टूटी मूर्ति पर सियासत
छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम मराठा पहचान और परम्परा के प्रतीक पुरुष के रूप में लिया जाता है। इसलिए महाराष्ट्र की राजनीति उनके नाम के इर्द-गिर्द घूमती है। महाराष्ट्र ही नहीं सम्पूर्ण देश में शिवाजी महाराज के प्रशंसक हैं। छत्रपति शिवाजी प्रथम हिन्दू नेता थे जिन्होंने मराठों को लड़ना सिखाया। उन्होंने बिना किसी भेदभाव के महाराष्ट्र की सभी जातियों को एक भगवा झंडे के नीचे एकत्रित किया और मराठा साम्राज्य की स्थापना की। शिवाजी ने अपने प्रशासन में मानवीय नीतियां अपनाई थी जो किसी धर्म पर आधारित नहीं थी। उनकी थल सेना और जल सेना में सैनिकों की नियुक्ति के लिए धर्म कोई मानदंड नहीं था। छत्रपति शिवाजी सिर्फ महाराष्ट्र के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा के केन्द्र हैं। महाराष्ट्र क्योंकि उनकी जन्मस्थली ही नहीं कर्मस्थली भी रहा इसलिए उनकी महानता को जन-जन पसंद करता है। इसलिए महाराष्ट्र की राजनीति उनका नाम लिए बिना चल ही नहीं सकती। मराठा अस्मिता उनके नाम से जुड़ी हुई है। सिंधु दुर्ग में छत्रपति शिवाजी महाराज की 35 फीट ऊंची प्रतिमा गिर जाने से महाराष्ट्र के लोग आहत हुए हैं। प्रतिमा के गिर जाने के बाद महाराष्ट्र की सियासत में तूफान खड़ा हो गया है। मूर्ति का निर्माण और डिजाइन नौसेना ने तैयार किया था। कहा तो यही जा रहा है कि 45 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हवाओं के कारण प्रतिमा टूटकर गिर गई। मालवन के राजकोट किले में स्थापित की गई इस प्रतिमा के गिरने से मराठा अस्मिता बहुत आहत हुई है।
वैसे तो इस देश में नवनिर्मित पुल भी लगातार ध्वस्त हो रहे हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन में तेज आंधी के कारण महाकाल लोक में लगी सप्त ऋषियों की सात मूर्तियों में से 6 गिर गई थीं। मूर्तियां लगाने के समय बड़े-बड़े दावे किए गए थे कि यह मूर्तियां न तो अांधी-तूफान में खराब होंगी और न ही इन पर बारिश का कोई असर होगा लेकिन श्रद्धालु गवाह हैं कि प्लास्टर ऑफ पैरिस और प्लास्टिक से बनी इन मूर्तियों में पहली ही बारिश में टूट-फूट हो गई थी। इस देश में प्रतिमाओं को तोड़ने, उन्हें तय स्थान से हटाने या फिर रास्ता अवरुद्ध कर रही प्रतिमाओं को हटाने को लेकर बवाल होते रहे हैं। एनसीपी शरद पवार, शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने एकनाथ शिंदे सरकार को निशाना बनाना शुरू कर िदया है और आरोप लगाया है कि छत्रपति शिवाजी का स्मारक चुनावों को देखते हुए जल्दबाजी में बनाया गया था और इस काम में गुणवत्ता को पूरी तरह से अनदेखा किया गया। स्मारक बनाने के पीछे का मकसद छत्रपति शिवाजी के नाम का इस्तेमाल करना था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसी भी संरचना या स्मारक का उद्घाटन करते हैं तो लोगों को यह विश्वास होता है कि उसका काम उच्च गुणवत्ता का होगा लेकिन प्रतिमा का ढह जाना छत्रपति शिवाजी का अपमान तो है ही और यह जाहिर है कि इसका काम घटिया क्वालिटी का था। इन आरोपों के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज में जुट गए हैं। ठेकेदार और स्ट्रक्चरल कंसलटैंट के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
पीडब्ल्यूडी और नेवी के अधिकारी घटना की जांच में व्यस्त हैं। महाराष्ट्र सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री का कहना है कि शिवाजी महाराज की प्रतिमा की स्थापना के लिए महाराष्ट्र सरकार ने नेवी काे 2.36 करोड़ रुपए दिए थे। हालांकि प्रतिमा बनाने वाले आर्टिस्ट का चयन और उसके डिजाइन की पूरी प्रक्रिया नेवी ने की थी। 2023 को प्रतिमा बनाने का आर्डर दिया गया था। यह खबर भी हवाओं में घूम रही है कि प्रतिमा में इस्तेमाल किए गए स्टील में जंग लगना शुरू हो गया था और पीडब्ल्यूडी ने पहले ही नेवी को पत्र लिखकर इसकी जानकारी दी थी और ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए थे अब यह सरकार का दायित्व है कि वह निष्पक्ष जांच करा कर जवाबदेही तय करे,अगर गुनाह हुआ है तो दोषियों को दंडित करे। महाराष्ट्र विधानसभा में भी शिवाजी महाराज स्मारक के मुद्दे पर पहले ही राजनीति होती रही है। यद्यपि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दोबारा प्रतिमा लगाए जाने का आश्वासन दिया है लेकिन इस पूरे प्रकरण ने विपक्षी दलों को सरकार की घेराबंदी करने का मौका दे दिया। चुनावी राजनीति में प्रतीकों का बहुत महत्व होता है। अब तो राजकोट किले में टूटी हुई 35 फुट की प्रतिमा की जगह 100 फुट ऊंची शिवाजी महाराज की प्रतिमा स्थापित करने की मांग उठाई जा रही है।
एक बात तो स्पष्ट है कि प्रतिमा की गुणवत्ता खराब थी और बारिशों के चलते इसके नट-बोल्ट पहले ही जंग खा चुके थे। अब क्योंकि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए मराठा अस्मिता के मुद्दे पर सियासत और गर्म होने की उम्मीद है। वर्तमान राजनीति हमेशा इतिहास में झांकती है आैर भावनाओं को पुकार कर वोट हासिल करना चाहती है। महाराष्ट्र भी अपवाद नहीं है। शिवाजी, अम्बेडकर और बाल ठाकरे के स्मारक राजनीति का हिस्सा बने हुए हैं। चुनाव की सरगर्मियों के बीच शिवाजी की प्रतिमा का मुद्दा चर्चा में आ गया है। यद्यपि स्मारकों के लिए जो भावनाएं हैं उनसे पूरी राजनीति नहीं बदल सकती लेकिन यह वोट जुटाने के लिए असरदार जरूर है। स्मारकों को लेकर ध्रुवीकरण की राजनीति की जाती है और यह िसलसिला महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी जारी रहेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com