बिहार में सीट बंटवारे का पेंच
बिहार में विपक्षी गठबन्धन इंडिया के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को जो अन्तिम रूप दिया गया है उससे प्रायः सभी घटक दल सन्तुष्ट नजर आ रहे हैं परन्तु श्री राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के सुर थोड़े बगावती हो रहे हैं और वह राज्य की पूर्णिया लोकसभा सीट पर अपना एकाधिकार मान रहे हैं। उनका यह रुख गठबन्धन धर्म के विरुद्ध दिखाई पड़ता है। श्री पप्पू यादव को याद रखना चाहिए कि उन्होंने अपनी ‘जनाधिकार पार्टी’ का कांग्रेस में विलय कर दिया है अतः सीट बंटवारे के बारे में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करने का अधिकार अब केवल कांग्रेस पार्टी के पास है। इसके साथ ही उन्हें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि ये लोकसभा के राष्ट्रीय चुनाव हैं न कि विधानसभा के जिनमें स्थानीय जातिगत गुणा-गणित भी मायने रखता है। इसके साथ ही उन्हें अपने प्रदेश बिहार के राजनैतिक मिजाज का भी ध्यान रखना चाहिए। यह राजनैतिक मिजाज यह है कि बिहार ने हर संकट के समय पूरे देश को दिशा दिखाने का काम किया है।
आजादी के आन्दोलन से लेकर स्वतंत्रता के बाद भारत की राजनीति में बिहार के लोगों की राजनैतिक भूमिका अग्रणी ही नहीं रही बल्कि हर मौके पर उन्होंने साथी भारतवासियों को रोशनी दिखाने का काम किया है। यहां के लोग आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत गरीब हो सकते हैं मगर ज्ञान व बुद्धि में बहुत धनवान माने जाते हैं जिसका प्रमाण यह है कि जब से भारत की प्रशासनिक सेवाओं में हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को यथा योग्य स्थान मिला है तब से ही इस राज्य के सर्वाधिक युवा इन परीक्षाओं में अव्वल स्थान रखते आ रहे हैं। इतना ही नहीं राजनीति में भी यहां का सामान्य नागरिक बहुत चतुर व सुजान समझा जाता है। मौजूदा लोकसभा चुनाव असाधारण चुनाव समझे जा रहे हैं अतः पप्पू यादव को समझना होगा कि उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाओं का राष्ट्रीय आकांक्षाओं के समक्ष महत्व केवल शून्य ही हो सकता है क्योंकि राज्य में पिछले 2019 के चुनावों में समूचे विपक्ष में से केवल कांग्रेस को एक ही सीट किशनगंज की मिली थी जबकि राज्य की शेष सभी 39 सीटों पर भाजपा नीत एनडीए का कब्जा हुआ था। इसकी वजह एक ही थी कि पिछले चुनाव राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर हुए जिसके नायक प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी थे। इस बार के चुनावों में विपक्षी गठबन्धन ‘इंडिया’ भाजपा के मुकाबले जो चुनावी विमर्श खड़ा कर रहा है उसके मूल में देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था है । अतः पप्पू यादव को अपनी पार्टी कांग्रेस के आन्तरिक लोकतन्त्र की मर्यादाओं में रहते हुए ही व्यक्तिगत आकांक्षा को उजागर करना चाहिए और अपने लिए पूर्णिया के अलावा किसी दूसरी सीट को देखना चाहिए। वैसे चुनाव में उन्हें खड़ा करना है या न करना, इस बारे में अंतिम फैसला तो कांग्रेस पार्टी को ही करना है।
गौर से देखा जाये तो पप्पू यादव को अपनी पार्टी के हित में खुद ही चुनाव नहीं लड़ना चाहिए क्योंकि कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल पर भाजपा परिवारवाद का आरोप लगाती है। पप्पू की पत्नी श्रीमती रंजीता रंजन कांग्रेस की ही राज्यसभा की सदस्य हैं। अतः नैतिकता का तकाजा है कि वह अपनी उम्मीदवारी का सवाल अपनी पार्टी पर ही छोड़ दें। कांग्रेस पार्टी ने इस बार राज्यवार वहां की सशक्त क्षेत्रीय पार्टियों के साथ चुनावी गठबन्धन किया है।
बिहार में लालू की राष्ट्रीय जनता दल पार्टी काफी ताकतवर पार्टी मानी जाती है और इसके नेता तेजस्वी यादव को राष्ट्रीय राजनीति का उभरता हुआ सितारा भी समझा जाता है। पिछले 2020 के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी के बूते पर ही राष्ट्रीय जनता दल पार्टी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसके साथ तेजस्वी की एक और खूबी मानी जाती है कि वह इन लोकसभा चुनावों में बिहार के स्थानीय मुद्दों को ताक पर रखकर एेसे राष्ट्रीय मुद्दे उठा रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध भारत की समग्रता और इसकी सर्वांगीण व्यवस्था से है। राज्य की 40 सीटों में से 26 पर उनकी पार्टी चुनाव लड़ रही है और नौ सीटों पर कांग्रेस व पांच पर वामपंथी दलों के उम्मीदवार होंगे। राज्य में इस प्रकार भाजपा से सीधा मुकाबला होगा। भाजपा के खेमे में मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल(यू) है। इस सीधी लड़ाई में पप्पू यादव ‘दाल-भात में मूसलचन्द’ नजर आ रहे हैं जिसकी वजह से यदि वह पूर्णिया से जिद में आकर खड़े भी हो जाते हैं तो उनकी पराजय ही सुनिश्चित होगी। क्योंकि सवाल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का नहीं है बल्कि सामूहिक दलगत प्रतिष्ठा का है।
बिहार में भाजपा व इंडिया गठबन्धन के बीच जो लड़ाई होगी उसकी आवाज झारखंड से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक गूंजेगी क्योंकि इन क्षेत्रों में सांस्कृतिक व सामाजिक समानताएं हैं। हालांकि झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है मगर यह 2000 तक बिहार का ही हिस्सा था। इन लोकसभा चुनावों में बहुत अर्से बाद हमें एक के मुकाबले एक सशक्त प्रत्याशी की लड़ाई देखने को मिलने जा रही है जिसकी वजह से ये चुनाव बहुत दिलचस्प होंगे।