पशु-पक्षी सेवा, नर सेवा से परम् सेवा!
पशु-पक्षियों के बारे में विख्यात दार्शनिक, इमानुएल कांत ने कहा है कि यदि किसी की इन्सानियत आजमानी है तो यह देखना जरूरी है कि उसका बर्ताव कैसा है। क्या आपने कभी सोचा है कि लोग पशु-पक्षी आदि जैसे बिल्ली, तोते, गाय-बकरे, कुत्ते, कबूतर, खरगोश, बंदर, चिड़िया आदि को क्यों पालते हैं। इसका कारण इन जानवरों से प्यार, दुलार तो है ही मगर जो सबसे बड़ी बात है वह यह कि पालतू पशु-पक्षी जो अपनापन देते हैं, वह शायद अपनों से भी नहीं मिल पाता।
दूसरी बात यह है कि ये जानवर किसी को न तो धोखा देते हैं और न ही दिल तोड़ते हैं। दूसरी बात यह कि ये जानवर बेजबान होते हैं और अपनी बिपता किसी को बता नहीं सकते और जो व्यक्ति इनकी सेवा करता है, अल्लाह जन्नत में उसके लिए महल बना देता है, इतना पुण्य है इस ईश्वरी कार्य का। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ा कोमल हृदय रखते हैं और स्वयं अपने हाथों से अपने मोरों और पक्षियों को खिलाते हैं। उनको पास देखते ही पक्षी उनके पास चहकते हुए आते हैं। तभी लगभग हर धर्म में कहा गया है कि पशु-पक्षियों व पेड़-पौधों की सेवा को अति उत्तम सेवा कहा गया है। जो लोग इन सब की सेवा करते हैं उनके बारे में कहा गया है कि इन पशु-पक्षियों की दुआ अपने मददगारों और सेवादारों के लिए फर्श से अर्श तक जाती है। भारतीय ही नहीं, बल्कि विश्व समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो जानवरों की सेवा करते हैं, उनकी जान बचाते हैं और अथाह पुण्य कमाते हैं, जैसे बिहार की एक पशु-पक्षी सेविका, संगीता सिंह, जिन्होंने एक अनूठे पशु आश्रम की स्थापना की है, जहां वे बीमार और जख्मी पशु-पक्षियों का स्वयं और वेट्रेनरी सर्जनों अर्थात पशु शल्य चिकित्सक द्वारा इनका इलाज करती हैं। ऐसे लोग रुपया-पैसा तो नहीं मगर खरबों का पुण्य अवश्य कमा लेते हैं।
मेनका-संजय गांधी के विषय में पढ़ा था कि किस प्रकार से वे पशु-पक्षियों की सेवा करती हैं जिससे उन्होंने प्रेरणा प्राप्त हुई। संगीता का पशु आश्रम इतना बड़ा और सुव्यवस्थित तो नहीं जैसा मेनका की पशु शालाएं, मगर सेवा की कमी नहीं क्योंकि लगभग दस रोज पूर्व उन्होेंने देखा कि सड़क पर एक ट्रक वाला एक गाय को इस प्रकार से टक्कर मार कर गया कि उसकी पीठ लगभग दो टुकड़ों में काट गई तुरंत उन्होंने उसे ठेले पर लदवाकर अपने पशु आश्राम में उसके सर्जन से टांके लगवाकर उसकी सेवा शुरू कर दी और वह बच गई। मगर इतने दिनों से वह बैठकर स्वस्थ हो रही है तो चिकित्सकों का कहना है कि उसे प्रतिदिन थोड़ी देर तक खड़ा करना आवश्यक है वरना उसकी टांगों को लकवा मार जाएगा, जिसके लिए उनके पास चौबीस हज़ार रुपए की आगरा में बनने वाली वह क्रेन नहीं है जिससे इस गईय्या को उठाकर खड़ा किया जा सके और उनके घर में इतने व्यक्ति भी नहीं हैं कि पकड़कर एक-आध मिनट उसे खड़ा कर दें। यादि कोई उनकी मदद करना चाहता है तो उन्हें 8879118929 पर फाेन कर लें। जहां तक पशु-पक्षी सेवा का संबंध है, 1992 में मेनका संजय गांधी ने "पीपल्स फॉर एनिमल्स" संस्था की बुनियाद डाली, जिसके द्वारा आजतक लाखों पशु-पक्षियों का उद्धार हो चुका है और कितने ऐसे बेचारे जानवरों की जिंदगी बच गई जिनको आम लोगों ने मरने के लिए छोड़ दिया था।
वे "इंटरनेशनल एनिमल रेस्क्यू" संस्था की भी आजीवन अध्यक्षा हैं और अपने इकलौते पुत्र वरुण फिरोज गांधी को भी इसी प्रकार की सेवा में लगा दिया जिसका परिणाम है कि पिछले चौबीस साल में उनकी छत से अब तक लाखों कबूतर दाना, बाजरा चुग चुके हैं और पानी पीते रहे हैं। मेनका अगर रास्ते में भी किसी बीमार जानवर को देख लेती हैं तो गाड़ी रुकवाकर उसकी जांच कर, इलाज के लिए भिजवा देती हैं। बड़ा ही घोर अन्याय होगा, यदि इस संबंध में हम पुरानी शाहजहानाबादी दिल्ली के लाल किले के सामने स्थित "जैन बर्ड हॉस्पिटल" का जिक्र न करें। पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान क्षेत्र में कबूतर व मुर्गे- मुर्गियां पालने का शौक़ लोग रखते हैं। पालतू मुर्गों को हमने कभी काट कर नहीं खाया। जब ये मुर्गे बूढ़े हो जाते थे तो बीमार होने पर इन्हें "जैन बर्ड हॉस्पिटल" में चिकित्सा हेतु छोड़ दिया जाता था। ऐसे ही यदि किसी कबूतर या चिड़िया, चील आदि का पंख या टांग पतंग से कट जाते या पंखे में लग कर ज़ख्मी हो जाते तो इन्हें "जैन बर्ड हॉस्पिटल" में दाख़िल करा देते। इसी पक्षी अस्पताल से जुड़े मनिंद्र जैन का कहना है कि वे तो इन जानवरों और पक्षियों से इतना प्यार करते हैं कि अपने प्रत्येक जन्म दिवस को वे "जीव दया दिवस" के तौर पर मानते हैं और सैंकड़ों पक्षियों को पक्षी विक्रेताओं से ख़रीद कर पिंजरों से आज़ाद करते हैं। मनिंद्र के अनुसार जो व्यक्ति किसी पशु-पक्षी की वेदना नहीं समझ पाते वे मनुष्य कहलाने योग्य नहीं होते। भारत माता की जय।