जान का दुश्मन प्रदूषण
इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली की हवा खराब होने लगी है। यह तो तब है जबकि दो दिन छोड़ दिये जायें तो पूरा सितंबर दिल्ली में पानी बरसा है। इसके बावजूद अगर दिल्ली में प्रदूषण का लेवल 200-250 पार कर रहा है तो चिंता बढ़ने लगती है। हालांकि दिल्ली सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए पहले से ही डट गयी है और सरकार की तरफ से विंटर एक्शन प्लान शुरू भी कर दिया गया है लेकिन पंजाब और हरियाणा में पराली जलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है और कहा है कि इसे रोका जाये। दिल्ली सरकार ने एक काम बड़ा अच्छा किया है कि उसने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अभी से टास्क फोर्स गठित कर दी है। एंटी स्मॉग गन के अलावा ड्रोन से निगरानी के प्लान घोषित कर दिये हैं। नारे दिये गये हैं- मिलकर चलें, प्रदूषण से लड़ें लेकिन हमारा सवाल वायु गुणवत्ता के खराब होने को लेकर है। सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर वायु प्रदूषण का स्तर 300-350 पार कर जाता है तो ऑड-ईवन से लेकर वर्क फ्रॉम होम के बारे में सोचा जा सकता है।
हर साल अक्तूबर-नवंबर में धान के ठूठ को जलाने का सिलसिला जब शुरू होता है तो वायुमंडल में धुएं की चादर बनती है और यह उत्तर भारत को लील लेता है। सोशल मीडिया के अनुसार पूरे उत्तर भारत में पराली पंजाब, हरियाणा के अलावा यूपी-मध्यप्रदेश तक जलती है लेकिन दिल्ली में दमघोंटू वातावरण बन जाता है। ताजा ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। जरूरी यह है कि वायु प्रदूषण खत्म करने के लिए हरियाली का अभियान शुरू किया जाये। पिछली सरकारों ने हरियाली लाने के लिए दिल्ली को बहुत कुछ दिया है। चाहे वह मदनलाल खुराना की सरकार रही हो या शीला दीक्षित की सरकार रही हो, दोनों सरकारों ने दिल्ली को हरा-भरा बनाने के लिए अभियान चलाए और शीला दीक्षित ने तो विशेष रूप से दीवाली के पटाखों से युवा पीढ़ी को दूर रखने के लिए अभियान चलाए। वह दीवाली के दिनों में खुद स्कूलों में जाकर पटाखे न चलाने की अपील स्टूडेंट्स से करती रही, हालांकि इस कड़ी में मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार ने बहुत कुछ किया है और प्रदूषण के खात्मे के लिए अभी से जो तैयारी की है उसका स्वागत किया जाना चाहिए। जहां धूल उड़ती है उन डार्क स्पॉट पर ड्रोन उड़ाने की तैयारी है। इससे पहले कि प्रदूषण का आंकड़ा 400 पार हो तैयारी कर लेना अच्छी बात है।
मैंने इस बारे में जानकारी ली तो रोड स्वीपींग मशीन और छिड़काव करने वाली मशीनों के बारे में भी पता चला। निर्माण कार्य पर रोक भी जरूरी है। एंटी स्मॉग गन भी लांच की जा रही है। मेरा फिर भी व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि पानी का छिड़काव बहुत बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए। जो वायु प्रदूषण अक्तूबर-नवंबर में होना था वह अभी से खतरे की घंटी बजा रहा है, उसे लेकर बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जब मैं सोशल मीडिया पर लोगों की अभिव्यक्ति को सुनती हूं तो हैरान हो जाती हूं कि दिल्ली की सड़कों पर हर तरफ वाहन ही वाहन हैं। इनमें बैटरी चालित वाहन भी हैं और पैट्रोल तथा धुआं फैकने वाले वाहन भी हैं। एक दिन में दिल्ली की सभी सड़कों पर सोशल मीडिया की जानकारी के अनुसार बारह से बीस लाख वाहन चल रहे होते हैं। इस भीषण धुएं से कितना प्रदूषण होता होगा यह सचमुच चिंतनीय है। दिल्ली पर ट्रैफिक का बोझ पिछले दस साल से बढ़ता ही जा रहा है, इस पर कंट्रोल के लिए ऑड-ईवन योजना के अच्छे प्रभाव देखे गए थे। कारगर उपाय तो दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना ही है। जब हम स्कूलों में थे और कॉलेजों में पहुंचे तो भी वृक्ष लगाओ अभियान चलते थे। इस अभियान को चलाये रखना होगा।
मैंने कई बार महसूस किया है कि दिल्ली से सोनीपत, दिल्ली से गुरुग्राम, दिल्ली से गाजियाबाद-मेरठ तक अब गगनचुंबी इमारतें नजर आती हैं। कभी वहां हरियाली के बसेरे थे। विकास भी जरूरी है लेकिन हरियाली को भी ज्यादा से ज्यादा जगह दी जानी चाहिए। दिल्ली में ही क्यों राष्ट्रीय स्तर पर भारत को हरा-भरा बनाने की कोशिशें की जानी चाहिए। बहरहाल पराली जलने से उठने वाले धुएं से निपटने के लिए उपाय जरूरी है। वहीं पराली का कोई विकल्प भी खोजा जाना चाहिए। अगर कृषि वैज्ञानिक इस दिशा में कुछ करते हैं तो यह एक स्वागत योग्य कदम होगा। हम लोगों को भी हफ्ते में दो या तीन दिन अपनी गाडि़यों का प्रयोग करने से बचते हुए अगर मैट्रो को विकल्प के तौर पर लिया जाये तो कोई बुराई नहीं है। आखिरकार प्रदूषण कम करने में यह भी एक अच्छा उपाय हो सकता है। इस मामले में सभी को मिल-जुलकर काम करना होगा।