Prajwal in the clutches: शिकंजे में प्रज्वल
Prajwal in the clutches: कर्नाटक के हाई प्रोफाइल सैक्स स्कैंडल में अंतत: जद(एस) सांसद प्रज्वल रेवन्ना को जर्मनी से लौटते ही बैंगुलरु हवाई अड्डे पर विशेष जांच दल ने गिरफ्तार कर लिया। प्रज्वल की गिरफ्तारी के लिए महिला आईपीएस अधिकारियों के नेतृत्व में महिला पुलिस कर्मियों ने प्रज्वल को आते ही घेर लिया जिससे एक सकारात्मक संदेश गया कि महिलाएं इतनी सशक्त हैं कि वह किसी भी आरोपी को पकड़ सकती हैं। खासतौर पर जब मामला महिलाओं के यौन उत्पीड़न का हो। वर्तमान राजनीति में जब नैतिकता और मर्यादाएं कहीं नजर नहीं आ रही हों तो ऐसे मामले सामने आने पर कोई आश्चर्य नहीं होता। जेहन में यही सवाल उठता है कि वह इंसान है या भेड़िया अथवा कोई हवसी जानवर है। हालांकि कानून की भाषा में प्रज्वल पर अभी यह आरोप है लेकिन क्या वीडियो सम्पादित हो सकते हैं। प्रज्वल के वीडियो की पैन ड्राइव कर्नाटक में आसानी से उपलब्ध है। राजनीति में प्रतिष्ठित परिवार के बंगले के भीतर दुराचार और जघन्य अपराध की घटना ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के सम्मान पर कालिख पोत दी है। उनके पौत्र प्रज्वल पर ही नहीं बल्कि उसके पिता और विधायक एच.डी. रेवन्ना पर भी आरोप लगे। अगर उस पर आराेप लगे थे तो उसे भारत में रहकर कानूनी लड़ाई लड़नी चाहिए थी लेिकन प्रज्वल के जर्मन भाग जाने से शक और पुख्ता हो गया।
जब प्रज्वल के वीडियो सामने आ गए तो यौन उत्पीड़न का शिकार कुछ महिलाएं भी साहस बटोर कर सामने आई और उन्होंने पुिलस में शिकायत दर्ज कराई। बाप-बेटे की दबंगई के सामने यौन उत्पीड़न का शिकार अनेक मिहलाएं अब भी खामोश हैं। समाज और परिवारों के डर से वे खामोश ही रहेंगी। विडम्बना तो यह है कि बड़े नेता महिला सशक्तिकरण का ढिंढोरा तो पीटते हैं लेकिन वे व्यावहािरक जीवन में दुराचार की प्राकाष्ठा देख कर भी आंखों पर पट्टी बांध लेते हैं। कई नेता इस शर्मनाक कांड की व्याख्या अपनी सुविधा की राजनीति के अनुसार कर रहे हैं। सवाल तो उठ रहे हैं कि जब इस स्कैंडल की जानकारी एक वर्ष पहले ही मिल गई थी तो राज्य सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की। मिहलाओं की अस्मिता से जुड़े इस मामले की जानकारी होने पर भी सभी दलों के नेता खामोश क्यों रहे। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह भी है कि देवेगौड़ा परिवार की एक समुदाय विशेष पर काफी पकड़ है और वोट बैंक के चलते सब चुप रहे। आम लोग तो यही कहते हैं कि राजनीतिक दल एक-दूसरे के नेताओं को बचाने के लिए तब तक सुरक्षा कवच बने रहते हैं जब तक पानी हद से नहीं गुजर जाता।
अब जबकि प्रज्वल पुलिस के शिकंजे में है तो उम्मीद की जानी चािहए कि जांच निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से आगे बढ़ेगी। यौन उत्पीड़न के मामलों में दोष सिद्धि और सजा की दर बहुत कम होती है। खासतौर पर उन मामलों में जिन में प्रभावशाली लोग शामिल हैं। सबूतों को तोड़ने-मरोड़ने और कानूनी बारीकियों की मनचाही व्याख्याएं करने आैर कानूनी दांव-पेंचों से मामले को लटकाने की हर कोशिश अब भी की जाएगी। केन्द्र सरकार ने तीन महत्वपूर्ण कानूनों में संशोधन कर एक नई न्याय प्रणाली बनाई है। उसी के तहत अपराध के मुताबिक दंडात्मक कार्रवाई भी की जानी चाहिए। मामले की निष्पक्ष और गंभीरता से जांच हो तो अदालत को सही नतीजे पर पहुंचाने में मदद मिल सकती है। प्रज्वल ने इस बार भी लोकसभा का चुनाव लड़ा है। मतदान से ही पता चलेगा कि वह चुनाव जीतता है या नहीं। निस्संदेह ऐसे दागी जनप्रतिनिधि का चुना जाना लोकतंत्र के दामन पर एक दाग सरीखा होगा। अब जिम्मेदारी एसआईटी की है कि वह इस मामले को लेकर कितनी गंभीरता दिखाती है।
देवेगौड़ा परिवार प्रज्वल के बचाव में देश के नामी-गिरामी वकीलों की फौज अदालत में खड़ी कर सकता है। हो सकता है कि मामला अदालतों तक पहुंचते-पहुंचते कुछ खुलासे भी हो। ऐसे मामलों में देखा जाता है कि महिलाएं लंबी कानूनी प्रक्रिया के चलते अपना बयान बदल लें लेकिन इसका अर्थ यह नहीं मान लिया जाना चाहिए कि उनके साथ अत्याचार हुआ ही नहीं। यह अपने आप में एक वीभत्व प्रकरण है। यौन उत्पीड़न की शिकार घर की नौकरानी से लेकर दफ्तर में काम करने वाली पार्टी की महिला कार्यकर्ताएं और नेता जी की सिफारिश पर नौकरी पाने वाली लड़कियां भी शामिल हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि पीडि़त महिलाओं को इंसाफ कब और कैसे मिलेगा। इस मामले पर लीपा-पोती और टालमटोल कर रवैया अपनाने से जन आक्रोश फैल सकता है। संस्कृित और धर्म शास्त्रों की दुहाई देने वाले लोग क्या अब भी खामोश बैठे रहेेंगे या महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए जांच पर पैनी नजर रखकर न्यायालय तक लड़ाई लड़ने को तैयार होंगे। समाज को भी यह सबक लेना चाहिए कि यौन शोषण करने वाले लोगों को जनसेवक के तौर पर निर्वाचित करना कितना घातक सिद्ध हो सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com