सर गंगा राम आधुनिक लाहौर के बेताज शहंशाह
भारत और पाकिस्तान में भले ही हिंदू-मुस्लिम को लेकर किरकिरी हो, मगर फिर भी दोनों देशों की ऐसी हस्तियां हैं जो दुनिया के चलते सदा बहार रहेंगी, जैसे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जिनका पाकिस्तानी दूतावास में नाम लेते ही वीजा दे दिया जाता था, सर गंगा राम अग्रवाल, जिन्होंने आधिनुक लाहौर की बुनियाद डाली थी और लहना सिंह, जिन्हें सिख-मुस्लिम मित्रता के प्रतीक के तौर पर लाहौर में याद किया जाता है। और भी बहुत से हिंदू व्यक्तित्व ऐसे हैं जिन्हें बड़े सम्मान के साथ पाकिस्तान में देखा जाता है और जिनमें आजकल मौजूदा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं।
जहां तक गंगा राम और लाहौर का संबंध है, चाहे वह एचीसन कॉलेज हो, महारानी विक्टोरिया के लिए बनाया मंच हो, लाहौर का प्रमुख डाकखाना, प्रेस क्लब और संग्रहालय भी गंगा राम ने भी तैयार किया। इसके बाद मॉडल टाउन, गुलशन-ए-इक़बाल और गुलबर्ग , सभी को गंगा राम ने बनवाया। एचीसन कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल, फ़कीर सैयद एजाज़उद्दीन ने लाहौर पर अपनी पुस्तक में लिखते हुए कहा है कि लाहौर की कल्पना नहीं की जा सकती बिना सर गंगा राम के योगदान के। उन्होंने लाहौर रेलवे की भी काफ़ी मदद की थी।
एक बार का क़िस्सा है कि जनरल ज़िया-उल-हक़ ने एक सिरफिरा आदेश दिया कि सर गंगा राम हॉस्पिटल के नाम का मुस्लिमीकरण किया जाए तो लाहौर के निवासी उनकी समाधि पर एकत्र हो उसका घोर विरोध करने लगे। पुलिस ने डंडे बरसाए तो एक व्यक्ति घायल हो गया तभी पुलिस ने ही कहा-इसे गंगा राम हॉस्पिटल में ले जाओ। उसके बाद यह बहस समाप्त हो गई।
बहुत की कम लोगों को इस बारे में पता है कि दिल्ली से करीब 483 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित पाकिस्तान लाहौर में भी उनके नाम पर एक प्रसिद्ध अस्पताल मौजूद है। गंगा राम एक अद्भुत इंजीनियर थे और उनकी पहचान एक परोपकारी व्यक्ति के तौर पर होती थी। गंगा राम को आधुनिक लाहौर के जनक के तौर जाना जाता है। सर गंगा राम का पूरा नाम गंगा राम अग्रवाल था। उनका जन्म 13 अप्रैल 1851 को लाहौर के पास स्थित मंगतांवाला गांव में हुआ था। गंगा राम के बचपन के दौरान ही उनका परिवार लाहौर से अमृतसर आकर बस गया। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा अमृतसर में शुरू की, फिर लाहौर के प्रतिष्ठित गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ने के लिए चले गए। वह बड़ा सुखद समय था जब अखंडित भारत की सरहदें अफगानिस्तान और ईरान से मिलती थीं और हिंदू और मुसलमान शीर-ओ-शक्कर की तरह रहते थे। इसके बाद गंगा राम को रुड़की के थॉम्सन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज से स्कॉलरशिप मिली और वह वहां पढ़ने गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद गंगा राम ने केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में सहायक इंजीनियर के तौर पर काम करना शुरू किया।
काम में उनकी कुशलता को देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दिल्ली दरबार को गोलाकार बनाने के लिए दिल्ली बुलाया। उन्होंने इसे तैयार किया और यहीं पर महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित किया गया। इसके बाद उन्हें रेलवे में सामरिक महत्व की अमृतसर-पठानकोट रेलवे लाइन पर काम करने का जिम्मा सौंपा गया। गंगा राम के काम से प्रभावित होकर उस समय भारत के गवर्नर जनरल जॉर्ज रॉबिन्सन ने उन्हें ब्रैडफोर्ड टेक्निकल कॉलेज में पढ़ने के लिए भेज दिया। इंग्लैंड से पढ़ाई पूरी करने के बाद गंगा राम 1885 में इंग्लैंड से भारत लौटे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दिल्ली सल्तनत और मुगलों की प्रांतीय राजधानी लाहौर को एक नया रूप देने की जिम्मेदारी दी।
