दामोदर घाटी के जलाशय
06:30 AM Sep 24, 2024 IST
देश की प्रख्यात दामोदर घाटी निगम के झारखंड के जलाशयों से पानी छोड़े जाने पर जिस तरह प. बंगाल के दक्षिण इलाकों में बाढ़ आयी है उसे प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने मानव निर्मित त्रासदी की संज्ञा देते हुए केन्द्र से कड़ा विरोध प्रकट किया है। इस सन्दर्भ में ममता दीदी ने प्रधानमन्त्री को दो बार पत्र लिख कर अपना कड़ा ऐतराज जताया है और कहा है कि जलाशयों से बिना पूर्व चेतावनी दिये ही जिस प्रकार जल छोड़ा गया उससे उनके राज्य के एक हिस्से में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गये। ममता दीदी ने इसके साथ ही यह भी निर्णय किया कि उन्होंने दमामोदर घाटी निगम से अपने राज्य के दो शीर्ष अधिकारियों से इस्तीफे दिलवा दिये। दामोदर घाटी परियोजना भारत के आजाद होते ही 76 साल पहले शुरू की गई थी और यह शुरू से ही बहुआयामी थी। विगत शनिवार को मुख्यमन्त्री ने प्रधानमन्त्री को पत्र लिखा और इसके कुछ घंटे बाद ही प. बंगाल के बिजली सचिव श्री शान्तनु बसु व मुख्य अभियन्ता श्री उत्तम राय ने घाटी निगम के निदेशक मंडल व दामोदर घाटी जलाशय नियामक समिति से इस्तीफा दे दिया। ममता दीदी ने प्रधानमन्त्री को लिखे अपने पत्र में लिखा है कि केन्द्रीय जल शक्ति राज्यमन्त्री सी.आर. पाटिल के दावे से सहमत नहीं हैं कि जलाशयों से पानी तब छोड़ा गया जब दमादोर घाटी जलाशय नियामक समीति में इस पर सर्वसम्मति बन गई थी। दरअसल मुख्यमन्त्री ने प्रधानमन्त्री को इस बाबत दो पत्र लिखे थे।
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पहला पत्र शुक्रवार को लिखा गया था जिसके जवाब में जल शक्ति राज्यमन्त्री पाटील ने ममता दीदी को पत्र लिखा था और कहा था कि जलाशयों से जल को तभी छोड़ा गया जबकि नियामक समीति की बैठक में इस पर सभी सदस्य सहमत हो गये थे। ममता दीदी ने शुक्रवार को लिखे अपने पत्र में कहा था कि दामोदर घाटी के जलाशयों से पानी छोड़ने का निर्णय मनमाने ढंग से इकतरफा तरीके से किया गया जिसकी वजह से उनके राज्य के दक्षिण इलाके के कई जिलों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गये। सवाल यह पैदा होता है कि जलाशयों से पानी छोड़ने से पहले घाटी के पदाधिकारी राज्य सरकार को समय रहते चेतावनी देते हैं। अगर इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो इसका क्या कारण था? दामोदर घाटी निगम परियोजना को भारत की सभी जल सिंचाई व बिजली उत्पादन परियोजनाओं का सिरमौर माना जाता है। आजाद भारत की यह पहली महायोजना थी। इस परियोजना में उस समय असीम संभावनाएं देखी गई थीं और पूर्वी भारत के विकास में इस परियोजना का महत्वपूर्ण योगदान भी रहा है। अतः ऐसी परियोजना के मुद्दे पर राज्य सरकार व केन्द्र सरकार के बीच तनाव की स्थिति होना बहुत ही दुखद माना जायेगा। प. बंगाल ऐसा राज्य है जहां सामान्यतः पानी की कमी नहीं रहती है। बंगाल की खाड़ी के निकट होने की वजह से इसमें समुद्री तूफानों का जोखिम भी बना रहता है। बीते वर्षों में कई ऐसे मौके आये जब प. बंगाल व ओडिशा जैसे राज्यों में समुद्री तूफान व चक्रवात आदि भी आये।
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ये प्राकृतिक आपदाय़ें होती हैं जिनका मुकाबला राज्य सरकार व केन्द्र सरकार मिल कर सामूहिक रूप से करती हैं परन्तु जलाशयों से जल छोड़े जाने का ऐसा मसला है जिसका नियन्त्रण मनुष्य के हाथ में ही रहता है। यदि इसमें गफलत होती है तो खामियाजा निरीह जनता को भुगतना पड़ता है। मगर ऐसा लगता है कि दामोदर घाटी के जलाशयों से जल छोड़े जाने के मामले में राज्य सरकार व केन्द्र सरकार के बीच संवाद में कहीं कोई कमी जरूर रही है। क्योंकि श्री पाटील ने अपने जवाब में लिखा कि दो जलाशयों मैथान व पंचेट से जल छोड़े जाने से पहले राज्य सरकार को पूरी तरह अवगत करा दिया गया था और उसके नुमाइन्दों को पूर्ण विश्वास में लेकर ही इस काम को अंजाम दिया गया। जलाशय नियामक समिति में झारखंड व प. बंगाल के मुख्य अभियन्ता सदस्य होते हैं। इनकी जानकारी में ही जल छोड़ने का फैसला किया गया। समिति में जो भी फैसला होता है वह सर्वसम्मति से ही होता है। मगर ममता दीदी ने इस पत्र के जवाब में प्रधानमन्त्री को लिखा कि मैं जल शक्ति राज्यमन्त्री पाटील के कथन से सहमति नहीं रखती हूं क्योंकि समिति में सभी फैसले केन्द्रीय दल आयोग के सदस्य मनमर्जी से इकतरफा तरीके से करते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि जलाशयों से पानी छोड़ दिया जाता है और राज्य सरकार को सूचित तक नहीं किया जाता मगर पिछले दिनों जो लगातार नौ घंटे तक पानी छोड़ा गया उसके बारे में राज्य को सूचना केवल साढ़े तीन घंटे पहले दी गई।
इतना समय जल छोड़ने से होने वाले खतरों से निपटने के लिए किसी भी तरह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच हुई इस खतो-किताबत से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि दोनों के बीच में खासा तनाव है। यह तनाव पहले से ही चल रहे राजनैतिक तनाव को देखते हुए किसी भी रूप में आम लोगों के हित में नहीं है। अतः दोनों सरकारों को अपने मतभेद वार्तालाप की मार्फत सुलझाने चाहिए। लोकहित यही कहता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com