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मीर वाइज उमर की रिहाई

01:32 AM Sep 24, 2023 IST
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केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर हुर्रियत कान्फ्रेंस के चेयरमैन मीर वाइज मौलवी उमर फारुक को नजरबन्दी से रिहा करके सूबे में अमन-ओ-अमान कायम करने की दिशा में कदम उठाया है। मीर वाइज कश्मीर के उदारवादी नेता माने जाते हैं और अहिंसा व शान्ति के रास्ते से कश्मीर की समस्याओं को निपटाने की वकालत करते रहे हैं। 1990 के लगभग उन्हीं के पिता मीर वाइज की उग्रवादियों ने हत्या करके घाटी से अमन और भाईचारे की आवाज को बन्द करने की नापाक कोशिश की थी। उसके बाद ही उमर फारुख को मीर वाइज की पदवी से नवाजा गया था। मौलवी फारुक को 5 अगस्त, 2019 काे कश्मीर से 370 समाप्त करने से पहले ही नजरबन्दी में ले लिया गया था और तभी से वह घर में कैद थे। अब 370 को हटे हुए भी चार साल हो गये हैं अतः सरकार का प्रयास है कि हालात पूरी तरह सामान्य होने चाहिए और घाटी समेत पूरे सूबे का सामाजिक वातावरण साजगार होना चाहिए। मौलवी फारुख ने रिहा होते ही अपील की है कि कश्मीरी पंडित वापस अपने घर लौट आयें। उन्हाेंने पंडितों की समस्या को मानवीय समस्या बताते हुए कहा कि सूबे में सदियों से भाईचारे के साथ अमन पसन्दी में सभी हिन्दू-मुसलमान रहते आये हैं। कश्मीरी पंडितों का घर कश्मीर है अतः उनकी वापसी होनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा दौर बैर-भाव या युद्ध का दौर नहीं है।
यूक्रेन और रूस युद्ध के बारे में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त किये गये उद्गार कि ‘वर्तमान समय युद्ध का समय नहीं हैं’, से इत्तेफाक रखते हुए मीर वाइज ने ये विचार प्रकट किये। मीर वाइज के तेवर बताते हैं कि वह जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति में यह परिवर्तन चाहते हैं कि इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये। यह मांग सूबे के विभिन्न क्षेत्रीय दल भी कर रहे हैं। इससे यह भी सन्देश जा रहा है कि इन नेताओं ने 370 के हटने को हकीकत मान लिया है। हालांकि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है। मगर सर्वोच्च न्यायालय केवल 370 हटाये जाने के संवैधानिक पहलू की ही जांच कर रहा है। मीर वाइज का यह कहना महत्वपूर्ण है कि घाटी के पंडितों की समस्या राजनैतिक नहीं है। इससे पता चलता है कि मीर वाइज का यकीन कश्मीर की उस संस्कृति में है जो मजहब की बुनियाद पर आदमी- आदमी में भेद नहीं करती है। मीर वाइज बेशक धार्मिक नेता हैं मगर उनका नजरिया मानवीयता को बराबर की जगह देता है। उनके बाहर आने से कश्मीर वादी के वातावरण में और सुधार की संभावना इसलिए है क्योंकि कश्मीर में मीर वाइज के औहदे का सम्मान सभी वर्गों के लोग करते आये हैं। मीर वाइज ने यह भी कहा कि कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान में है और एक भाग चीन के कब्जे में भी है अतः इसका समाधान इसी नजरिये से निकालने की कोशिश की जानी चाहिए। मीर वाइज को एक जमाने में राष्ट्रवादी नजरिये का भी माना जाता था क्योंकि उन्होंने कभी पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया लेकिन राजनैतिक क्षेत्रों में समझा जा रहा है कि मीर वाइज की रिहाई से जम्मू-कश्मीर में चुनावों का मार्ग प्रशस्त होने में मदद मिलेगी हालांकि इससे पहले इस राज्य का दर्जा केन्द्र शासित क्षेत्र से पूर्ण राज्य का किया जाना जरूरी होगा। इसलिए मीर वाइज का यह कहना महत्वपूर्ण है कि कश्मीर मामले को मुलामियत से हल किया जाना चाहिए न कि सख्ती से। अभी भी बहुत लोग जेलों में हैं जिनकी रिहाई की जानी है। मीर वाइज ने पिछले महीने अपनी नजरबन्दी के चार साल पूरे हो जाने के बाद सरकार को कानूनी नोटिस भेजा था जिसमें कहा गया था कि यदि उनकी नजरबन्दी खत्म नहीं की जाती है तो वह न्यायालय में इसे चुनौती देंगे। इस पर गत 15 सितम्बर को न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर से उनकी ​​स्थिति के बारे में रिपोर्ट मांगी। जिसके बाद उनकी नजरबन्दी समाप्त कर दी गई।
राज्य के राजनैतिक दलों की भी राय थी कि मीर वाइज की नजरबन्दी बहुत लम्बी खिंच गई। उन्हें इतने लम्बे अरसे तक घर में बन्द रखने की कोई जरूरत नहीं थी। मगर केन्द्र सरकार ने राज्य के हालात ठीक करने और सुरक्षा कारणों से उन्हें नजरबन्द रखना उचित समझा था लेकिन इस सबके बावजूद जम्मू-कश्मीर के सभी प्रमुख नेता अब रिहा हो चुके हैं जिससे यह उम्मीद बंधती नजर आ रही है कि सूबे में उच्च राजनैतिक प्रक्रिया भी जल्द ही शुरू होगी। राज्य में चुनाव परिसीमन का काम भी पूरा हो चुका है जिसने विधानसभा में अनुसूचित जातियों व जन जातियों की सीटें भी चिन्हित कर ली हैं और कुछ सीटें बढ़ा भी दी हैं। इन सभी चीजों को देखते हुए एेसा माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर के बारे में कोई बड़ा निर्णय जल्दी ही लेगी।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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