सर गंगा राम एक ऐसा व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी जिंदगी में चैरिटी के लिए इतना कुछ किया कि उसके निशां अब भी मौजूद हैं। वैसे अचंभा भी होता है कि एक शख्स अपने जीवन में इतना कुछ कैसे कर सकता है। पेशे से तो वह इंजीनियर थे लेकिन समाज की भलाई के अनगिनत काम उन्होंने किए थे।
सर गंगा राम का घर विभाजन से पहले पाकिस्तान के लाहौर शहर में था। विभाजन के बाद उनका परिवार दिल्ली आ गया। सर गंगा राम का निधन 1927 में हुआ था। उन पर अंग्रेज़ों ने भी बहुत कुछ लिखा था। गंगा राम अनुशासन प्रिय होने के साथ-साथ बेहद दयालु शख्स थे। उन्होंने आर्किटेक्चर, इंजीनियरिंग, खेती-किसानी और महिलाओं के अधिकार के लिए काफ़ी कुछ किया। वे ख़ासकर विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिए भी काम करते रहे। उनके पिता दौलत राम भारत के उत्तर प्रदेश से वहां पहुंचे थे, पुलिस विभाग में जूनियर पुलिस इंस्पेक्टर के तौर पर काम करते थे। लंदन में जब उनकी मृत्यु हुई तो लाहौर के लोगों ने मांग की थी कि उनके अस्थिकलश का एक हिस्सा लाहौर भेजा जाए ताकि उसे दफनाया जा सके। खुद सर गंगा राम की यही इच्छा थी। अब इस जगह उनकी समाधि है।
दयालुता और परोपकार के कई किस्से
सर गंगा राम की दयालुता और परोपकार के इतने किस्से हैं कि हैरान रह जाना पड़ता है। दुनिया में आप ऐसे लोग कहां पाएंगे जो जरूरतमंदों के दुख में दुखी होकर उनकी मदद करते थे। जब वह अपनी जिंदगी के आखिरी मुकाम पर थे तब हेली कॉलेज को लड़कियों को शिक्षा देने के लिए जगह की जरूरत थी। सर गंगा राम स्त्री शिक्षा को बहुत जरूरी मानते थे, जब उन्हें पता लगा तो अपना सब कुछ दान कर दिया। अपनी हवेली कॉलेज को दे दी। उन्होंने पंजाब में सिंचाई के लिए काफी काम किया, महत्वाकांक्षी पनबिजली परियोजना स्थापित की।
हिंदू समाज में विधवाओं के लिए भी उन्होंने तब बहुत काम किया। पंजाब प्रांत के अंबाला शहर में 1917 में उन्होंने हिंदुओं की धार्मिक बैठक में विधवाओं के पुनर्विवाह को लेकर प्रस्ताव पास कराने की कोशिश की हालांकि कामयाब नहीं हुए। तब अपने दो हज़ार रुपयों (तब ये बड़ी रकम थी) से विधवा विवाह संघ की स्थापना की। सरकार की अनुमति से गंगा राम ने 1921 में ढाई लाख रुपये की लागत से हिंदू विधवाओं के लिए एक घर बनवाया जहां इन महिलाओं को जीवनयापन करने के लिए प्रशिक्षित करने की व्यवस्था मौजूद थी, इसमें दो स्कूल और एक छात्रावास स्थापित किया गया।
यहां महिलाओं को हैंडिक्राफट्स का ना केवल प्रशिक्षण दिया जाता था, बल्कि वे दूसरों को प्रशिक्षित कर सकें, इतनी तैयारी करायी जाती थी। गंगा राम ने वित्तीय चुनौतियों का सामना करने वाली हिंदू और सिख महिलाओं के लिए लेडी मेनार्ड इंडिस्ट्रियल स्कूल की स्थापिता में भी वित्तीय मदद की। 1923 में सर गंगा राम ट्रस्ट की स्थापना की गई। इसी साल लाहौर में सर गंगा राम मुफ्त अस्पताल और डिस्पेंसरी की स्थापना हुई जो आगे चलकर अत्याधुनिक चिकित्सीय सुविधाओं से युक्त अस्पताल के तौर पर विकसित हुआ। गंगा राम ने आख़िरी चैरिटी का काम किया वह दो एकड़ ज़मीन पर एक हिंदू अपाहिज आश्रम की स्थापना करनी थी। यह एक तरह से बुजुर्गों और विकलांग लोगों के लिए आश्रय स्थल था। 10 जुलाई 1927 को गंगा राम की मौत लंदन में हुई। उनकी अस्थियों को वापस भारत लाया गया। एक हिस्से को गंगा में प्रवाहित किया गया। बाकी को लाहौर में रावी नदी के किनारे समाधि में दफन कर दिया गया।
- फ़िरोज़ बख्त अहमद