विफल होता चीता प्रोजैक्ट
भारत में चीता प्रोजैक्ट को लगातार झटके लग रहे हैं। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता गामिनी के पांच शावकों में से एक शावक की मौत हो गई। जांच के बाद पाया गया कि चीता शावक की रीढ़ की हड्डी में फैक्चर था। 10 मार्च को गामिनी ने पांच शावकों को जन्म दिया था तब केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने काफी खुशी जाहिर की थी। शावकों के जन्म के बाद 4 जून को भीषण गर्मी की वजह से एक शावक की मौत हो गई थी। अब दूसरे शावक की मौत के साथ ही कूनो नेशनल पार्क में अभी तक कुल 12 चीतों की मौत हो चुकी है, जिसमें 7 चीते और 5 शावक शामिल हैं। मादा चीता गामिनी को दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था। कूनो नेशनल पार्क को प्रोजैक्ट चीता के लिए चुना गया था और यहां विदेश से चीते लाकर छोड़े गए थे। शावकों की लगातार मौत के बाद यह सवाल फिर से उठने लगा है कि क्या भारत का चीता प्रोजैक्ट असफलता की ओर बढ़ रहा है या फिर यह जमीनी हकीकत से दूर है। देखा जाए तो प्रोजैक्ट चीता के मिलेजुले परिणाम ही सामने आए हैं। भारत में चीता वापसी की परियोजना सितम्बर 2022 में शुरू की गई थी। 1952 में देश को चीता विलुप्त घोिषत कर िदया गया था। चीतों को विशेष विमान से नामीबिया से भारत लाया गया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन के मौके पर 17 सितम्बर, 2022 को कूनो नेशनल पार्क में पहली बार चीतों को छोड़ा था लेकिन प्रोजैक्ट चीता को शायद किसी की नजर लग गई। वर्ष 2023 में जुलाई तक 4 महीनों के भीतर 8 चीते चल बसे और लगातार हो रही चीतों की मौत चिंता का विषय बन गई है। प्रोजैक्ट के दूसरे चरण 2023 में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया लेकिन संक्रमण के कारण एक के बाद एक चीतों की मौत होती गई। हालांकि पार्क में 13 व्यस्क चीते आैर 12 शावक स्वस्थ और सामान्य हैं लेिकन चिंताएं अभी बनी हुई हैं। ऐसे में पर्यावरणविद प्रोजैक्ट चीता पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ लोग इसे लापरवाही बता रहे हैं तो अनेक लोग इसे कूनो नेशनल पार्क इनके िलए उपयुक्त स्थान ही नहीं माने रहे।
कूनो नेशनल पार्क चीतों के लिए उपयुक्त जगह है या नहीं? इस पर बात करते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि कूनो के अलावा राजस्थान का मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान भी चीतों के लिए वैकल्पिक आवास हो सकता है लेकिन जल्दबाजी में ऐसे निर्णय नहीं लिए जा सकते। लगातार हो रही मौतों के बारे में विशेषज्ञों का भी कहना यह है कि दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने 12 चीतों को भारत को देने के लिए 7 महीने का समय लगा लिया। इस दौरान चीतों को वहां भी कैद में रखा गया था, जब इन्हें भारत लाया गया तो दोबारा दो महीने के लिए कैद में रखा गया। इस तरह कुल 9 महीने उन्हें कैद में रहना पड़ा। इस कारण उनका स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ा।
चीतों की मौत का कारण बीमारी, संक्रमण, किडनी संक्रमण आदि रहे। सबसे बड़ा कारण गर्मी को भी माना गया जिससे चीतों की देखभाल में मुख्य चुनौती आई। भारत में गर्मी आैर मानसून के मौसम में चीतों ने अपने शरीर पर मोटी फर विकसित कर ली थी। अधिक उमस और तेज तापमान में चीते परेशान होकर पेड़ों के तनों या जमीन पर अपनी गर्दन रगड़ते थे, जिनसे उनकी खाल फट जाती थी और उन्हें विषाणु संक्रमण हो जाता था। कुछ चीतों की मौत आपस में हिंसक हो जाने के कारण हुई। दरअसल चीते भारत की जलवायु के अनुरूप खुद को ढाल ही नहीं पाए। चीतों की गर्दन में लगाए गए रेिडयो कॉलर भी संक्रमण का कारण बने। चीतों को दवा देने के लिए भगाने, पकड़ने और बाड़ों में वापस लाने से तनाव और मौत का जोखिम भी कम नहीं है।
चीतों को धरती पर सबसे तेज रफ्तार जानवर माना जाता है। महज 3 सैकेंड के अंदर ये जीरो से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकते हैं। चीते विशाल इलाके में रहना पसंद करते हैं। एक चीते की औसत रेंज लगभग 100 किलोमीटर होती है। उन्हें बाड़े से छोड़ने पर वे दूर तक निकल जाते हैं। यही वजह है कि मार्च में जब नामीबिया से लाए गए दो चीते आशा और पवन को जंगल में छोड़ा गया था तब वो नेशनल पार्क से बाहर चले गए थे। बाद में आशा को कूनो के विजयपुर रेंज से पकड़ा गया। पवन यूपी बॉर्डर पर शिवपुरी और झांसी के बीच मिला था। एक ये बात भी निकलकर आई कि भारत में अभी कोई चीता एक्सपर्ट नहीं है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि अभी जो अधिकारी चीतों की देखभाल कर रहे हैं वे दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से ट्रेनिंग लेकर आए हैं। बहरहाल इतना तो तय है कि सरकार को भी अंदाजा है कि कूनो इन चीतों के लिए पर्याप्त नहीं हैै लेकिन ये सवाल भी है कि भारत में चीता प्रोजैक्ट कितना सफल रहा, इसका जवाब ढूंढने में अभी थोड़ा इंतजार करना होगा। पर्यावरण मंत्रालय को चीतों की जान बचाने के िलए उनके अनुकूल जगह ढूंढकर व्यवस्था करनी होगी और भारत के मौसम के अनुकूल उन्हें ढालने के लिए बेहतर कदम उठाने होंगे, अन्यथा चीता फिर भारत में विलुप्त हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com