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धन्यवाद ज्ञापन से उठे सवाल

05:05 AM Jul 04, 2024 IST
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18वीं लोकसभा का पहला संक्षिप्त सत्र समाप्त हो गया जिसमें राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापित किया गया। धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान सदन में राष्ट्रीय समस्याओं को उठाया गया और सत्ता पक्ष से उनका हल मांगा गया। सत्ता पक्ष ने अपने तरीके से इन समस्याओं का जिक्र करते हुए उनके हल की बात की। लोकतन्त्र की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि यह जवाबदेही से चलता है। संसद में विपक्ष का धर्म होता है कि वह जनसमस्याओं की ओर सरकार का ध्यान खींचे और उनके हल की मांग करे। सत्ता पक्ष का धर्म होता है कि वह विपक्ष के सवालों का सन्तोषजनक उत्तर दे और जन समस्याओं के हल का रास्ता रखे। यदि इस मामले में गतिरोध पैदा होता है तो लोकतन्त्र कराहने लगता है। लोकतन्त्र को चलाने में लोकसभा व राज्यसभा के अध्यक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे सदन में न्यायाधीश की भूमिका में होते हैं और हर गतिरोध को तोड़ने का प्रयास करते हैं। लोकसभा व राज्यसभा में संक्षिप्त सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जो बहस हुई उसका एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चुनाव से बाहर आये भारत में अभी वे मुद्दे गरमाये हुए हैं जिन्हें आधार बना कर चुनाव लड़े गये थे। इनमें साम्प्रदायिक सौहार्द का मुद्दा प्रमुख है।

सवाल मुस्लिम तुष्टीकरण या हिन्दू बहुसंख्यकवाद का नहीं है बल्कि भारतीयकरण का है। हमें यह सोचना होगा कि नागरिकों को हिन्दू-मुसलमान में बांट कर हम भारत की कितनी सेवा कर सकते हैं। भारत राज्य का कोई धर्म नहीं है यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जिसमें सभी धर्मों के मानने वाले लोग इसके सम्मानित नागरिक हैं। हर हिन्दू-मुसलमान को देशभक्त समझा जाता है। क्योंकि देश के विकास व प्रगति में सभी की बराबर की भागीदारी है। इस सन्दर्भ में मैं 27 फरवरी 1949 को हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में भारत के प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का वह भाषण उद्धरित कर रहा हूं जो दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए दिया था। उस समय भारत की जनसंख्या केवल 34 करोड़ के लगभग थी। सरदार पटेल ने कहा था ‘‘यदि चार करोड़ मुसलमान हिन्दोस्तान में शेष 30 करोड़ लोगों के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर खड़े हो जायें तो वे न केवल हिन्दोस्तान का बल्कि पाकिस्तान का भविष्य भी बदल सकते हैं। अब बीती बातों पर पर्दा डाल देना चाहिए और देश के प्रत्येक व्यक्ति को हिन्दोस्तान को महान बनाने में मदद देनी चाहिए। हम सब इसी जमीन पर पैदा हुए हैं, इसी पर पले और यहीं जिन्दा रहना और मरना है। कई सदियों की गुलामी के बाद हमारा देश आजाद हुआ है और अब हमारे सामने काम का एक विशाल क्षेत्र खुल गया है। हिन्दोस्तान की सेवा में हर नागरिक एक सिपाही है। मैं स्वयं को भी एेसा ही मानता हूं। छात्रों को जीवनभर सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना चाहिए। सच्चाई का रास्ता हमेशा रचनात्मक होता है’’। तब से लेकर अब तक 76 वर्ष बीत चुके हैं और हम अभी भी हिन्दू-मुसलमान में ही उलझे हुए हैं। राष्ट्र के विकास में मुसलमानों के योगदान को हम भारत की ग्रामीण अर्थ व्यवस्था और सामाजिक संरचना में देख सकते हैं। अतः हिन्दू-मुसलमान का सवाल अब तक बेमानी हो जाना चाहिए था। इसके अलावा देश के युवाओं के भविष्य को लेकर जिस तरह की असमंजस की स्थिति बनी हुई है वह भी युवा भारत के लिए उचित नहीं कही जा सकती। हमारी 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु के लोगों की है। इसी युवा शक्ति के ज्ञान के भरोसे हम आज विश्व में कम्प्यूटर साफ्टवेयर उद्योग के सिरमौर बने हुए हैं।

भारत के युवा दिमागों की पूरी दुनिया में मांग है। अपनी युवा शक्ति की ताकत को हमें इस प्रकार आगे बढ़ाने की जरूरत है जिससे यह भारत की असली पहचान बन जाये मगर बेरोजगारी से आज यह वर्ग सबसे ज्यादा जूझ रहा है। संसद को इस समस्या का हल मिलजुल कर ढूंढ़ना होगा। हमने आजादी के बाद से हर क्षेत्र में तरक्की की है। कृषि से लेकर विज्ञान तक के क्षेत्र में हम आगे बढे़ हैं। संसद के भीतर इस तरक्की को और मजबूत करने के रास्ते ढंूढे जाने चाहिए और हिन्दू-मुसलमान की राजनीति से बाहर आया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि हम जवाबदेही से काम करें और प्रत्येक विभाग व मन्त्रालय का लक्ष्य निर्धारित करके चलें। इस पर न विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी को आपत्ति हो सकती है और न किसी अन्य विपक्षी नेता को। मगर हम आपसी तंगदिली में बड़े लक्ष्यों को भूल रहे हैं। राजनीति में उम्र का कोई महत्व नहीं होता बल्कि दिमाग का महत्व होता है। दुनिया में एेसे भी देश हैं जहां तीस वर्ष के युवकों ने क्रान्ति की है और एेसे भी देश हुए हैं जहां बूढे़ समझे जाने वाले लोगों ने युवाशक्ति का मार्ग दर्शन किया है। हमें कर्त्तव्य पथ पर डटे रह कर भारत के विकास के रास्ते खोजने होंगे और यह कार्य विपक्ष व सत्ता पक्ष को मिल कर ही करना होगा क्योंकि लोकतन्त्र में इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं होता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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