी आस्था के अनुसार सभी उसका अनुसरण करते हैं। वास्तव में कांवड़िए 240 किलोमीटर की यात्रा में भगवान शिव के सम्मान में भगवा वस्त्र धारण कर शुद्ध, पावन और पवित्र गंगा जल अपनी कांवड़ों में भर कर लाते हैं। वास्तव में यह सात्विक धार्मिक यात्रा इसलिए की जाती है कि सनातन आस्था के अनुसार भगवान शिव को विश्व को विष से बचाने के लिए ज़हर पीना पड़ा था और उनके गले में इससे जलन होने लगी थी, जिसको मिटाने के लिए रावण ने गंगा जल देकर उनकी जलन को समाप्त किया था और तभी से कांवड़ यात्रा होती चली आई है।
इस दौरान उनकी आस्था के अनुसार रास्ते में उन्हें शुद्ध वैष्णव भोजन लेना होता है और वे उन बरतनों और लोगों से भोजन नहीं ले सकते जो मांस, मच्छी, अंडों आदि का प्रयोग करते हैं। इसको इस तरह से समझना चाहिए कि जैसे मुसलमान झटके का मांस नहीं खाते हैं, क्योंकि उनकी आस्था इसकी इजाज़त नहीं देती, जिसके कारण सभी पांच सितारा होटलों में नॉन वेज भोजन हलाल होता है। वास्तव में योगी ने कुछ ऐसा ही करना चाहा, मगर इसको सही दिशा नहीं दे पाए और उच्चतम न्यायालय के आदेश की चपेट में आ गए। एक और बात भी नोट करने की यह है कि कांवड़िए भी आजकल उस प्रकार के नहीं रहे कि जैसे पहले हुआ करते थे। आए दिन उनके द्वारा सड़कों पर उत्पात करने और होटलों में तोड़फोड़ करने की खबरें आती रहती हैं, जिसके बारे में उन्हें विचार करना होगा कि कोई अनर्थ ऐसा न हो उनसे कि इस यात्रा की शुचिता पर बट्टा लगे।
योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ रूट पर सभी दुकानदारों और होटलों को अपनी असली पहचान लिखने का आदेश जारी किया था जिस पर सियासी पारा चढ़ा हुआ है हालांकि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय का निर्णय आ चुका है। विपक्ष जहां अब भी इसका विरोध कर रहा है, वहीं अब बिहार में भी इसकी मांग उठने लगी है। बिहार में बीजेपी विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल ने यूपी-उत्तराखंड की तर्ज पर बिहार में भी कांवड़ रूट पर लगी दुकानों और होटलों में मालिक की सही पहचान लिखने की मांग उठाई है।
इस विवाद के बीच गया के दुकानदारों ने बड़ा काम कर डाला है। यहां लगभग सभी दुकानदारों ने खुद से ही अपनी दुकानों पर अपनी असली पहचान लिख दी। लोगों का कहना है कि यह भेदभाव करने वाले राजनेताओं के मुंह पर बड़ा तमाचा मारने का काम किया गया है।
रही बात हिंदू-मुस्लिम रिश्तों की तो सदियों से ही दोनों का चोली-दामन का साथ है। मराठा योद्धा, शिवाजी महाराज का सबसे विश्वसनीय सेनापति अल्लाह दाद खान था जिसने मुग़लों के दांत खट्टे किए थे। ऐसे ही शहंशाह औरंगजेब का सबसे विश्वसनीय सेनापति एक मराठा सिपाही, अपपा गंगाधर था, जिसके सम्मान में उसने उस समय के उर्दू बाज़ार और आज के चांदनी चौक में अपपा गंगाधर मंदिर की स्थापना करी, जिसे आज गौरी शंकर मंदिर कहा जाता है और जहां विश्व की सबसे सुरीली आरती, “ओम श्री जय जगदीश हरे” का वंदन होता है। ऐसे ही अपनी पुस्तक, “मुरक्का-ए-दिल्ली’’ में नवाब दरगाह क़ुली बहादुर लिखते हैं कि सभी मुग़ल बादशाह गंगा जल ही पिया करते थे, क्योंकि इसमें बड़ी खूबियां पाई जाती हैं।
कोलकाता में काली पूजा उत्सव के दौरान बनाए जाने वलर पंडाल मुस्लिम कारीगर ही बनाते चले आए हैं और दुर्गा पूजा की मूर्तियां भी सभी मुस्लिम कलाकार बनाते हैं। जहां चिश्तिया सूफी दरगाहों पर हिंदू अपनी मन्नतें मनवाने के लिए दुआ करते हैं, वहीं मीरा राजस्थान के बाई के मेले में हिन्दू और मुस्लिम मिल कर एक-दूसरे के साथ गाते-बजाते हैं और भोजन करते हैं। दक्षिण में राम नवमी के अवसर पर जब पोद्दारेश्वर रथयात्रा निकलती है तो रास्ते में मौलवी उसका स्वागत करते हैं और शर्बत पिलाते हैं। बेगम अख्तर यदि मंदिरों में ठुमरी गायन करती हैं तो मुहम्मद रफ़ी भी बेहतरीन भजन गाते रहे हैं। आपने देखा होगा कि फिल्म, “हक़ीक़त” में धर्मेंद्र और प्रिय राजवंश की जोड़ी के साथ जो गाना, “कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों” जुड़ा है उसे मुहम्मद रफ़ी ने गाया है और कैफी आज़मी के शब्दों के साथ मदन मोहन का संगीत है। भारत तो शताब्दियों से ही साझा विरासत की जन्म और कर्म भूमि रहा है।
- फ़िरोज़ बख्त अहमद