प्रदूषण : भगवान और इंसान
राजधानी दिल्ली में नकली बारिश कराने पर अभी विचार ही किया जा रहा था कि शुक्रवार की तड़के असली बारिश ने प्रदूषण से राहत दिला दी। प्रदूषण को नियंत्रण करने में इंसान असहाय हो चुका था तो भगवान ने ही मेहरबानी की है। दीपावली से पहले इस वर्षा को भगवान का उपहार ही माना जा रहा है। दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सबसे टाॅप पर है। वायु प्रदूषण रोकने के लिए अनेक उपाय किए गए लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। दिल्ली और एनसीआर की हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि लोग बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। आंखों में जलन, गले में इन्फेक्शन और सांस लेना भी दूभर हो चुका है। अध्ययन बता रहे हैं कि प्रदूषण की वजह से लोगों की औसत आयु 5 से 10 साल के बीच कम हो रही है। न तो किसान पराली जलाना बंद कर रहे हैं और न ही इस मामले में गम्भीरता से सोच रहे हैं। आनन-फानन में दिल्ली के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। डीजल वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी गई है। ग्रैप 4 के तहत अनेक पाबंदियां लगाई गई हैं। प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकारी उपाय विफल हो चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारक निरंतर बढ़ रहे हैं जबकि स्थायी उपाय अपनाने की जगह तात्कालिक प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं। 2010 से 2022 तक आते-आते प्रदूषण के परम्परागत स्रोतों की हिस्सेदारी जहां इस समय अवधि में काफी बदली है वहीं 26 नए स्रोत भी जुड़ गए हैं। परिवहन के अलावा उद्योग, ऊर्जा, आवासीय निर्माण और अन्य कारक बहुत बढ़ चुके हैं। ईंधन के प्रकार, निजी वाहनों की बढ़ती संख्या, लोगों की भीड़, खाना बनाने के तौर-तरीके यह सब दिल्ली और एनसीआर को प्रदूषण का हॉट स्पॉट बनाने के लिए काफी हैं।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश कराने पर विचार किया है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने आईआईटी कानपुर के साथ इस संबंध में विचार-विमर्श किया है। कृत्रिम बारिश के लिए आसमान में थोड़े बादल होना जरूरी हैं। इसलिए 20 और 21 नवम्बर को कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है क्योंकि दो दिन हल्के बादल रहेंगे। भारत में तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में कृत्रिम बारिश कराने की कोशिशें पहले भी हुई हैं। इसके लिए सबसे बेसिक जरूरत बादल और नमी की है। भारत में इसे लेकर बहुत प्रगति नहीं हुई है। दुनिया के कई देशों ने कृत्रिम बारिश का तरीका इस्तेमाल किया है। 1940 के दशक में जनरल इलैक्ट्रिक रिसर्च लेबोरेटरी में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार क्लाउड सीडिंग की कोशिशें शुरू की थीं। चीन ने 2008 में ओलम्पिक खेलों से पहले कृत्रिम बारिश कराने की तकनीक का प्रयोग किया था। रूस भी छुट्टियों के बड़े अवसरों से पहले क्लाउड सीडिंग कराने के लिए जाना जाता है ताकि सार्वजनिक समारोहों के रंग में बारिश से भंग न पड़ जाए। 2016 में मई दिवस की छुट्टी को बारिश मुक्त रखने के लिए रूस ने क्लाउड सीडिंग पर 8 करोड़ 60 लाख रूबल (करीब 14 लाख डॉलर) खर्च कर डाले थे। समारोह के दिन मॉस्को में मौसम खिला हुआ था। आज इस तरीके का इस्तेमाल सुखाग्रस्त इलाकों में बारिश लाने के लिए किया जाता है। चीन के अलावा अमेरिका भी क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल करता रहा है। अभी हाल-फिलहाल, सूखे की चपेट में आए उसके दो पश्चिमी राज्यों- इडाहो और व्योमिंग में क्लाउड सीडिंग की गई थी।
कृत्रिम वर्षा का प्रयोग अब तक 53 देशों में हो चुका है। क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया एयरक्राफ्ट या ग्राउंड बेस्ड रॉकेट लॉन्चर से ही हो सकती है। जानकारों के अनुसार इस प्रक्रिया के लिए बादलों का चयन सही होना जरूरी है। जिस बादल को चुना जाए उसमें लिक्विड का होना काफी जरूरी है। सर्दियों के दौरान बादलों में पर्याप्त पानी नहीं होता। सर्दियों के दौरान वातावरण में इतनी नमी नहीं होती िक बादल बना सकें। अगर वातावरण ड्राई होगा तो बारिश की बूंदें जमीन पर गिरने से पहले ही भाप बन सकती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग प्रदूषण का स्थाई हल नहीं है लेकिन स्मॉग के दौरान इसे अपनाया जा सकता है। इससे थोड़े समय के लिए राहत होगी। इसका अधिकतम असर इस पर निर्भर करेगा कि बारिश के बाद हवा किस गति से चलती है। इसलिए इसका इस्तेमाल सिर्फ आपात स्थिति में ही हो सकता है। इसके लिए बादलों की मूवमेंट का सही आकलन भी जरूरी है। अगर यह गलत हुआ तो बारिश उस जगह नहीं होगी जहां इसे करवाने का प्रयास हुआ है।
इस तरह की बारिश कराने में एक बार में करीब 15 कराेड़ रुपए का खर्च आता है। दुबई में ड्रोन के जरिये 2021 में कृत्रिम बारिश कराए जाने के बाद इसे लेकर दुनिया भर में बहस छिड़ गई थी। तब से बाढ़, सूखा, गर्मी और प्रदूषण जैसी समस्या से लड़ने में कृत्रिम बारिश काे एक हथियार के रूप में देखा जाने लगा। कृत्रिम बारिश को लेकर वैज्ञानिकों की राय भी बंटी हुई हैै। कुछ वैज्ञानिक इसे बेहतर उपाय मान रहे हैं तो कई वैज्ञानिक इसके दुष्प्रभाव को लेकर आशंकित हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक कृत्रिम बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग करके पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करना ठीक नहीं है। इससे पारिस्थितकी विषमता पैदा हो सकती है। कृत्रिम वर्षा के फायदे और नुक्सान को देखते हुए अगर दिल्ली और एनसीआर को जहरीले वातावरण से मुक्ति मिलती है तो ऐसा प्रयास करने में कोई बुराई नहीं लेकिन दिल्ली की हवा को शुद्ध बनाने के लिए स्थायी उपाय करने जरूरी हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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