पूजा खेडकर : हद हो गई पार
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी बनना युवाओं की चाहत तो है लेकिन एक आईएएस अधिकारी का जीवन बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। युवाओं के लिए अपने देश के प्रशासन और विकास में सीधे भाग लेने का यह एक अवसर है। प्रतिभाशाली युवा आईएएस बनकर लोगों के जीवन में साकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। परीक्षा पास कर लेना कठिन तो है लेकिन अफसर बनने के बाद सफर और भी कठिन होता है। एक आईएएस अधिकारी को बहुत सारी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं। लगातार सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करना पड़ता है। पेशेवर मोर्चे पर काम कई बार चुनौतीपूर्ण और तनावपूर्ण होता है। क्योंकि प्रशासनिक अधिकारी सीधे राज्य या केन्द्र सरकार के प्रति जवाबदेह होते हैं। लालबत्ती की चाहत किसे नहीं है लेकिन देश में ऐसे अफसर गिने-चुने ही हैं जिन्होंने देश में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला दिए। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषण, भारत के मैट्रोमैन माने गए ई. श्रीधरन का नाम उन अधिकारियों में लिया जाता है जिन्होंने राजनीतिक दबाव काे साहसपूर्वक दरकिनार करके और राजनीतिक हस्तक्षेपों को परे हटाते हुए अपना काम किया और अपनी प्रतिष्ठा कायम की। इसलिए आईएएस अधिकारियों का जीवन विलासितापूर्ण नहीं होता बल्कि देश को अपनी सेवाओं से बहुत कुछ देने के लिए होता है।
पिछले कुछ दिनों से प्रशिक्षु आईएएस पूजा खेडकर और उनका परिवार अखबारों की हैडलाइन्स बटोर रहा है। एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं। राजनीतिक क्षेत्रों में भी बहुत शोर है और जो सवाल उठ रहे हैं उसमें प्रशासनिक अधिकारियों की परीक्षा से लेकर नियुक्ति तक हुई नीतिगत लापरवाही और भ्रष्ट तंत्र की पोल खोल कर रख दी है। पूजा खेडकर ने फर्जीवाड़े की हदें पार की हैं। दबंग मां और भ्रष्टाचार पर िघरे पिता की कहानियां भी सामने आ रही हैं। आईएएस में चार बार परीक्षा में टॉप कर चुके विकलांग युवक को अभी तक नियुक्ति नहीं मिली है लेकिन फर्जीवाड़े से पूजा नियुक्ति भी पा लेती है, यह सब हैरान कर देने वाला है। नीट नेट और अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं पहले से ही सवालों के घेरे में हैं। ऐसे में परीक्षाओं का पूरा तंत्र ही संदेह के घेरे में आ गया है।
ऐसा दावा किया जाता है कि यूपीएससी अपने संवैधानिक जनादेश का कड़ाई से पालन करता है और सभी परीक्षाओं सहित अपनी सभी प्रक्रियाओं को बिना किसी समझौते के उच्चतम परिश्रम के साथ संचालित करता है लेकिन पूजा खेडकर के आईएएस बनने से यूपीएससी पर विश्वास अब खत्म हो चुका है। पूजा खेडकर की मां को हाथ में बंदूक लेकर किसानों को धमकाने का वीडियो सामने आने के बाद गिरफ्तार किया जा चुका है। भ्रष्टाचार के आरोपों में दो बार निलम्बित किए जा चुके रिटायर्ड उसके पिता फरार हैं। पूजा खेडकर के नाम, उम्र और दिव्यांगता सर्टिफिकेट के फर्जी होने के सबूत भी मिल चुके हैं। अब तक की जांच से पता चलता है कि पूजा ने परीक्षा में चयन के िलए नियमों के तहत मान्य अधिकतम सीमा से भी अधिक बार परीक्षा दी।
दरअसल यूपीएससी के एग्जाम में बैठने के लिए अलग-अलग कैटेगरी के तहत उम्मीदवारों को अलग-अलग मौके मिलते हैं। मसलन जनरल कैटेगरी का कोई भी उम्मीदवार 32 साल की उम्र से पहले तक कुल छह बार यूपीएससी का एग्जाम दे सकता है। ओबीसी कैटेगरी के तहत 35 साल की उम्र तक कुल 9 बार इम्तेहान देने की छूट है। जबकि एससी और एसटी कोटा के तहत 37 साल की उम्र तक यूपीएससी के इम्तेहान में बैठा जा सकता है। पूजा खेडकर ने एग्जाम क्लीयर करने के लिए तय सीमा से ज्यादा बार इम्तेहान दिया है। इसके लिए हर बार उसने नए नाम और नई पहचान का सहारा लिया। यहां तक कि इम्तेहान में बैठने के लिए अपने मां-बाप का नाम तक बदल डाला लेकिन ये धोखाधड़ी तो कुछ भी नहीं है। असली फर्जीवाड़ा तो कुछ और ही है। दरअसल पूजा ने साल 2022 में यूपीएससी का एग्जाम क्लीयर किया था। ऑल इंडिया रैंक था- 841, चूंकि वो इम्तेहान में ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर के कोटे से बैठी थी और साथ ही दिव्यांगता के कोटे से आई थी, लिहाजा 841 रैंक के बावजूद उन्हें आईएएस की कैटेगरी में रखा गया था।
ट्रेनिंग शुरू होते ही पूजा खेडकर ने जो जलवा दिखाया उसको लेकर ब्यूरोक्रेसी में तूफान तो खड़ा होना ही था। यूपीएससी की परीक्षा में बैठने वाले नॉन क्रीमी लेयर के छात्रों का पैमाना यह है कि उनकी आमदनी सलाना 8 लाख से कम होनी चाहिए। पूजा खेडकर और उसके परिवार की करोड़ों की सम्पत्ति सामने आने पर सवाल उठ रहे हैं कि गरीबी का यह कौन सा कोटा है, जो करोड़पतियों के हिस्से आता है। पूजा खेडकर के परिवार के पास आठ कम्पनियां हैं जो एग्रो से लेकर आटो तक का व्यापार करती हैं। हर साल की कमाई लाखों में है और पुणे और अहमदनगर में कुल 11 प्लॉट हैं। पूजा ने कोटा सिस्टम में दो-दो हथियारों का इस्तेमाल किया। एक ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर और दूसरा दिव्यांगता। लिखित परीक्षा और इंटरव्यू में मिलाकर पूजा को जितने नम्बर मिले अगर जनरल कैटेगरी के किसी स्टूडैंट के आते तो सवाल ही नहीं उठता कि वह आईएएस बन पाता।
जब कैट में भी पूजा की दिव्यांगता को लेकर प्राइवेट अस्पताल के मेडिकल सर्टिफिकेट को मानने से इंकार कर दिया था तो फिर भी डीओपीटी ने उसे पुणे में ट्रेनी अफसर के तौर पर सहायक क्लैक्टर बनाकर भेजने का फरमान कैसे जारी कर दिया। आखिर पूजा को पोस्टिंग कैसे दे दी गई? अब पूजा खेडकर का परिणाम रद्द तो होगा ही और आईएएस का तमगा भी हट जाएगा लेकिन सिस्टम को लेकर सवाल बने रहेंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com