राम मंदिरः राष्ट्र का उत्सव-5
हालांकि इनमें से कोई भी परिपूर्ण तो क्या आधा पूर्ण नायक तक नहीं है जबकि राम निष्कलुष, बेदाग महानायक हैं। राम के समूचे व्यक्तित्व में कहीं पर भी कोई ऐसा चिह्न नहीं है जिसे मनमाने ढंग से व्याख्यायित किया जा सके। राम भारत के पहले ऐसे महानायक हैं जिन्होंने पूरे देश को, देश के समूचे समाज को एक सूत्र में बांधा। जिन्होंने अधर्म पर विजय हासिल करके धर्म की आदर्श के रूप में स्थापना की। राम ने देश के सबसे निचले, पिछड़े समाज को गले लगाया। उसे अपने बराबर बिठाया। उसके साथ बराबरी का व्यवहार किया। यह तो करुणानिधि जैसे अति प्रगतिशील व्यक्ति के भी बस में नहीं है। वह ब्राह्मणों से नफरत करते हैं, उन पर व्यंग्य करते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं। जबकि राम ने निषाद, कोल, भील और वानरों तक को गले से लगाया। सिर्फ गले से ही नहीं लगाया बल्कि कहा-तुम सब मुझे मेरे भाई भरत की तरह प्रिय हो। ऐसे आदर्श और समतामलक राम को नायकों का नायक न कहा जाए तो क्या कहा जाए?
केवट ने श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी को अपनी नाव से गंगा पार उतारा। सीता जी अपनी अंगूठी उतारकर केवट को देने के लिए श्रीराम को देती हैं परंतु श्रीराम के समझाने पर भी केवट उनसे उतराई नहीं लेता। वह उनसे कहता है-प्रभु! आज तो आप नंगे पांव चले हैं। आज मैं कुछ नहीं लूंगा। जब आप वन से लौटकर आएंगे और राजगद्दी पर बैठेंगे, तब आप मुझे जो देंगे, ले लूंगा।
श्रीराम उस अनपढ़, गरीब और गंगा के जल की भांति पवित्र हृदय वाले केवट के भावों को समझते हैं और आंखों में अश्रु भर लाते हैं। तब वे उसे निर्मल-भक्ति का वरदान देते हैं-
'बहुत कीन्ह प्रभु लखन सिमं नहि कछु केवटु लेइ।
बिदा कीन्ह कसनायतन भगति विमल बरू देई ।।'
ऐसा दलित प्रेम श्री राम के अतिरिक्त और कहां मिलेगा? वे अपने शत्रु की विवशता का भी लाभ नहीं उठाते और न निर्धन प्रेमी को अपनी भक्ति से दूर रखते हैं। ऐसा भाव यदि आप भी अपने जीवन में अपनाएं तो आप प्रभु राम की सच्ची भक्ति के अधिकारी हो सकते हैं।'
14 वर्ष के वनवास में से अंतिम 2 वर्ष को छोड़कर राम ने 12 वर्षों तक भारत के आदिवासियों और दलितों को 'भारत की मुख्य धारा से जोड़ कर उन्हें श्रेष्ठ बनाया। यदि आप निषाद, वानर, मतंग और रीछ समाज की बात करेंगे तो ये उस काल के दलित या आदिवासी समाज के लोग ही हुआ करते थे। ऐसे कई उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं जिससे पता चलेगा कि राम ने आदिवासियों और दलितों के लिए क्या-क्या किया। आज उसमें से कई ऐसे समाज हैं जो श्रेष्ठता के क्रम में ऊपर जाकर क्षत्रिय या ब्राह्मण हो गए हैं।
चित्रकूट में रहकर उन्होंने धर्म और कर्म की शिक्षा दीक्षा ली। यहीं पर वाल्मीकि आश्रम और मांडव्य आश्रम था। यहीं पर से राम के भाई भरत उनकी चरण पादुका ले गए थे। चित्रकूट के पास ही सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था। वाल्मीकि एक डाकू थे और भील जाति के लोगों के बीच पले-बड़े हुए थे। उन्होंने ही रामायण लिखी थी। अत्रि को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के बाद प्रभु श्रीराम दंडकारण्य क्षेत्र में चले गए, जहां आदिवासियों की बहुलता थी। यहां के आदिवासियों को बाणासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के बाद प्रभु श्रीराम 10 वर्षों तक आदिवासियों के बीच ही रहे। यहीं पर उनकी जटायु से मुलाकात हुई थी जो उनका मित्र था। जब रावण सीता को हरण करके ले गया था तब सीता की खोज में राम का पहला सामना शबरी से हुआ था। इसके बाद वानर जाति के हनुमान और सुग्रीव से प्रभु श्रीराम की मुलाकात हुई थी।
इसी दंडकारण्य क्षेत्र में रहकर राम ने अखंड भारत के सभी दलितों को अपना बनाया और उनको श्रेष्ठ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा दी। वर्तमान में आदिवासियों, वनवासियों और दलितों के बीच जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा, रीति और रिवाज हैं वे सभी प्रभु श्रीराम की देन हैं। उन्होंने वन में रहकर संपूर्ण वनवासी समाज को एक-दूसरे से जोड़ा और उनको सभ्य एवं धार्मिक तरीके से रहना सिखाया। बदले में प्रभु श्रीराम को जो प्यार मिला वह सर्वविदित है। भारतीय राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, अंाध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम इसीलिए जिंदा हैं। श्रीराम ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर संपूर्ण अखंड भारत के दलित और आदिवासियों को एकजुट कर दिया था। इस संपूर्ण क्षेत्र के आदिवासियों में राम और हनुमान को सबसे ज्यादा पूजनीय इसीलिए माना जाता है लेकिन अंग्रेज काल में ईसाइयों ने भारत के इसी हिस्से में धर्मांतरण का कुचक्र चलाया और राम को दलितों से काटने के लिए सभी तरह की साजिश की जो आज भी जारी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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