सुरक्षा परिषद में सुधार और भारत
संयुक्त राष्ट्र में मूलभूत सुधारों पर बहस की शुरूआत हुए तीन दशक हो चुके हैं। वैश्विक महत्व के इस निकाय में फैली अव्यवस्था पर कहा जा रहा है कि ‘सुरक्षा परिषद अब विश्व सुरक्षा की गारंटर नहीं रह गई है। यह केवल पांच देशों की राजनीतिक रणनीतियों के लिए युद्ध का मैदान बन गई है’ ‘दुनिया बदल गई है लेकिन हमारे संस्थान नहीं बदले हैं। हम समस्याओं का समाधान तब तक प्रभावी ढंग से नहीं कर सकते जब तक कि हमारे संस्थान विश्व का प्रतिबिंब नहीं बनते और ये समस्याओं का समाधान बनने की जगह, समस्या का कारण बनते दिखाई दे रहे हैं’। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह आज की नहीं बल्कि 1945 की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करती है। जब 1945 में संयुक्त राष्ट्र स्थापित हुआ था तब 51 देश इसके सदस्य थे। इनमें से 11 सुरक्षा परिषद के सदस्य थे यानि 22 प्रतिशत देश परिषद में थे लेकिन आज 193 सदस्य देशों में से मात्र 15 देश यानि 8 प्रतिशत से भी कम परिषद के सदस्य हैं।
1965 में मूल चार्टर में बदलाव करके परिषद की संख्या को 11 से बढ़ाकर 15 किया गया था। ये अस्थायी सदस्य थे लेकिन इस पर भी पूर्ण संख्या और सदस्यता के अनुपात में परिषद की संरचना में शक्ति के संतुलन को बनाकर नहीं रखा गया है। उदाहरण के लिए यूरोप में दुनिया की आबादी का 5 प्रतिशत निवास करता है फिर भी 33 प्रतिशत सीटों पर कब्जा उसका है (इसमें रूस शामिल नहीं है) समता के सामान्य सिद्धांत से यह स्थिति अन्यायपूर्ण कही जा सकती है। इसी कड़ी में हम देखते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों में से सबसे ज्यादा वित्तीय सहायता देने वालों में दूसरे नंबर पर जर्मनी और तीसरे पर जापान है। फिर भी इन्हें चार्टर में ‘शत्रु देश’ की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों ने की थी। संयुक्त राष्ट्र में भारत जैसे बड़ी जनसंख्या, विश्व अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी और शांति स्थापना जैसे अभियानों के जरिए बड़ा योगदान देने वाले देशों को अभी भी स्थायी सदस्यता का अवसर नहीं दिया जा रहा है।
भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक देश है और आठ बार वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रह चुका है। पिछली बार वो 2021-2022 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बना था। भारत की विकास की गाथा, विशेष रूप से पिछले दो दशकों के दौरान, के कारण भारत सरकार के साथ-साथ अन्य कई क्षेत्रीय/वैश्विक मंचों के द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग अलग-अलग मौक़ों पर की गई है। फरवरी 2022 में जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ तो पश्चिमी देश जिस समय हालात से जूझ रहे थे तो ये भारत था जो विश्व का नेतृत्व करने वाले देश के रूप में उभरा और दुनिया के केंद्र में आया। जल्द ही दिल्ली वैश्विक राजधानी बन गई और राष्ट्रपति पुतिन के साथ मुलाक़ात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का प्रसिद्ध बयान कि “आज का युग युद्ध का युग नहीं है” आज भी कई वैश्विक मंचों पर गूंजता है।
भारत की पहचान ऐसी शक्ति के रूप में की जाती है जिसका किसी दूसरे देश के भू-भाग को लेकर कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, उसकी भी विश्व में व्यापक रूप से सराहना की जाती है। भारत ने परमाणु हथियारों को लेकर “पहले इस्तेमाल नहीं करने” की नीति का ऐलान कर रखा है। ये भी विदेश नीति के मामले में एक महत्वपूर्ण घोषणा है। शायद किसी भी देश के द्वारा आधुनिक समय में संयम का सबसे बड़ा उदाहरण भी भारत के द्वारा ही पेश किया गया था। जब 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारत के लड़ाकू विमानों ने रणनीतिक तौर पर लाभदायक स्थिति गंवाने और सैनिकों को खोने के बाद भी नियंत्रण रेखा को पार नहीं किया और इस तरह एक उच्च नैतिक आधार को बनाए रखा। भारत की अर्थव्यवस्था का आकार महत्वपूर्ण है जो विश्व में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाली है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकलन के अनुसार अगले कुछ वर्षों तक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ेगी। भारत के पास विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सशस्त्र सेना है, साथ ही भारत का अंतरिक्ष और मिसाइल कार्यक्रम दुनिया में सबसे आधुनिक में से एक है। भारत के उदय की चर्चा करते समय ये एक और ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण पहलू है।
इनोवेशन और उत्पादन की इन दिनों भारत में काफ़ी चर्चा हो रही है। भारत आक्रामक रूप से स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में विस्तार तथा इसकी कार्यप्रणाली में सुधार के भारत के दीर्घकालिक रुख का जापानी पीएम फूमियो किशिदा ने समर्थन किया है। उन्होंने समकालीन विश्व की वास्तविकताओं के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय संगठन को ढालने के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की। जापानी पीएम ने सोमवार को न्यूयॉर्क में 'भविष्य के शिखर सम्मेलन' को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व एक 'ऐतिहासिक मोड़' पर खड़ा है, मौजूदा और भावी पीढ़ियों के हितों की रक्षा के लिए सामूहिक रूप से कार्रवाई करने की तत्काल जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार लंबे समय से यूएनएससी में भारत के लिए स्थायी सदस्यता प्राप्त करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। भारत शुरू से ही कई विश्व के देशों की आवाज रहा है। ये सभी देश हर समस्या के लिए भारत की ओर देखते हैं।